रविवार, 19 अक्तूबर 2014

ये हमारी चिंता के विषय क्यों नहीं बन सके ?


 भारत में हर कोई शक्तिशाली होना चाहता है । शक्तिशाली होने के लिए अधिकारवान होना पड़ता है । अधिकारवान होने के लिए परिश्रमी होना पड़ता है । यह परिश्रम सात्विक, राजसिक या फिर तामसिक हो सकता है । तामसिक प्रकार के परिश्रम के लिए बाहुबल, कूटरचना या फिर धनबल की आवश्यकता होती है ।

भारत में अधिकारवान होने के लिए तामसिक परिश्रम अधिक सरल और लोकप्रिय उपाय है ।

एक बार जब हम अधिकारवान हो जाते हैं तो शक्ति हमारे चारो ओर नृत्य करने लगती है ।

जब हम अधिकारवान हो जाते हैं तो अनायास ही ज्ञानवान भी हो जाते हैं । यह ज्ञान कोई साधारण ज्ञान नहीं होता, किसी एक विषय का भी नहीं होता, यह तो सम्पूर्ण ज्ञान होता है, सभी विषयों और सभी क्षेत्रों का सम्पूर्ण ज्ञान । इस ज्ञान के आगे विषय विशेषज्ञ, ऋषि और महर्षि आदि पानी भरते से दृष्टिगोचर होते हैं ।
ऐसे परम ज्ञानियों के लिए कोई जानकारी, कोई उपदेश, कोई अनुसन्धान, कोई अन्वेषण अनुपयोगी होता है क्योंकि उनके ज्ञान का स्तर इन सबसे ऊपर होता है ।

हमारे देश में अधिकांश नेता और अधिकारी इसी कोटि के होते हैं । ऐसे अधिकारवान और शक्तिशाली परमज्ञानियों की छत्रछाया और निर्देशन में ही ऋषियों, महर्षियों और वैज्ञानिकों को काम करना चाहिये क्योंकि यही भारत की त्रासदी है ।

यह त्रासदी भारत के लिए अभिषाप है .....और इस अभिषाप को भोगने के लिए भारत के सात्विक लोग बाध्य हैं । वे इसलिये बाध्य हैं क्योंकि उन्होंने इस देश में जन्म लिया । उन्होंने इस देश में जन्म क्यों लिया यह एक अनुसंधान का विषय है ।

भारत अद्भुत है । मैं कई बार इस उलझन में फस जाता हूँ कि दर्शन और आध्यात्मिक ज्ञान में सर्वश्रेष्ठ होने और श्रेष्ठ वैज्ञानिक प्रतिभाओं का देश होने के बाद भी यह देश इतना घटिया क्यों है कि यहाँ की प्रतिभायें पलायन के लिए विवश होती रही हैं .....और विदेशी आक्रमणकारी इस देश को स्वर्ग मानते रहे हैं? निश्चित ही यह एक गहन चिंतन का विषय है ।


2-
यह एक ख़ुशख़बरी है........
        कि अब मरने के बाद भगवान नहीं बन पायेंगे नेता ।

....क्योंकि अब किसी नेता के आवास को राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनाया जायेगा । कलियुग में कौन है ऐसा जिसका राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाय ? जिस देश में राम और कृष्ण जैसे, रामानुजम और डॉ. हरगोविन्द खुराना जैसे, सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे राष्ट्रीय पूर्वजों की स्मृतियाँ और उनसे जुड़े चिन्ह संकटग्रस्त हो गये हों, उनके स्मारकों के बारे में कोई सोचने वाला न हो, सोचने वाला हो भी तो उसकी सोच विरोधों के दलदल में डूब गयी हो ....ऐसे दलदली व्यवस्था वाले देश में किसी नेता के स्मारक को राष्ट्रीय समारक न बनाये जाने की नीति बेशुमार भगवानों वाले देश की प्रजा के लिये राहतभरा है ।

वास्तव में हम भारतीय लोग आत्ममहानता की छ्द्म आत्ममुग्धता से ग्रस्त हैं । महानता के क्षेत्र में हम इतने महत्वाकांक्षी हैं कि अपने मरने के बाद भी अपना प्रभामण्डल बनाये रखने के लिए अपने जीते-जी कुछ घटिया सी जुगाड़ कर लेना चाहते  हैं ।

अब किसी नेता के आवास को राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनाया जायेगा । कलियुग में कौन है ऐसा जिसका राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाय ? जिस देश में राम और कृष्ण जैसे, रामानुजम और डॉ. हरगोविन्द खुराना जैसे, सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे राष्ट्रीय पूर्वजों की स्मृतियाँ और उनसे जुड़े चिन्ह संकटग्रस्त हो गये हों, उनके स्मारकों के बारे में कोई सोचने वाला न हो, सोचने वाला हो भी तो उसकी सोच विरोधों के दलदल में डूब गयी हो ....ऐसे दलदली व्यवस्था वाले देश में किसी नेता के स्मारक को राष्ट्रीय समारक न बनाये जाने की नीति बेशुमार भगवानों वाले देश की प्रजा के लिये राहतभरा है ।

वास्तव में हम भारतीय लोग आत्ममहानता की छ्द्म आत्ममुग्धता से ग्रस्त हैं । महानता के क्षेत्र में हम इतने महत्वाकांक्षी हैं कि अपने मरने के बाद भी अपना प्रभामण्डल बनाये रखने के लिए अपने जीते-जी कुछ घटिया सी जुगाड़ कर लेना चाहते  हैं ।

4
सावधान!   
एक नया आतंकी मुल्क "ख़ुरासान" आकार ग्रहण करने की तैयारी में है ।

यह ख़ुरासान मुल्क भारत सहित कई एशियायी देशों को निगलने वाला है और भारत में इस पर कोई जनान्दोलन तक नहीं, यानी भारत की गुलामीप्रिय प्रजा को यह सब पसन्द है । भारत ने हमेशा ही बाहुबल के आगे घुटने टेके हैं और नतमस्तक हो कर दानवों का स्वागत किया है ।

यदि भारत, अमेरिका और रूस ने मिलकर इस्लामिक मुल्क के नाम पर आतंक कायम करने में माहिर इन ज़ेहादियों का मुक़ाबला समय रहते नहीं किया तो दुनिया को तबाह होने में और कलियुग का अंत होने में अब अधिक समय नहीं लगेगा ।

हमने दैत्यों-दानवों और राक्षसों की कहानियाँ पढ़ी हैं । महाशक्तिसम्पन्न ये आसुरी शक्तियाँ सदा ही मानवता के लिए अभिषाप की तरह फलित होती रही हैं । बीते कुछ महीनों में असुर देश सीरिया में दानवी शक्तियों ने अपना रौद्ररूप पूरे विश्व को दिखाया । इन दानवों ने मानवता के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया है । उनकी कल्पना का एक महाराष्ट्र “ख़ुरासान” आकार लेने की तैयारी में है । इस हाइपोथेटिकल इस्लामिक महाराष्ट्र की उत्तरी सीमायें भारत-चीन की सीमा तक विस्तृत होने वाली हैं । भारत के कुछ दानव इस्लामिक महाराष्ट्र के स्वागत की तैयारी में कश्मीर में झण्डे लहरा रहे हैं । कश्मीर का प्रधानमंत्री इस सत्य को छिपाने के लिए बाध्य है ।

        हम जिस सांस्कृतिक भिन्नता और अनेकता में एकता की बात करते नहीं थकते उसका वास्तविक स्वरूप अब पूरा विश्व देख पा रहा है । वह बात अलग है कि भारत के लोग अभी भी उस स्वरूप को देख पाने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं । भारत के लोगों में दृष्टिमान्द्यता की व्याधि व्याप्त है ...इस दृष्टिमान्द्यता की चिकित्सा कौन करेगा ? इसका उत्तरदायित्व किस पर है ?


हम बताते हैं, इसकी चिकित्सा कोई नहीं करेगा क्योंकि इसका उत्तरदायित्व किसी के पास नहीं है । क्यों नहीं है उत्तरदायित्व ?  भारत क्यों बारबार विदेशियों के द्वारा पददलित होता रहा है ? भारत पर सुदूर पश्चिम के लोग सदियों तक क्यों हुक़ूमत करने में सफल रहे ? भारत की प्रजा अपने किन पापों के लिये जजिया कर, नमक कानून, कपास कानून और नील कानून जैसे आतंकी कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य होती रही है ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर खोजने की परवाह तो भारत की निरीह प्रजा को भी नहीं है । चलिये ....हम और आप भी मुँह ढक कर सो जायें । 

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