सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

बिखरता समाज ...सिमटती संवेदनाएं ....

   स मालिकों की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा, समय के कृत्रिम अभाव, मदिरा सेवन कर वाहन चालन, और यातायात नियमों की उपेक्षा आदि कारणों से जगदलपुर-रायपुर राष्ट्रीय राजमार्ग दुर्घटनाओं का पर्याय बन गया है. कदाचित ही कोई दिन ऐसा होता हो जब इस मार्ग पर कोई दुर्घटना न होती हो. 
     पिछले वर्ष रायपुर से जगदलपुर आते समय रात्रि में एक स्थान पर मात्र तीन किलोमीटर की दूरी में चार दुर्घटनाओं को देख और बारम्बार कहने के बाद भी टैक्सी चालक द्वारा टैक्सी न रोकने से मन दुखी हो गया था. मेरे यह कहने पर कि शायद इनमें से हम किसी की जान बचा सकें, चालक का तर्क था कि हम पुलिस और अदालत के चक्कर में क्यों पड़ें ? जहाँ भी सामाजिक न्याय के सरोकार की बात आती है,  हमारी सोच ऐसी ही होती जा रही है.....हम क्यों किसी चक्कर में पड़ें ? 
      निरंकुश होते जा रहे अपराधों की श्रृंखलाओं में भी हमारी यह आत्मघाती प्रवृत्ति कम उत्तरदायी नहीं है. यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर लोग न्यायिक प्रक्रियाओं से दूर क्यों भागना चाहते हैं ? क्या इसे इतना सरल नहीं बनाया जा सकता कि लोग स्वेछा से इसमें अपनी आवश्यक सहभागिता सुनिश्चित करना प्रारम्भ करें ?
    इस शनिवार की रात मैं जिस बस से जगदलपुर जा रहा था वह मार्ग में कोंडागांव के पास एक पेड़ से बुरी तरह टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी. बस पेड़ से टकराकर एक ओर झुककर जमीन से लग गयी जबकि दूसरी ओर के हिस्से का दरवाजा इस तरह टूट कर पिचक गया कि बाहर निकलने की रास्ता ही बंद हो गया. 
किसी तरह सभी यात्री बाहर आये. किसी ने मुझे संबोधित किया " डॉक्टर साहब आपको कितनी लगी ? " यह सुनकर एक लड़की मेरे पास आयी -" डॉक्टर अंकल देखिये, मेरा चेहरा खराब तो नहीं हो जाएगा ?" मैंने देखा- उसे माथे पर कंट्यूजन हुआ था. उसे हिम्मत बंधाई कि सामान्य है, ठीक हो जाएगा. 
    माँ को सूचित करने के लिए उसने मेरा मोबाइल माँगा. दुर्घटना की बात सुनकर शायद माँ रोई होगी इसलिए लड़की भी, जो कि अभी तक केवल डरी हुयी थी अब बुरी तरह रोने लगी. मैंने उसे फिर हिम्मत बंधाई. मेरा मोबाइल उसी के पास था, उसने कहा कि मैं उसके घर वालों को लोकेशन की जानकारी दे दूँ ताकि घर से कोई उसे लेने के लिए आ सके. इस बीच लड़की के घर वालों ने लड़की की चोट के बारे में मुझसे जानकारी माँगी. मैंने आश्वस्त किया कि मैं डॉक्टर हूँ और चिंता की कोई बात नहीं है. पर इस बीच उसके घर के किसी सदस्य ने एक बार भी यह नहीं  पूछा कि मुझे कितनी चोट लगी. जबकि सामने की एक लोहे की बार से टकराने के कारण मेरे गले में लगी अंदरूनी चोट के कारण मुझे बोलने में काफी कष्ट हो रहा था. 
     अन्धेरा बढ़ता जा रहा था ...एम्बुलेंस आ चुकी थी. घायलों को अस्पताल ले जाया गया. शेष लोग किसी वाहन की तलाश में सड़क के किनारे अपनी-अपनी सुविधा से खड़े हो गए. 
    जंगल की खामोशी वातावरण को और भी डरावना बना रही थी. उधर अँधेरे के साथ-साथ लड़की की चिंता बढ़ती जा रही थी. मेरे यह पूछने पर कि  क्या हम एक ओर को खड़े हो जाएँ, वह एक ओर को चल दी. मुझे उसका सामान उठाकरउसके पीछे-पीछे चलना पड़ा .
    हम सड़क के किनारे खड़े हो गए. इस बीच दो वाहन आये भी पर लड़की जाने के लिए तैयार नहीं हुयी. वह अपने चाचा की प्रतीक्षा कर रही थी. इस अँधेरे में और ऐसे माहौल में लड़की को अकेली छोड़ना मुझे उचित नहीं लगा. 
    लड़की थोड़ी -थोड़ी देर में अपनी माँ की याद करके रोने लगती थी. मैंने उसका ध्यान बटाने के लिए बात   करना शुरू  किया. पता चला वह रायपुर में एम.बी.ए . के लिए कोचिंग कर रही है. और जगदलपुर की सनसिटी में ही उसके एक चाचा का भी घर है.  
      इस बीच लड़की ने कई बार चेहरे के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की. वह आश्वस्त होना चाहती थी कि चोट का दाग बुरा नहीं लगेगा  . 
      थोड़ी देर में उसके कोंडागांव वाले चाचा जी गाड़ी ले कर आ गए. गाड़ी की रोशनी में उन्होंने हमें देख लिया था. वे गाड़ी से उतरे .....बगल में खड़ी लड़की के कंधे पर हाथ रखा और उसे ले चले. मैं कार तक उसे छोड़ने गया. चाचा जी ने उस व्यक्ति से बात करना कतई आवश्यक नहीं समझा जिससे अभी कुछ देर पहले वे फोन पर लोकेशन जानने  का प्रयास कर रहे थे . मैंने ही अपनी ओर से मंगलानी जी  (लड़की ने यही  उपनाम  बताया  था ) को चोट के बारे कुछ इन्सट्रकशन दिए. पर शायद उन्हें इसमें भी बिलकुल रूचि नहीं थी. वह जबरन, मेरा एक पक्षीय वक्तव्य रहा. 
गाड़ी में बैठते-बैठते मंगलानी जी ने पूछा -"आपको कहाँ  जाना  है ?" 
मैंने कहा  -"जगदलपुर" 
उन्होंने कहा -"अच्छा " 
      गाड़ी फुर्र से उड़ गयी. अँधेरे से भयभीत और चेहरे के लिए चिंतित लड़की को अब मेरी आवश्यकता नहीं थी. उसने या उसके चाचा ने औपचारिकतावश ही सही पर चलते समय एक शब्द भी कहना उचित नहीं समझा. 
       अब मुझे यह समझने में सरलता हो रही थी कि लोग क्यों दूसरों की सहायत्ता के समय इतने असंवेदनशील हो जाया करते हैं. 
     मुझे एक घंटे बाद जगदलपुर के लिए कोई वाहन मिल सका . शेष रास्ते भर मैं बिखरते समाज की सिमटती संवेदनाओं और शिक्षा से संस्कार की बढ़ती दूरियों को तलाश करने में लगा रहा.