गुरुवार, 2 सितंबर 2010

Agony........

अपनी-अपनी पीड़ा के पहाड़ ढोते लोगों से भरा नगर,
नगरों से भरा देश
और देशों से भरी यह धरती......
स्वयं, कितनी बौनी है अपने सौर -मंडल में!
किन्तु पीड़ा का संसार.....
न जाने कितना विस्तृत है.
धरती-धरती भर पीड़ा ले कर
न जाने कितने सौर-मंडल समाये हैं
हमारी अपनी आकाश-गंगा में.
ऐसी असंख्य आकाश-गंगाओं की पीडाओं से
कितनी बौनी है तेरी पीड़ा,
चल उठ,
अब कितने आंसू और बहायेगा
अपनी बौनी पीड़ा पर!
सबकी पीड़ा गले लगा ले,
कुछ प्रश्नों के उत्तर दे ले
फिर देख
इस अनंत ब्रह्माण्ड में
तेरा बौना अस्तित्व
कितना महत्त्वपूर्ण है.

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर ...दूसरों के दुःख दर्द हम देखना सीख लें तो वास्तव में अपने दुःख भूल जायें ......

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.