शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

राम की राह पर स्वामी !


हे स्वामी !
तुम्हें आह लगेगी
उन कन्यायों की
जिनके साथ
आस्था के नाम पर छल करते हुये
यौनदुष्कर्म करने का 
अभ्यस्त रहा है एक ढोंगी संत ।
ढोंगी संत के संकेत पर
उसके पाखण्डी शिष्य
हत्या कर देते हैं साक्षियों की ....
उन साक्षियों की हत्या
जो कूद पड़ते हैं मैदान में
अपनी अंतरात्मा की पुकार पर
दिलाने के लिये न्याय
उन मातृशक्तियों को
जिनकी दुहाई देते रहें हैं आप
भारतीय संस्कृति के नाम पर ।  
और आज
पाला बदलकर जा रहे हैं आप
करने के लिये पैरवी
उसी अपराधी की
ताकि हो सके कारावास से मुक्त
एक पापी ....
एक ढोंगी संत ।
भारतीय संस्कृति का
यह कौन सा आदर्श है ?
माना कि आपकी पार्टी के
जेठे सदस्य की मलिन बुद्धि
पापियों और ख़तरनाक अपराधियों की पैरवी के लिये
सदा मचलती रही है
किंतु उस पापमार्ग पर चलने के लिये
आपके साथ कौन सी विवशता है ?  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.