बुधवार, 11 जून 2014

हिमांचल के श्वानमित्र

हिमांचल की धरती पर काँगड़ा से लेकर किन्नौर तक की यात्रा में हमें कोई भी दीन-हीन और दुबला-पतला नहीं दिखा । मनुष्य से लेकर पशु तक सभी स्वस्थ्य और सानन्द दिखायी दिये । प्रकृतिप्रदत्त जैव अनुकूलन का गुण पग-पग पर दिखायी देता है । गायों, भैंसों एवं अन्य पालतू पशुओं के शरीर पर उगे लम्बे बाल इसी अनुकूलन के परिणाम हैं ।      

  शिमला में कुफरी के मार्ग पर सवारी के लिए ग्राहकों की प्रतीक्षा में खड़े याक ।      
आप आधुनिक गाड़ियों के स्वामी हो सकते हैं लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में घोड़ों और खच्चरों का अभी तक कोई विकल्प नहीं आ सका है । शिमला में आधुनिक शहरी बच्चों को सवारी कराने के लिये प्रतीक्षारत पहाड़ी बच्चे ।      

    तीव्र गति कारों के युग में मनुष्य के बहुत पुराने सहायक किसी तरह अपना अस्तित्व बचाये रखने में सफल हुये हैं ...यह देखकर अच्छा लगा । 

 पूरे हिमांचल में मुझे एक भी कुत्ता भूख से बेहाल, ललचाई दृष्टि से पर्यटकों की ओर ताकता हुआ, दुबला-पतला-मरियल, आपस में झगड़ता हुआ या अपरिचितों को देखकर बुरी तरह भौंकता हुआ नहीं मिला । पूरी यात्रा में मैंने हिमाँचली कुत्तों को केवल दो ही स्थितियों में देखा - सोते हुये या फिर आपस में खेलते हुये । यह दृष्य किन्नौर जिले के सांगला गाँव का है ।      

 अपने लम्बे बालों का कम्बल ओढ़े भोर की गुनगुनी धूप में नींद लेता एक हिमाँचली श्वान 

 यह स्वस्थ्य कुत्ता पालतू नहीं है । 

हिमांचल के श्वानमित्र

अज़नबियों के साथ हिमाँचली गाँवों के कुत्तों का प्रेमपूर्ण दोस्ताना व्यवहार आपको ख़ुश कर देगा । 

यह है ओल्ड इण्डो-तिब्बत रोड यानी भारत का राष्ट्रीय राजमार्ग- 22 ...जो आपको लेह होते हुये तिब्बत और चीन तक ले जाने वाला है । पर्वतों की कठोर चट्टानों को काटकर बनाया गया सिल्क रोड पर्यटकों को रोमांच से भर देता है ।   


 ...नहीं-नहीं, ये चीन नहीं जा रहीं, बल्कि सिल्क रोड पर चलने का आनन्द उठाते हुये आगे के एक गाँव में ऊन बनाने के लिए अपने बाल देने जा रही हैं। इतनी ग्रीष्म में भी छितकुल गाँव की कंपाने वाली शीत से बचने में मदद के लिए हम इन भेड़ों के कृतज्ञ हैं ।    


2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.