रविवार, 25 अगस्त 2013

हमें उत्तर भी चाहिये और समाधान भी ....


यदि किसी अल्पायु बालक को उसकी बौद्धिक प्रखरता के कारण विश्वविद्यालय में किसी वयस्क की तरह प्रवेश दिया जाना न्यायसंगत है तब किसी किशोर को उसकी पाशविक क्रूरता के लिये वयस्क की तरह दण्ड देना न्यायसंगत क्यों नहीं है?
कोई किशोर यदि अपने से उम्र में बड़ी लड़की के साथ यौन दुष्कर्म में शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम है तो क्यों नहीं उसे पीड़िता लड़की से उम्र में बड़ा मान लिया जाना चाहिये ?
किशोर मन यदि कोमल न हो कर क्रूर हो तो क्या वह तब भी वयस्क  न माना जायेगा ?
अपराध करने के लिये सोच उत्तरदायी है या शरीर की प्रौढ़ता ? सोच के लिये संस्कार उत्तरदायी हैं या शरीर ?
क्रूर किशोर द्वारा दी गयी निर्मम पीड़ा और किसी वयस्क द्वारा दी गयी निर्मम पीड़ा की कोटि में पीड़िता किस तरह अंतर कर सकेगी ?
समान अपराध और समान क्रूरता के लिये दण्ड भी समान क्यों नहीं होना चाहिये ?
क्या मांसभक्षण मनुष्य को क्रूर बना देता है ?
क्या इस्लाम में क्रूर यौनदुष्कर्मियों के लिये कोई दण्ड विधान नहीं है ?
क्या किसी इस्लाम गुरु के पास इन क्रूर पापियों के लिये कोई फ़तवा नहीं है ?
क्या स्त्री को शक्ति मानकर पूजने वाले हिन्दुओं की  वर्तमान पीढ़ी के कुछ लोग इतने पापी और अधम हो गये हैं कि वे आर्यों की सनातन संस्कृति में आग लगाकर ही चैन लेंगे ?
देश किस ज़हन्नुम में जा रहा है और इसके लिये ज़िम्मेदार लोग कहाँ हैं?  

 

 

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