सोमवार, 21 अगस्त 2017

सुरखाब का पर...



एक छोटा सा नाला... पार करके जाना है बच्चों को... दूर गाँव की शाला । वर्षा में उफनता है नाला... डराता है छोटे-छोटे बच्चों को... किंतु उन्हें शाला जाना है... “पढ़े बर” जाना है... “अपन विकास गढ़े बर” जाना है...।
अच्छा होता यदि एक पुलिया बन जाती । सुना है, प्रस्ताव गया था... स्वीकृत भी हुआ था...पर नहीं बनी पुलिया । अधिकारी को चाहिये कुछ मुद्रा... अपना हिस्सा... मात्र सात हजार रुपये । नहीं मिली मुद्रा... नहीं बनी पुलिया । छोटे-छोटे बच्चे उफनते नाले को देखते हैं... अपने गाँव की दीवार पर लिखे नारे को याद करते हैं – “चल जाबो पढ़े बर, अपन विकास गढ़े बर” । 

छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर के जंगलों का एक हिस्सा टाइगर के लिए रिज़र्व है जिसमें बंगलादेशी मुसलमानों ने भी घुसपैठ करके अपने लिये एक रिज़र्व बना लिया है । बंग्लादेशी मुसलमानों के लिये भारत एक अभयारण्य है जहाँ वे अवैधरूप से घुसपैठ करके वैध सुविधाओं के वैध अधिकारी बन जाते हैं । उन्हें ये सुविधायें कौन उपलब्ध करवाता है ? अवैध को वैध का अधिकार कौन प्रदान करता है ? छोड़िये ! अब तो ये प्रश्न भी करना अनुचित है, राष्ट्रवाद पर प्रश्नचिन्ह है, देशप्रेम पर सन्देह है, आधारहीन मिथ्या आरोप है... 
...क्योंकि हम सब अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं ... इतना अधिक प्रेम कि हम अवैध रूप से आये बंग्लादेशी मुसलमानों को राशन कार्ड, आधारकार्ड, मतदाता पहचानपत्र आदि सब कुछ उपलब्ध करवाने में नेक भी विलम्ब नहीं करते । यहाँ पर हमें अपने प्रचण्ड राष्ट्रवाद के प्रेम की प्रवाहित हो रही नदी में डूब कर मर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
छत्तीसगढ़ भी असम बन जाय तो क्या फ़र्क़ ? हम अपनी वसुधा बाहरी कुटुम्बों को यूँ ही देते रहेंगे, यही तो है सच्चा वसुधैव कुटुम्बकम । छोड़िये ....हमारी काँव-काँव तो बेमतलब की है, आप ये पंक्तियाँ पढ़िये और आने वाले तीजा पर्व का आनन्द मनाइये –

ढलान पर है समय
नंगे पाँव
फटी पगड़ी
यूँ ही
अब और कब तक खोजता रहूँगा
सुरखाब का मात्र एक पर !
चलो ! यूँ ही मर जाते हैं
बिना लिये... बिना देखे  
सुरखाब का एक पर ।
समाचार है
कि पावस में
बिहार की नदियाँ उफन रही हैं
बाढ़ में लोग मर रहे हैं ।
चलो !
हम भी डूबकर मर जायें
देशप्रेम की बाढ़ में ।

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