सोमवार, 9 मार्च 2015

न करियो होरी पे ऐसी रार

ऐसे में कैसे कहें ......कि लला फिर अइयो खेलन होरी !

होरी में फंस गयी नार .......कन्हाई तुम हौ कहाँ ? 

सात समन्दर पार तें आये खेलन होरी रे !  


 नन्दी बाबा भी ना बचे जा होरी में 
कोई चिंतित है स्वाइन फ़्ल्यू से तो कोई है कैमरे पर पड़ने वाली रंग की बौछार से 

  जा विदेशी को तौ ना भूलैगी कभऊँ जा पतलून फार होरी ! 
 रंग रंगीलो फागुन आयो ...मस्ती की होरी । वृन्दावन में खेलन आयीं लाज-लजीली छोरी ॥ 

जापानी महिला के साथ फ़ोटो खिचाने को आतुर एक स्थानीय भक्त 


       गुड़गाँव में बेटी वेणु के यहाँ से वापस आते समय मथुरा जाने का निश्चय था। अगले दिन होली थी तो सोचा क्यों न कुछ घण्टे वृन्दावन में भी बिताये जायं। वृन्दावन पहुँचते-पहुँचते साढ़े नौ बज चुके थे और होरियारों की टोलियाँ बाँके बिहारी मन्दिर की ओर अरारोट बेस में बने रंग-अबीर बरसाती हुयी प्रस्थान कर रही थीं। बिना विलम्ब किये मैं भी भीड़ का एक हिस्सा बन गया। लोगों ने बताया कि इस बार विदेशियों की संख्या कुछ अधिक ही थी। अपने कैमरों को पॉलीथिन से अच्छी तरह ढक कर सुरक्षित किए विदेशी लोग भी होली के रंग और मस्ती में पूरी तरह डूबे हुये थे । इन विदेशी पर्यटकों में इज़्रेली और ब्रिटिशर्स के अतिरिक्त इस बार जापानी भी अच्छी संख्या में थे।

     वृन्दावन में होली का यह मेरा प्रथम अवसर था। प्रारम्भ के दो घण्टे तक होली बहुत ही शालीन रही, इसके बाद हुड़दंग और अश्लीलता शुरू हो गयी जो अंत में पूरी तरह बद्तमीज़ी और गुण्डागर्दी में बदल गयी। होली मनाने अन्य प्रांतों से कई लोग सपरिवार आये थे जो रंग से सराबोर हो चुकीं अपनी स्त्रियों और लड़कियों को मनचलों के उद्दण्ड हाथों की अश्लील हरकतों से बचाने में लगे रहे। युवकगण अपनी-अपनी प्रेमिकाओं के साथ थे और अपनी बाहों के घेरे में उन्हें लेकर ऐसे चल रहे थे जैसे कि वे बीमार हो गयी हों। भीगे कपड़ों में लड़कियाँ अपने प्रेमियों से चिपकी हुयीं, अबीर से बचने के लिये आँखें बन्द कर सिर को नीचे किये धीरे-धीरे खिसकती हुयी भीड़ में आगे बढ़ रही थीं। कुछ लड़कियाँ इतने कम और झीने कपड़े पहनकर आयी थीं कि रंग में सराबोर होने के बाद उनकी बॉडी स्क्रिप्ट की फ़ोटो लेने के लिये फ़ोटोग्राफ़र्स में जहाँ होड़ लग जाती थी वहीं मनचलों को भी अंग स्पर्श का सहज सुख प्राप्त हो रहा था। वृन्दावन की इस होली की एक विशेषता यह भी थी कि कोई भी व्यक्ति न तो किसी क्रिया-प्रतिक्रिया का विरोध करता था और न उसका बुरा मानता था। यानी लड़कियाँ ख़ुश नज़र आ रही थीं, हो सकता है कि वे समानता के इस अधिकार से रोमांचित हो रही हों या फिर भाँग की ठण्डायी के सुरूर में अपनी दबी-ढकी ऐषणाओं से नये निकले पंखों से आसमान छू लेने के सुखद अनुभव में डूब जाने का आनन्द ले रही हों। किंतु इस बीच एक विदेशी युवती ने एक किशोर वय होरियारे को पाँच-छह घूँसे जमा ही दिये। किशोर निर्लज्ज हँसी हँसता हुआ कहता रहा – “अतिथि देवो भव ! अतिथि देवो भव ! अतिथि देवो भव !” मैंने किशोर को शाबाशी दी – “भारत का नाम ख़ूब ऊँचा कर रहे हो, माँ-बाप ने अच्छी शिक्षा दी है।“ किशोर, जो कि किसी अच्छे परिवार की जली खुरचन सा प्रतीत हो रहा था, बराबर हँसता हुआ “अतिथि देवो भव” की ग़ुस्ताख़ रट लगाये रहा।
       होली जब अपने समापन की ओर थी तो स्थानीय लोगों ने, जिनमें मिठायी दुकानों में काम करने वाले नौकर, मज़दूर और दुकान मालिकों के किशोर वय पुत्र सम्मिलित थे, पहले तो बरतन धोया हुआ पानी लड़कियों पर फेकते रहे फिर जब वह समाप्त हो गया तो बाल्टी भर-भर नाली का पानी फेकने लगे। सुसभ्य से प्रतीत होने वाले स्थानीय लोग आनन्द में डूबे जा रहे थे किसी बुज़ुर्ग को भी यह सब कुकृत्य रोकने की आवश्यकता का लेश भी अनुभव नहीं हुआ। हाँ ! एक युवा पर्यटक से जब नहीं रहा गया तो दुःखी हो कर उसने नाली का पानी और सड़क का कीचड़ लोगों पर डालने वाले समूह से कहा – “ये विदेशी जब अपने देश जायेंगे तो वृन्दावन की बड़ी तारीफ़ करेंगे ...अरे कुछ तो शर्म करो ...क्यों वृन्दावन का नाम डुबाने पर तुले हुये हो।“
      समूह ने प्रतिक्रिया में उस युवक के ऊपर कुछ कीचड़ और एक बाल्टी नाली का पानी फेककर अपनी ख़ुशी का इज़हार किया। युवक ने चुपचाप आगे बढ़ लेने में ही भलायी समझी।
      
       मैं एक बात समझ नहीं सका, जहाँ देशी-विदेशी पर्यटकों का किसी उत्सव में सम्मिलित होना पहले से तय होता है वहाँ स्थानीय प्रशासन की ओर से शालीनता और भद्रता बनाये रखने के लिये कोई योजना क्यों नहीं बनायी जाती? यह कैसा सुशासन है और यह कैसा राष्ट्रप्रेम है? प्रशासन ही नहीं, स्थानीय नागरिकों का भी यह उत्तरदायित्व है कि वे ऐसे उत्सवों की मर्यादा को शालीन बनाये रखने के लिये सक्रिय होकर आगे आयें, हर बात के लिये प्रशासन का मुँह ताकना समाज की पंगुता का द्योतक है।


       वृन्दावन के लोग यदि इस पोस्ट को पढ़ कर अपनी सामाजिक और नैतिक चेतना को जाग्रत कर सकें तो हमारी खिन्नता कुछ कम होगी। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. kitni rochak tasweere hain..aur unke diye shirshak to alag hi lutaf de rhe hain...patloon wala title to bahut hi rochak.....so happpy nd proud...:)

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  2. hmmm....afsos hota he bahut baba.....ye sab dekh sun sehan kr....pr jab tak andhiyara he roshni talshaate rehna hoga...khud ko aur apno ko andhero se bchaate rehna hoga

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    1. सोचता हूँ अगले वर्ष होली से तीन माह पहले मथुरा इस सम्बन्ध में एक पत्र लिखकर अनुरोध करूँगा कि वे स्थानीय अभद्रता को रोकने के लिये प्रशासनिक अधिकारों का उपयोग करें । सम्भव हुआ तो इसी उद्देश्य से एक प्रतिनिधिमण्डल के साथ भेंट भी करूँगा । शायद कुछ अच्छा हो सके ।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.