शनिवार, 12 मार्च 2016

जे.एन.यू. काण्ड

ख़ूनी ख़ंज़र के रखवाले लेने आये आज़ादी
गाली दे-दे माँग रहे वे जाने कैसी आज़ादी ॥
आग लगाकर घर में मेरे कहते दे दो आज़ादी
बन्दी है घर में ही उनके डरी-डरी सी आज़ादी ॥
गाँव का उनके हाल अज़ब सब आये करने बरबादी
सहमा-सहमा सच रहता है झूठ ने ले ली आज़ादी ॥
गरियाने की देवों-पुरुखों को उन्हें चाहिये आज़ादी
लिये कामिनी चौराहों पर नंग-नाच की आज़ादी ॥
मुझे बता दे इतना कोई ये कहाँ मिलेगी आज़ादी
जहाँ से उनको उठा के दे दूँ उनके मन की आज़ादी ॥
टुकड़े-टुकड़े कर घर मेरा बाँट रहे वे आबादी
आज़ादी हैरान देखकर असली-नकली आज़ादी ॥
स्मृति ग्रंथ जलाकर बोले यहाँ नहीं है आज़ादी
आतंकी को हीरो मनवाने माँग रहे हैं आज़ादी ॥  
रोज-रोज इनके करतब से घायल होती आज़ादी
मिथ्यारोपों की झड़ी लगा बोले यही है आज़ादी ॥
साम्यवाद से ब्याह रचाया मनबसिया है शहज़ादी
कश्मीरी पंडित को बेघर कर माँग रहे हैं आज़ादी ॥
हिंदू है किरकिरी आँख की, अरबी-चीनी दादा-दादी  

ख़ुद को कहते मूल निवासी माँग रहे हैं आज़ादी ॥  

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.