रविवार, 5 दिसंबर 2010

क्या है ..जिस पर गर्व करें हम...?

नेताओं के भाषणों में सुनता आया हूँ ...."हमें अपने देश पर गर्व है....."  भावातिरेक में हम भी यही कहते हैं ...आपकी तरह ....सबकी तरह ..........पर मन सदा ही सशंकित बना रहा, टटोल कर देखा ..तो प्रश्नों की झड़ी लग गयी ...उत्तर नहीं दे पा रहा हूँ ...कैसे समझाऊँ अपने मन को ....कैसे सुलझाऊं बुद्धि में बनते जा रहे मकड़ जाल को,.....कुछ समझ में नहीं आ रहा. और ज़ो समझ में आ रहा है वह मैं औरों को समझा नहीं पा रहा हूँ. अब मैं आपके सामने हूँ ...अपनी सारी बातों के साथ ......सारे तर्कों के साथ. आज नहीं तो कल .... उत्तर तो सबको देना ही होगा. आने वाला समय भी हमसे ..... आपसे.....सबसे...... यही प्रश्न पूछेगा-

क्या है ?........जिस पर गर्व करें हम !
उस देश पर ?.......जहाँ कोई भी सुरक्षित नहीं है ...न घर में ..न सडकों पर !
या उस नीति पर ?......ज़ो अपने उत्तरी और पश्चिमी भूभाग की रक्षा नहीं कर सकी और जिसकी पूर्वी सीमा विवादास्पद है आज़ादी के इतने सालों बाद भी !
या जाति पर ?........ज़ो सामाजिक असंतुलन और विषमता का हथियार बना दी गयी है !
या धर्म पर ?....ज़ो विधर्मियों के हाथों पड़कर एक व्यापार बन गया है !
या भाषा पर ?.......जिसे बोलने में हमें शर्म आती है ..और न बोलने में शान बिखरती है !
या संस्कृति पर ?.............ज़ो पश्चिमी चोला ओढ़कर अपनी मौलिकता ही खो चुकी है !
या आध्यात्मिक विरासत पर ?.........जिसके इतने समृद्ध होने पर भी पाखंड रुकने का नाम नहीं ले रहा !
या राष्ट्रीय चेतना पर ?..........ज़ो थोड़ी भी होती यदि हममें .......तो क्या हड़ताल....तोड़-फोड़ और आगजनी से राष्ट्र के विकास में यूँ बाधा बनते हम सब .....और हमारी ही गाढी कमाई की संपत्ति यूँ नष्ट होती रहती !
या प्रशासनिक व्यवस्था पर ?.....ज़ो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुयी है !
या सामाजिक व्यवस्था पर ?.....जहां सब एक-दूसरे के शत्रु बने हुए हैं !
या उस तंत्र पर ?.....जिसकी छात्र-छाया में उग्रवाद निर्भय हो पनप रहा है !
या आधुनिक उद्योगों पर ?....ज़ो पारंपरिक कुटीर उद्योगों को बड़ी बेरहमी से निगल चुके हैं !
या उस हरित क्रान्ति पर ?.....ज़ो प्राकृतिक बीजों के स्थान पर संकर बीजों से उपजे खाद्यों से नयी पीढी को नपुंसक बना देने की कसम खाये बैठी है !
या उस श्वेत क्रान्ति पर ?.....ज़ो दुधमुहे शिशुओं को शुद्ध दूध और युवकों को शुद्ध घी उपलब्ध करा सकने में असफल रही है !
या न्यूक्लियर एनर्जी पर ?......ज़ो पूरी तरह अप्राकृतिक विज्ञान पर आधारित है और रेडिओएक्टिव कचरे से पूरी धरती को विषाक्त किये दे रही है !
सावधान!!!
आपकी उदासीनता कहीं पूरे देश को फिर से गुलाम न बना दे !
राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को पहचान कर अपनी राष्ट्र भक्ति का परिचय देने का और कौन सा अवसर तलाश रहे हैं आप ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत बड़ी समस्या को उठाया है। सर आपने रंग दे बसन्ती फिल्म देखी होगी। उसमें एक डायलाग है कि कोई भी देश परफेक्ट नही होता उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है। जरूरत है पहल करने की। परन्तु लोग सोचते है कि हमें क्या। कोई और करेगा तो बताइये ये मसला कैसे सुलझेगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाजिब सवाल उठने लगें, तो जवाब भी आने लगते हैं.

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.