मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

सच्ची, हम सीरियस बिलकुल नहीं हैं... सिर्फ मज़ाक भर कर रहे हैं....



१-  एक छोटा सा लोकतांत्रिक मज़ाक 

बड़ी आनाकानी के बाद 
निकाली थी उन्होंने एक डिबिया  
बोले- 
इतनी ही जिद है .........तो आओ, 
लगा दूँ  मलहम...
खोलो, कहाँ है घाव...
फिर .....आहिस्ते से 
डिबिया खोल,  
ढक्कन छोड़ 
फेक दिया सबकुछ दरिया में ...
बोले-
ये रहा तुम्हारा लोकपाल बिल.

२- दलाध्यक्ष ...गोया प्रधानमंत्री ...गोया राष्ट्राध्यक्ष 

एक छोटा सा सवाल है, 
अब से पहले 
कभी देखा है 
किसी दलाध्यक्ष को 
किसी प्रधानमंत्री 
या राष्ट्राध्यक्ष की छाती पर 
इस कदर मूंग दलते ?
नहीं .....?
तो देख लो...जी भर के देख लो 
और याद रखना 
इतिहास का 
ये दुर्गंधित ....काला पन्ना.

३-  प्रधान मंत्री 

गुस्सा मत करो उस पर.... 
न बेशर्म कहो ....
क्या करे बेचारा !
नाबालिग है अभी 
धीरे-धीरे सीख लेगा चलना 
बिना उंगली थामे भी. 
तुम तो बस 
वोट देते रहो उसे.

४- ये देश खाली करो... कि वो आ रहे हैं ...

पूरब से इन्हें बुला लो 
पश्चिम से उन्हें बुला लो 
उत्तर में ड्रेगन है 
दक्षिण में समंदर है 
चलो, हम समंदर में डूब जाएँ.

५- क्योंकि उनका हक़ है

इनको आरक्षण  
उनको आरक्षण  
सबको आरक्षण 
सिवा हमारे .....
क्योंकि उनका हक़ है 
और हमारा कभी था ही नहीं
ये हक......
कौन सी दूकान में मिलेगा ?.

६- जजियाकर भी देंगे 

मेज़बान शरण माँगते हैं
मेहमान घर में बसते हैं 
नागरिकता भी उन्हें ही दे दो
अपना काम तो हम  
द्वितीय नागरिकता से भी चला लेंगे 
जजियाकर भी देंगे. 
क्योंकि हम 
न तो अल्प संख्यक हैं....
न आरक्षित ...
न घुसपैठिये ....
न आतंकवादी ..... 
बस, 
केवल टुटपुंजिये  भारतीय ही तो हैं.
आपका कर ही क्या लेंगे ? 

7-   पत्रकार
वे 
भ्रष्ट थे,
नौकरी से हाथ धो बैठे. 
सुना है ............
आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ 
लड़ाई लड़ते हैं  
बहती गंगा में 
जम के हाथ धोते हैं.

८- चौथा स्तम्भ 

लोग 
उन्हें कलम के सिपाही कहते हैं.
वे 
बड़े-बड़े दफ्तरों में जाते हैं
शाम को झूमते हुए 
छपे हुए गांधी के साथ वापस आते हैं. 

९- पुरस्कार/सम्मान    

दे दो 
उस मक्कार.... चालबाज़..... निकम्मे को,   
वह इसी के लायक है नालायक ...
दुष्ट कहीं का....
और भी जो कुछ हो सकता हो वह भी कहीं का .... 
................................................................................
हम क्या इतने गए गुजरे हैं 
कि सभा में बुलाकर 
किये जाएँ बेआबरू 
और ज़िंदगी भर कहे जाएँ-
"जुगाड़ू साला" 



23 टिप्‍पणियां:

  1. ... देखन में छोटे लगें पर घाव करें गम्भीर! अत्युत्तम!

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  2. लाजवाब कौशलेन्द्र जी.....सभी क्षणिकाएँ बेहद सटीक एवं धारदार हैं.....बधाई स्वीकारें...

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  3. बहुत सुन्दर. अभी दक्षिण में हूँ. नीचे से ऊपर की ओर बढ़ रहा हूँ. कोयम्बतूर तक पहुँच गया हूँ. सोचता हूँ वापस नीचे की और लौट चलूँ. समुन्दर पास ही है.

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  4. एक से बढ़ कर एक क्षणिका .. सीधा वार करती हुई ..

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  5. यह रचना आम लोगों के साथ-साथ खास लोगों में भी जगह बना लेगी।

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  6. तेज चाकू से कुचरने जैसी पंक्तियाँ है मगर तेल डाले कानों में ,आँखों पर स्वार्थ के परदे , सब बेअसर है !

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  7. अच्‍छा हुआ, आपने सच्‍ची-सच्‍ची बता दी.

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  8. वाह क्या बात कही है...जीवन में उतरने लायक रचना...मेरे ब्लॉग पर भी स्वागत है..www.swativallabharaj.blogspot.com

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  9. बहुत बहुत बढ़िया...
    लोग
    उन्हें कलम के सिपाही कहते हैं.
    वे
    बड़े-बड़े दफ्तरों में जाते हैं
    शाम को झूमते हुए
    छपे हुए गांधी के साथ वापस आते हैं.
    सब रचनाएँ कमाल.....
    सादर.

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  10. बस्तर मुझे भी प्रिय है बहुत....
    तीरथगढ़ और मचकोट...वाह...

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  11. एक एक को भिगो भिगो कर मारा है.
    जबर्दस्त्त.

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  12. इतनी इतनी अच्छी लगी कि सब्द नहीं मिल रहे
    बेमिशाल

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  13. क्या बात है....
    गहरे उतार दिया आपने...
    सादर...

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  14. डॉक्टर साहब कमाल का पोस्ट मार्टम किया है इस मारी हुयी व्यवस्था का जिसे लोकतंत्र कहते हैं!!

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  15. sabhi rachnaayen desh ki trasadi ko bayaan karti hai. sahi kaha, sahi ko aarakshan fir hum kahaan jaayen...
    इनको आरक्षण
    उनको आरक्षण
    सबको आरक्षण
    सिवा हमारे .....
    क्योंकि उनका हक़ है
    और हमारा कभी था ही नहीं
    ये हक......
    कौन सी दूकान में मिलेगा ?

    kholte jazbaat ko salaam. nav varsh ki mangalkaamnaayen!

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  16. बहुत धार है भाई, लेखन में! कलम काफी नुकीली है, ऐसी ही बनीं रहे....

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  17. टटपूंजिये भारतीय ही रह गए है हम क्योंकि उपरोक्त किसी श्रेणी में आते नहीं , इसलिए इसके लाभार्थी भी नहीं . किस तरह मापदंड बदल गए है , आपके व्यंग्य में स्पष्ट परिलक्षित है !

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  18. आपकी इस पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है...
    आज का बुलेटिन, महंगी होती शादियाँ, कच्चे होते रिश्ते

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  19. तीन वर्ष पुरानी रचना को आप सबने पुनः स्वीकारा, आभारी हूँ आप सबका । धन्यवाद !

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.