रविवार, 5 जून 2011

एक और जलियाँ वाला ......क्या यह इतना आवश्यक था ?

    
     देश का धन वर्षों से प्रवासी जीवन जीने को अभिषप्त है.  इधर, विकास के नए-नए आंकड़े सामने आ रहे हैं. मंत्री और सचिव अपनी पीठ थपथपा रहे हैं. और देश का आम आदमी शुद्ध जल की तो छोड़िये मध्य-प्रदेश के बुंदेलखंड में तो अशुद्ध जल की भी एक बूँद के लिए तरस रहा है.......देश के कई प्रान्तों में सबकी भूख मिटाने वाला किसान आत्म ह्त्या कर रहा है. देश का विकास अपने तरीके से चल रहा है और ऐसे में भ्रष्टाचार के विरुद्ध पहले अन्ना हजारे और फिर बाबा रामदेव बड़े सशक्त तरीके से सरकार के विरुद्ध खुल कर खड़े हो गए. किसी अवतार की प्रतीक्षा में युगों से प्रतीक्षारत भारत की जनता ने राहत की सांस ली......अब ज़ल्दी ही कोई चमत्कार होने वाला है. 
      कल ख्रीस्त की इक्कीसवीं शताब्दी के द्वितीय दशक के प्रथम वर्ष की चार जून का दिन भारत के लोकतंत्र का एक और ऐतिहासिक दिन बन गया. दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के विरोध में और देश का धन वापस देश में लाने को लेकर सत्याग्रह में सम्मिलित होने देश भर से आयी, अर्धरात्रि में निहत्थी सो रही जनता से अचानक दिल्ली की सरकार को क़ानून-व्यवस्था पर खतरा मंडराने का खतरा दृष्टिगत हुआ. सरकारी हुक्म हुआ और रात में लगभग पांच हज़ार पुलिस के ज़वान जिनमें रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवान भी शामल थे सोयी हुयी जनता पर बर्बरता का कहर बरपाने पहुंच गये . स्त्री वेश में छिप कर बाबा को अपने प्राण बचाने पड़े. कई लोग घायल हुए ....जिनमें महिलायें और बच्चे भी थे. इस पूरे प्रकरण में सबसे शर्मनाक कार्य पुलिस का रहा. पुलिस विभाग में नौकरी करने के इच्छुक मेरे बेटे ने (उसने बचपन से यह सपना संजोया हुआ था ) आज इस घटना के बाद ऐलान कर दिया कि अब वह पुलिस विभाग में नौकरी नहीं करेगा.....जिस विभाग के उच्चाधिकारी इतने संवेदनशून्य और विवेकहीन हैं कि वे सही गलत का वैसा निर्णय भी नहीं कर पाते जैसा १८५७ में ब्रिटिश फ़ौज के भारतीय सिपाहियों ने किया था तो ऐसे सरकार परस्त विभाग में जाकर वह देश की जनता के साथ विश्वासघात करने का पाप नहीं करना चाहता. 
      बाबा के आन्दोलन की सफलता-असफलता और उनकी रणनीति पर टिप्पणी करने का समय नहीं है.जीत किसकी हुयी सरकार की या बाबा की ...इस पर भी मैं कुछ नहीं कहूंगा. अभी तो समय है देश के कुछ कर्णधारों की बतकही पर बतकही का. 
       तो पहले कर्णधार हैं दिग्विजय सिंह जी जिन्होंने बाबा को ठग की उपाधि से मंडित किया. उन्होंने बाबा की डाक्टरी विद्या पर भी प्रश्न उठाये. ....योग से कैंसर ठीक करने के दावे का परिहास किया गया (बाबा ने कई बार कहा है कि मैंने ऐसा दावा कभी नहीं किया )
        .......पर एक प्रश्न उठता है कि जब सरकार के एक आला नेता ने बाबा के खिलाफ इतने संगीन आरोप लगाए हैं तो उनके पास इसके प्रमाण भी होंगे. उन्होंने बाबा के योग शिविरों के विरुद्ध अब तक कोई प्रतिबंधात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की ? दूसरी बात,  पूरे देश में सड़क किनारे बैठ कर नामर्दगी, लकवा और न जाने कौन-कौन सी बीमारियाँ ठीक करने का दावा करने वाले खानदानी शफाखाने वाले वैद्यों पर सरकार ने अभी तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं की ? मजे की बात यह है कि इन शफाखाने वालों से आमआदमी से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी और नेता तक नामर्दगी और हाज़मे की दवाइयां ऊंची कीमत पर खरीदते हैं. संयोग देखिये कि नेताओं के खराब हाज़मे और नामर्दगी का सबसे बड़ा प्रमाण कितना सहज सुलभ है !
        अगले कर्णधार हैं कपिल सिब्बल जी ! कल दिल्ली के रामलीला मैदान में जो स्वतन्त्र भारत का प्रथम जलियाँवाला काण्ड हुआ उसके सन्दर्भ में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया कि हम तो शठे शाठ्यम समाचरेत वाले हैं, शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार किया गया है. हमारे क़ानूनदां नेता अफजल गुरु और कसाब के मामले में भी यही नीति अपनाते तो कितना अच्छा होता ? देश और मानवता के इन शत्रुओं पर प्रति दिन व्यय किया जाने वाला खर्च, जो कि इस देश की जनता की गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा है, बचता.....और जिसका उपयोग देश के शहीदों की विधवाओं और उनके बच्चों की शिक्षा पर खर्च हो पाता....क्योंकि उनके हिस्से का पैसा तो ये लोग अपने व्यक्तिगत विकास में निर्लज्जता पूर्वक खर्च कर लेते हैं. सिब्बल बोले कि बाबा ने देश और सरकार को धोखा दिया है इसलिए उनके साथ जो हुआ वह उचित है. पर सरकारों में तो न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो वर्षों से देश को धोखा देते आ रहे हैं ...उनके खिलाफ भी कुछ होना चाहिए था...पर नहीं हुआ. 
        सुबोध कान्त सहाय ने फरमाया कि बाबा की सारी बातें मान ली गयी थीं पर बाबा ने हठ करके आन्दोलन जारी रखा इसलिए उनके साथ ऐसा (कसाब जैसा नहीं ) बर्ताव करना सरकार की विवशता हो गयी थी. बाबा के मन में क्या है वह बाबा जानें ...पर सरकार के मन में क्या है वह तो सारा देश जान चुका है. लोकपाल बिल के  प्रकरण में पूरे देश ने सरकार की नियत को देख लिया है. पिछले दो वर्षों से बाबा काले धन की बात कर रहे हैं. उनके सत्याग्रह की प्रतीक्षा क्यों की गयी ? इस प्रश्न का उत्तर सरकार का कोई भी आदमी नहीं दे सकेगा. उन्होंने बाबा का काले धन वाला एजेंडा बड़ी चतुराई से चुराने (उचित शब्द है 'छिनाने' ) का असफल प्रयास भी किया - यह कहकर कि "यह तो सरकार का और सोनिया जी का एजेंडा है, बाबा करें या न करें सोनिया ज़रूर करेंगी". भाई वाह ! क्या बात है सोनिया जी और सरकार जी ! पर अभी तक यह एजेंडा कहाँ था ? इतने वर्षों में अभी तक इस अत्यंत ज्वलनशील राष्ट्रीय महत्त्व के विषय पर मौन क्यों छाया रहा ?  
   हम न तो बाबा जी है और न नेता .....एक आम आदमी हैं. हम राजनीति की कुटिल चालों को नहीं जानते ( और न जानना चाहते हैं ),.....मंत्रियों के मिथ्या आश्वासनों के कटु सत्य को जानते हैं ...और यह भी जानते हैं कि सरकार निर्वस्त्र खड़ी है....क्योंकि उसकी व्यवस्था पूरी तरह सड़ी-गली है. 
       

12 टिप्‍पणियां:

  1. यह लोकतंत्र का चीर-हरण है। चलो इसी बहाने जनता नें इन कोंगेसी नेताओं की कुटिल राजनीति देखी।

    कपिल सिब्बल ने इसी लिये कहा कि बाबा योग ही सिखाए इस राजनिति में न आए। क्यों कि राजनिति इन कुटिलो की नीति है।

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  2. सार्थक लेख ... सरकार क्या करेगी ? उनके ही कितने लोगों का पैसा तो वहाँ जमा है ..

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  3. जनता के रक्त से पोषित हर व्यक्ति यही कहता है कि बाबा को योग से मतलब होना चाहिए ...राजनीति से नहीं. इसी से स्पष्ट है कि ये लोग भारतीय संस्कृति के कितने बड़े शत्रु हैं. इन लोगों ने जनता के मस्तिष्क में भी यह बात ट्रांसप्लांट करने का प्रयास किया है. मैंने यह बात कई लोगों की बहस में सुनी है.....बाद में पता चलता है कि साधु के राजनीति में आने के विरोध में बहस करने वाला खुद बहुत बड़ा बेईमान है. भारतीय संस्कृति में तो राजाओं के द्वारा साधु-संतों से ही बड़ी-बड़ी समस्याओं पर उनके मार्गदर्शन के अनुरोध की परम्परा रही है. साधुओं के कारण ही राजनीति भटकने से बच जाती थी .....राजनीति में सच्चे साधु होते तो विदेशों में भारत का इतना धन नहीं होता. दिग्विजय सिंह और मायावती को बाबा से ज्यादा शिकायतें हैं. . कहीं इनका धन भी तो विदेशी बैंकों में नहीं ?

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  4. कृपया मार्गदर्शन कीजिये कौशलेन्द्र जी, मेरा आक्रोश कौन-सी दिशा ले, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ?
    क्या दिनकर शैली की कविता आज़ के समय में सत्ता परिवर्तन कर सकती है? क्या आज़ मनोरंजक चुटकुलों को पसंद करने वाले ज्वलनशील सामग्री से परहेज नहीं करेंगे?
    मुझे जंग लग गया है इस सम्प्रेषण के ज़रिये. एक समय था मैं अपने आर्यवीरों को शारीरिक प्रशिक्षण दिया करता था. और अब संगठन फिर से खड़ा करूँ क्या?
    मैं पागल हो गया हूँ आज की सरकारी बर्बरता को देखकर. मन कैसे शांत हो.. अथवा हृदय की आग को प्रज्ज्वलित रखूँ?

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  5. घोर निंदनीय घटना।
    रावण का चेहरा दिखता तो है मगर जनता के ज़ख्म इतने गहरे हैं, जिंदगी इतनी दुरूह कि समय बीतते ही भूल जाती है। जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है। बार-बार देखे रावणी चेहरे भी विस्मृत हो जाते हैं जेहन से।

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  6. भाई प्रतुल जी ! रविवार की घटना से पूरा देश आहत हुआ है.....लोकतांत्रिक सरकार ने अलोकतांत्रिक तरीके से सत्याग्रह का बर्बरता पूर्वक दमन किया है. किन्तु हमें संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, ईश्वरीय संकेतों को समझने की आवश्यकता है.समय की प्रतीक्षा कीजिये ...हमें अपना मार्ग स्वयं बनाना होगा. भारत के प्राचीन गौरव के अनुरूप देश के पुनर्निर्माण के लिए एक लम्बे तप की आवश्यकता है ...किन्तु इसके लिए परिस्थितियाँ उतनी अनुरूप नहीं हैं. देश को ब्रह्म तेज की आवश्यकता है .....इसे सृजित और संचित करना होगा.
    नहीं, निष्क्रिय होकर चुप कैसे बैठा जा सकता है ? कलम के सिपाही को अपना काम करते रहना है. धार को और भी तीक्ष्ण करना है. वैचारिक आन्दोलन ही अपने लक्ष्य तक पहुँच पाने में सफल हो पाते हैं ....कलम इसमें सहायक है ......शस्त्र के रूप में. धारदार और इमानदार लेखन कभी व्यर्थ नहीं जाता. संयोग से आप जहाँ हैं वहाँ पर लेखन और प्रकाशन से ही जुड़े हैं. बस समस्त इन्द्रियों को सजग रखिये और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शुचिता बनाए रखने का तप चलते रहने दीजिये.
    उग्रता हमारी रचनात्मक ऊर्जा का क्षरण बड़ी तीव्रता से करती है ...इससे बचना होगा. तिब्बती लामाओं की तरह आत्म रक्षार्थ शरीर को इस योग्य बनाना होगा. हमारे पास विचारों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ...इन्हीं के संबल पर हमें आगे बढ़ने की रणनीति बनानी होगी. प्रतिकूल परिस्थितियों में आत्मिक ऊर्जा का संचय आवश्यक है. दुःख और क्षोभ की इस घड़ी में हमें एक दूसरे को संबल देना होगा.
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ! ! !

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  7. भाई पाण्डेयजी ! जनता भीड़ है ...भीड़ की अपनी मानसिकता होती है ....उसमें स्थिरता का अभाव होता है ....उसे नेतृत्व की आवश्यकता इसलिए होती है. भीड़ यदि आत्मानुशासित होती तो शासन की आवश्यकता ही क्यों पड़ती ? भीड़ को सही नेतृत्व देने वालों का अभाव है ...उनके स्थान पर असुरों ने ध्वज थाम लिया है. यह ध्वज सही हाथों में कैसी आये यह सोचना है ....सोचना यह भी है कि सही और उपयुक्त लोगों की तलाश की जाय .

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  8. एक बार फिर शिव त्रिनेत्र को,प्रलय रूप खुल जाने दो
    एक बार फिर महाकाल बन इन कुत्तों को तो मिटाने दो..
    एक बार रघुपति राघव छोड़ , सावरकर को गाने दो...
    एक बार फिर रामदेव को, दुर्वासा बन जाने दो...

    "आशुतोष नाथ तिवारी"

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  9. प्रकृति संकेत करती है... जैसे यदि कोई दलदल में फंस जाता है, वो भय के कारण जितना अधिक जोर लगाता है उतना ही और कीचड में धंसता चला जाता है... अधिकतर उसे (सौ-मंडल के सार से बने व्यक्ति को) वो ही निकाल सकता है जो स्वयं सूखी और सख्त ज़मीन पर खड़ा हो (गैलेक्सी के केंद्र का प्रतिरूप कृष्ण?) ...

    किसी यूरोप के इतिहास की पुस्तक में पढ़ा था कि एक समय रोमन एम्पायर में रोजमर्रा का काम सिनेट करता था और एक सुलझा हुआ व्यक्ति, डिक्टेटर, को ज़मीन आदि दे दी जाती थी और वो दूर कहीं किसी खेत आदि में काम करता था, राजनीतिज्ञों से दूर (सोनिया समान?)... जब रोम पर हमला होता था तो पहले सिनेट ही लड़ाई की देख रेख करता था... किन्तु जब हार का डर होता था तो डिक्टेटर को बुला लिया जाता था और उसकी देखरेख में हार अधिकतर टल जाती थी !

    और प्राचीन भारत में 'सूर्यवंशी राजाओं' के दो सलाहकार होते थे, एक रोजमर्रा के कार्य में सलाह के लिए (विश्वामित्र समान) और दूसरा दूरगामी परिणामों वाले कार्यों पर सलाह के लिए (वशिष्ट समान), उदहारणतया साम्राज्य के विस्तार के लिए योद्धाओं को योग आदि के माध्यम से सेहतमंद रखने के अतिरिक्त प्रकृति से तालमेल बनाने वाले किसी महर्षि का अश्वमेध यज्ञ आदि द्वारा भी, जैसा काशी के घाट में अनादि काल से चला आता 'दशाश्वमेध घाट' सूर्य की दस चरण में उत्पत्ति दर्शाता आया है...

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  10. मैं आपसे सहमत हूँ साथ ही सरकार के रवैये से काफी निराश भी हूँ. एक सार्थक और बेहतरीन लेख के लिए आपका आभार!

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  11. जाने किस तरह के निर्णय है ये...यह कौन-सा तंत्र है....
    क्षोभ होता है.

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  12. आदरणीय कौशलेन्द्र जी
    सादर वंदे मातरम्!

    सर्वप्रथम आवश्यक और उत्तरदायित्वपूर्ण आलेख के लिए आभार !

    भ्रष्टाचार के विरोध में और देश का धन वापस देश में लाने को लेकर सत्याग्रह में सम्मिलित होने देश भर से आयी, अर्धरात्रि में निहत्थी सो रही जनता से अचानक दिल्ली की सरकार को कानून-व्यवस्था पर खतरा मंडराने का खतरा दृष्टिगत हुआ. सरकारी हुक्म हुआ और रात में लगभग पांच हज़ार पुलिस के ज़वान जिनमें रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवान भी शामिल थे सोयी हुयी जनता पर बर्बरता का कहर बरपाने पहुंच गये .
    घोर शर्मनाक कुकृत्य !

    और इसके बाद भी दलगत बयानबाजी करने वाले वे लोग जो मानवता से सोच ही नहीं सकते , उनसे गंभीरतापूर्वक दायित्व-निर्वहन करने का अनुरोध है -

    सोते लोगों पर करे जो गोली बौछार !
    छू’कर तुम औलाद को कहो- “भली सरकार”!!


    कॉंग्रसजन और उस जैसे लोगों के अलावा हर आम नागरिक आज स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा है -
    अब तक तो लादेन-इलियास
    करते थे छुप-छुप कर वार !
    सोए हुओं पर अश्रुगैस
    डंडे और गोली बौछार !
    बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
    पागल कुत्ते पांच हज़ार !

    सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
    ऐ दिल्ली वाली सरकार !

    पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
    आपका हार्दिक स्वागत है

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.