शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

आज की दो महान कवितायें


कविता नम्बर 1

भूले-बिसरे भीम चढ़े हैं सबकी बोली में
आजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥
सीरत में क्या धरा जो बाबा है तेरी सूरत में
गणित सभी को दिखता बाबा तेरी मूरत में ॥
आदर्शों की छोड़ो बातें, है सबकुछ तेरे नाम में
काम-काज सब छोड़ मैं आया बाबा तेरे धाम में ॥
मैं हूँ सच्चा वारिस जाना मत उनकी टोली में
आजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥

कविता नम्बर 2

राधे-राधे छोड़ दे प्यारे अल्ला-अल्ला बोल
चपटी है जब अक्ल मेरी तो धरती कैसे गोल ॥
गोल नहीं है चपटी धरती अल्ला ने बोला है
इतने वर्षॉं बाद राज अल्ला ने खोला है ॥
जो बात नहीं मानेगा उसको गोली मारूँगा
जितने भी हैं काफ़िर सबको दोजख़ भेजूँगा ॥
पश्चिम की तालीम बुरी, हैं अल्ला के ये बोल
असलाह ग़ज़ब बस उनके, कर दूँ धरती डाँवाडोल  
मैं अल्ला का अल्ला मेरा बाकी है सब झोल ॥
चपटी है जब अक्ल मेरी तो धरती कैसे गोल ॥


4 टिप्‍पणियां:

  1. भूले-बिसरे भीम चढ़े हैं सबकी बोली में
    आजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥
    सीरत में क्या धरा जो बाबा है तेरी सूरत में
    गणित सभी को दिखता बाबा तेरी मूरत में ॥
    आदर्शों की छोड़ो बातें, है सबकुछ तेरे नाम में
    काम-काज सब छोड़ मैं आया बाबा तेरे धाम में ॥
    मैं हूँ सच्चा वारिस जाना मत उनकी टोली में
    आजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥


    sach me baba...ye to sach me mahaan kavita hui aajkal ki.,....baba bhim bhi sochte honge..main kyaa kr gya..main kya ban gya....:)

    sahi karaaksh...kaash smjhe sab...pr chances kam hi hain

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    1. बिटिया रानी ! मैं जब भी खीझ कर कुछ लिखता हूँ तो ऊटपटाँग लिखता हूँ ...लेकिन वह लोगों को अच्छा लगता है ।

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  2. गीति शैली का बहुत खूबसूरत व्यंग्य है।

    आदरणीय कौशलेन्द्र जी को प्रणाम ।
    सामयिक कविता पढ़वाने के लिए बहुत-बहुत आभार।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.