गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

चुनाव का मौसम

लो चुनाव का मौसम आया नई-नई सौगातें लाया ।
हर वोटर का है अरमान रोटी, कपड़ा और मकान ।
द्वार पे देखो नेता आया भ्रष्टाचार का झोला लाया ।
बचे-खुचे आश्वासन ले लो वोट मगर बदले में दे दो ।
साइकल दे दी पुस्तक दे दी इसकी कौड़ी उसको दे दी ।
मूर्खतंत्र के भाग्य विधाता तेरी जेब से है क्या जाता ।
और बढ़ाकर बोली बोलो चावल भी फ़ोकेट में दे दो ।
इतना ही मन है देने का तो एक महल बनवा दोगे क्या ?
अपनी किस्मत जैसी ...
चोखी किस्मत भी लाकर दोगे क्या ?
नेता जी तुम क्या-क्या दोगे फोकेट में क्या जग दे दोगे ?
प्रतिभाओं का गला घोटकर आरक्षण ही बाँटा अब तक ।
संख्याओं से खेल खेलकर बाँट दिया है सारा जनमत ।
पाँच सितारा में तुम खाते नमक-भात हमको खिलवाते ।
इन्हें पढ़ाते शिक्षाकर्मी उनके बच्चे लंदन जाते ।
चाल तुम्हारी समझ गये हम बात तुम्हारी ताड़ गये हम ।
कुछ टुकड़े फोकट में देकर राजमहल तुम लूट रहे हो ।
डाल रहे हमको ये आदत फोकट खायें फोकट सोचें ।
नमक-भात से नेक भी आगे जीवन में बढ़ने ना पायें ।
फोकट के कुछ टुकड़े देकर देश अपाहिज क्यों करते हो ?
हमें बनाकर लंगड़ा-लूला अपनी जेबें क्यों भरते हो ?
ख़ैरात बाँटने की आदत से भीख माँगना मत सिखलाओ ।
कुत्तों जैसी पूँछ हिलाना इंसानों को मत सिखलाओ ।
रिश्वतखोरी बन्द करो और लूटे अवसर वापस कर दो ।
लूट-लूट कर हुये गुलाबी गालों की कुछ रंगत दे दो ।
रोज-रोज ये ख़ून ख़राबा रोक सको तो इसको रोको ।
दल में इतनी टूट-फूट है दल-दल का ये दंगल रोको

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.