सोमवार, 4 अप्रैल 2011

चोर भी खुद पुलिस भी खुद

          आप यकीन मानिए मेरी बात से कोई प्रलय नहीं आने वाली इसलिए मेरी आज की बातों को बहुत हलके-फुल्के से लेने की ज़रुरत है. यूँ कुछ लोगों ने भविष्य वाणी की है कि बहुत ज़ल्दी प्रलय आने वाली है. हाँ ! यह एक गंभीर बात हो सकती है ....तो भैया !  सन २०१२ में प्रलय आने के पहले मैं आपको दो बातें बता देना चाहता हूँ. पहली यह कि यदि किसी नक्काल को अपना नकली माल बेचना हो तो उसे करेंसी किंग से गुरुमंत्र ले लेना चाहिये. यह शख्स आपको वही नुस्खा बताएगा जिसे वह खुद भी स्तेमाल करता है. यानी धंधे का मूल मन्त्र यह कि ग्राहक को भरोसा दिलाने के लिए एक असली-नकली की पहचान वाली मशीन भी बना कर दे दो ...और फिर बेफिक्र होकर बेचो अपना नकली माल पूरी दुनिया में . चोर भी खुद पुलिस भी खुद. और दूसरी बात यह है कि मुझे दुनिया के दो देश सबसे प्यारे लगते हैं एक है इटली दूसरा है स्विट्ज़रलैंड. अब आप शोले की वसंती से पूछेंगे ऐसा क्यों ...तो वह जवाब देगी -" यूँ के आपको पता नहीं इटली से हमारे शादी-ब्याह के नाते हैं, भारत में इटली की बहुएं बहुत प्रतिभाशाली मानी जाती हैं ...और जहां तक स्विट्ज़रलैंड का सवाल है तो यूँ के आपको पता होना चाहिए के वहाँ की बैंकों में भारत का कितना काले-पीले-हरे-गुलाबी रंग का पैसा हर साल दफ़न होता रहता है. तो मतलब यह हुआ के हमारे देश में काला पैसा अब है ही नहीं जो हाय तोबा की जाय.....जो है सिर्फ सफ़ेद पैसा है ...एकदम सफ़ेद भक्क ...जैसे के किसी नेता का कुर्ता. 
    सोने में सोहागा यह कि एक आदमी को बहुत गुणा-भाग लगाने के बाद इटली और स्विट्ज़रलैंड जैसे दो-दो महान देशों की नागरिकता लेना ज्यादा फायदेमंद लगा. यह आदमी है रोबेर्टो ग्योरी. ...नहीं समझे !  अरे वही तो अपना समधी ....जिसे करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है.  लगभग दुनिया भर की सरकारें अपनी करेंसी इसी नक्काल की कंपनी "डे-ला-रू"  में छपवाती हैं. मुझे कंपनी का नाम भी बहुत अच्छा लगा. क्या है कि हमारे बस्तर में भी एक ऐसा ही मिलता जुलता शब्द बहुत प्रचलित है "दे दा रू" जिसे पिए बिना ही भारत की सरकार टुन्न है.   
        तो भैया ! अब बात यह है कि भारत में नकली नोटों की समस्या बहुत पुरानी हो गयी है. लेकिन एक दिन यह पता चलने पर कि नकली नोट ATM से भी निकल रहे हैं और बैंक काउंटर से भी, सी. बी.आई. ने नेपाल की  सीमावर्ती बैंकों और अंत में रिज़र्व बैंक पर भी छापा मारा ..तो सारा रहस्य सामने आया. वस्तुतः , ये नकली नोट पाकिस्तान से नहीं बल्कि भारत की ही रिज़र्व बैंक से जारी किये जा रहे हैं. और रिज़र्व बैंक असली के साथ नकली नोट भी "डे ला रू" से ही मंगवाती है जो ५०० और १००० के नकली नोट का कारोबार करती है. इस नक्काल किंग ने असली-नकली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बना कर रिज़र्व बैंक को देदी कि जाओ दुनिया को बेवकूफ बनाओ और ऐश  करो . आप कहेंगे कि मामला गंभीर है....मुझे लगता है कि बिलकुल नहीं है  ...क्योंकि आप जानते है मैं कोई भी बात सप्रमाण ही कहता हूँ ...और प्रमाण यह है कि जब अगस्त 2010 में इस  मामले का खुलासा हो गया तो विपक्ष को भी यह मामला कतई गंभीर नहीं लगा. लगा होता तो क्या विपक्ष इस तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे  रहता ? प्रहार का  कोई मौक़ा नहीं छोड़ने वाला विपक्ष अपनी ज़िम्मेदारी और मज़बूरियाँ अच्छी तरह समझता है कि कहाँ  उसे बोलना है और कहाँ नहीं. तो इस देश के लोगों को भी चिंतित होने की आवश्यकता नहीं...जाइए सो जाइए जाकर . मुझे भी नींद आ रही है.              

6 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक लेखन के साथ विचारणीय प्रश्न भी उठाया है आपने....बधाई.

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  2. विपक्ष का विरोध प्रदर्शन भी सत्ता प्राप्ति का एक साधन बनता जा रहा है..सुन्दरे लेख एवं यथार्थ जानकारी..

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  3. कौशलेन्द्र जी, मैंने पहले भी कहा था कि हमारे पूर्वज पहले ही घोर कलियुग की पहचान बता गए थे, यानि जब चहुँ ओर विष व्याप्त हो गया था और चोर और सिपाही दोनों प्रभावित हो गए थे, सही-गलत का किसी को ध्यान होना संभव ही न रहा होगा,,,किन्तु इशारों इशारों में उन्होंने अमृत शिव (विष का उलट) की पहचान हमारी पृथ्वी को (जिसमें सब साकार का अंत निश्चित है) ध्यान में रख बताई - उसके अंग में भस्म (धूल, मिटटी), उनके जटा-जूट (लता, वृक्ष आदि) जिसमें गंगा अटक गयी थी...

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  4. दे दा रु .....
    ताकि मैं भी पी के टुन्न हो जाऊं ...
    और किसी प्रकार की दर्द महसूस न हो .....
    अरे भ्रष्टाचार की ......!!

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  5. .

    रामचंद्र कह गए सिया से , ऐसा कलियुग आएगा ,
    हंस चुगेगा दाना-तिनका कौआ मोती खायेगा।

    यदि विवेक रुपी सारथी साथ है तो आवाम सही-गलत का निर्णय कर ही लेती हैं । उम्दा आलेख। आभार।

    .

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  6. शायर गहराई में जा कहता है, "उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना / मक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है :)

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.