गुरुवार, 1 मार्च 2012

आगी बरय

फागुन आयो रे साँवरिया
कलियन भँवरा छेड़ रह्यो॥
मैहर सों लौट आयी कोयलिया
सूनी-सूनी बगियन शोर मच्यो।।
परदेस बसे नहिं आये साजन
जागी-जागी अँखियन भोर भयो॥
गदराय रयी महुवा झूम कें कहै
देखो मोहें आमा छेड़ रह्यो ॥
 माथे पे चार (प्रियाल) ने मौरा सजायो
पाँव काजू को भी भारी भयो॥
हार(खेत)-बगीचा सब बौराये
आगी बरय सेमर देहिंया ॥
 भीग गयी चुनरी, है भीगी अँगिया
लपट दिख रयी ना, बरय देहिंया ॥
गलियन-गलियन छोरा-छोरी
दैं पिचकारी जोरा-जोरी ॥
होरी में हर छोरा देवर लगय
रंग पिचकारी को जेवर लगय ॥
ना मैं जीतो ना तू हारी
प्यारी-प्यारी लागयँ गोरी तोरी गारी ॥
ऐसो रंग लगाय दऊँ गोरी
जनम-जनम ना भूलय होरी ॥
छोड़ कें ना जा पाय बाबरिया
गलियन-गलियन शोर मच्यो ॥

8 टिप्‍पणियां:

  1. भाई अपुन तो फागुन के रंग में सराबोर हो गए आपके शानदार रचना पढ़ कर... कसम से आनंद आ गया...

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  2. शुक्रवारीय चर्चा मंच पर आपका स्वागत
    कर रही है आपकी रचना ||

    charchamanch.blogspot.com

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  3. बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती!

    आप सभी सम्माननीय दोस्तों एवं दोस्तों के सभी दोस्तों से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
    ( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया

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  4. .इससे बढ़िया होरी के रंग और क्या हो सकतें हैं जानपदिक भाषा की छटा देखते बनी है चित्र सजीव हो गीत के साथ अठखेली करे रहे .

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  5. "होरी में हर छोरा 'देवर' लगय
    रंग पिचकारी को 'जेवर' लगय
    ना मैं जीतो, ना तू हारी
    प्यारी-प्यारी लागयँ, गोरी तोरी गारी"

    होली की इस रंगीन 'छटा' से रूबरू करने हेतु, बहुत-बहुत बधाइयाँ.
    .... आपको सपरिवार होली की शुभ कामनाएं.

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  6. हमायी गली में होरी खेलवें को आये सबई नये पुराने लोगन कों नमस्कार! रंग को थोरो सो छींटा आपऊ के ऊपर परो हे.....जानकें हमऊँ को बहोत आनन्द भयो। फेर अइयो खेलवें को होरी, हम बाट जोहत रहेंगे.....

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.