शनिवार, 28 जनवरी 2012

तुमायी सौं ....

"ए सखी ! सुन्यो हे बसंत आय गयो .....जे देखो ....आम के पेड़ में बौर कैसो झूम रयो ए....."
"मोय तो लगे तू भी बौराय गयी ए.......जे आम को पेड़ नाय ए ........"
"हाय दइया...तौ का मैं बाबरी है गयी ........"
" और नइ तो ...... जे तो बस्तर में चिरौंजी को पेड़ बौरायो ए  ......चल छोड़ ....तू  तो जे गीत को मजो लैले ....    

हरो घाघरो पीली चुनरी पीलो गजरो 
मौसम ने लै लई अंगड़ाई छाँट्यो कोहरो....
छाँट्यो कोहरो तुमायी सौं ह्वै गयो बेसुध मैं नाच्यो झूम-झूम के.

गोरी को नयो-नवेलो मीत, पगड़ी सर पे बांधे पीत 
नैन सों झरैं प्रीत के गीत.....
झरैं प्रीत के गीत तुमायी सौं ह्वै गयो बेसुध मैं गायो झूम-झूम के.

कोयल मस्ती में कूके, हवा ने कान हैं फूके 
भ्रमर अब काहे को चूके........
काहे को चूके तुमायी सौं ह्वै गयो बेसुध मैं आयो झूम-झूम के.

बचैगो ना कोऊ प्यासो, निकल कें बाहर तो अइयो
संदेसो कलियन ने भेज्यो ....... 
कलियन ने भेज्यो तुमायी सौं ह्वै गयो बेसुध मैं झूम्यो झूम-झूम के.

हुलस के झांकएँ तेरे अंग, टपके अंग-अंग मकरंद 
आजा तोय लगाय लऊँ अंग........ 
तोय लगाय लऊँ अंग तुमायी सौं ह्वै गयो बेसुध मैं पी ल्युं झूम-झूम के. 



चिरौंजी

12 टिप्‍पणियां:

  1. मासानां मार्गशीर्षोSहम् ऋतूनां कुसुमाकरः ...
    वसंत के स्वागत के लिये चिरोंजी का उत्साह देखने लायक है। एक नज़र देखकर मुझे पत्ते चम्पा जैसे लगे थे। ऋतु के अनुकूल चित्र बड़े अच्छे लगे और वैसी ही सुन्दर कविता।

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    1. अनुराग जी ! झुट्ठी ना कहूँ तो चिरोंजी को फूल-पत्ता पहले कभऊँ ना देखो होएगो तैने. अरे बाबरे ! मैं तो तोय फल भी दिखाय देंगो ......धीरज तो धर....तोय पूरो बस्तर घुमाय देंगो......( वोऊ ..ब्रज में.....)

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  2. भयो मगन बेचैन आतिमा
    मन मदन भई नाच्यो, देख्यो तारी पोस्ट निराली
    तु्म्हारी सौं..तुम्हारी सौं..

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    1. बस्तर की छटा में ...बनारस की आत्मा में .....ब्रज के छंदन को प्रवेश भयो ...जय-जय राधे !

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  3. डॉक्टर साहब!! कभी कभी तो शक होने लगता है कि आप आदमियों के डॉक्टर हो या घास-फूस के (बकौल हृषिकेश मुखर्जी) यानि प्रकृति के!! क्या छाता बिखेरी है, छंदों में और चित्रों में!! वासंती आनंद!!

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  4. सलिल भैया ! हॉस्पिटल के बाद जिस समय बाकी डॉक्टर पैसा कमाने में रात-दिन लगे रहते हैं ..मैं या तो अपने कमरे में कुछ लिखता रहता हूँ या फिर कैमरा लेकर कहीं भी आवारागर्दी करता रहता हूँ.......मुझे मेरी यह ज़िंदगी बहुत पसंद है. जंगल में जाकर अकेले बैठे रहना ....कहीं किसी पहाड़ पर जाकर बैठना ...और कहीं कोई पहाडी नदी (या नाला ही )मिल जाय तो क्या कहना.......पैसे ही कमाता रहूँगा तो ज़िंदगी कब जियूँगा .....
    सच्ची कहा आपने .....मुझे घास-फूस पसंद है .....शाकाहारी भी हूँ .....

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    1. इस जिंदगी से किसी को भी रश्क हो जाये!

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    2. आज अपन जंगल में बुचिया के देख के मन परसन्न हो गइल ...लागता के केहू आपन पहुना आइल बा ......नईखे बुझात ....तोर कइसन स्वागत करीं हम .....

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  5. हम भी चिरोंजी देख कर ही बौरा गए...गीत भी तो ऐसा है कि मन झूम झूम उठे!
    बेहद खूबसूरत...वसंत की तरह ताजगी से भरा हुआ भी।

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  6. जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं इसलिए इन पर ज्यादा ध्यान रहता है शायद .....:))

    पर गीत तो कमाल का है ...इसे स्वर मिल जाते तो क्या बात थी ....
    आप ही गा दीजिये ..............

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.