बुधवार, 29 दिसंबर 2010

जीवन

दौड़ लगाते देखा सबको
लगे दौड़ने संग में हम भी.
चढ़ते देखा  हमने सबको 
लगे चढ़ाई करने हम भी.
तभी फिसलते देखा सबको 
लगने लगी सहज पीड़ा तब 
हमें फिसलने की ....अपने भी.

व्यस्त हो गये हैं हम सब ही 
दौड़ लगाने .....चढ़ने...... ,
गिरने और गिराने के निष्ठुर समरों में.
बिना ये सोचे, बिना ये समझे 
लक्ष्य दौड़ का क्या है हमारी 
कौन दिशा है हमारे पथ की 
क्या होगी परिणति इस गति की.
लक्ष्यहीन हो भाग रहे सब
कहाँ और किस लिए न जाने 
किसके लिए...... किस लिए जी रहे 
हम में से ये कोई न जाने 


और अंत में इस जीवन के ......
मिला शून्य जब इस मुट्ठी से 
प्रश्न एक तब उठा विराट ये 
क्यों आए थे यह जीवन ले ?
उपलब्धि रही जीवन भर की क्या ?


हुआ निरंतर प्रश्न विराट ये 
मौन हुए सारे प्रतियोगी
छिपा शून्य में उत्तर है ज़ो  
नहीं सुनायी देता सबको
जन्म और भी लेने होंगे. 
हर जन्म साधना करते -करते  
जब सत्य शून्य का मिल पाएगा  
तब ज्ञान अचम्भित यह कर देगा-
पाना है सब कुछ यदि हमको  
है उपाय सब कुछ खोना ही 
सोने को माटी मानो तो  
सारी माटी है सोना ही 
है लक्ष्य यही ...सुख चरम यही.



2 टिप्‍पणियां:

  1. "दौड़ लगाते देखा सबको
    लगे दौड़ने संग में हम भी.
    चढ़ते देखा हमने सबको
    लगे चढ़ाई करने हम भी.
    तभी फिसलते देखा सबको
    लगने लगी सहज पीड़ा तब
    हमें फिसलने की ....अपने भी"
    कौशलेन्द्र जी जीवन के भेड़ चाल का "क्यों आए थे यह जीवन ले ?उपलब्धि रही जीवन भर की क्या ? "सटीक चित्रण .इसके भीतर का सन्देश बहुत सकारात्मक है .कोमल व्यंग्य ने इसके प्रभाव को बढाया है.

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  2. हुआ निरंतर प्रश्न विराट ये
    मौन हुए सारे प्रतियोगी
    छिपा शून्य में उत्तर है ज़ो
    नहीं सुनायी देता सबको

    baba..aapne dr bitha diya dil me...sach..hum sab ik andhdhudh race me bhaage ja rhaa he...hum sab ko aage niklna he..kahan..kis ke paass...kyun...aur paise kmaane hain..apne profession me aage pahucnhnaa hee...pr fir kyaa...kyaa hum ..wo paa ke khushi se nbith jaayenge...yaa fir ik aur race shurur ho jaayegi...........
    bahutttt gehrii rchnaa he baba

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.