सोमवार, 31 जनवरी 2011

क्या इन्हें नाम दें ...

.
जा रहे थे यूँ ही 
कुछ न तय था कहीं .
फिर मिली एक डगर 
पर न मंजिल कहीं . 

रात में रौशनी यूँ 
अचानक हुई .
कोई रिश्ता नया
एक उगता दिखा .

मीठे-मीठे उठे 
आज फिर दर्द हैं .
कोई बताये हमें 
क्या इन्हें नाम दें .

ख़ुश्बुएँ कैद हैं 
काँटों के साए में .
कैसे हम उनको ये 
उनका इनाम दें . 

3 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ुश्बुएँ कैद हैं
    काँटों के साए में

    hmmmmmmm
    baba...kuch rishte naate..bas aise hi hote hain...unhe kyaa naam de soch se baahr rehata he ye swaal...bahut gehri rchna baba....[:)]
    khushben band hain kaanto ke saaye me....bahut hii khoobsurat...aur anokhi soch....[:)]
    take care

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  2. सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो!! नाम की हद में इनको बाँधा नहीं जा सकता!!

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.