बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

सेमिनार



डॉक्टर्स का सेमिनार हो
सेमिनार सरकारी हो
काटने के लिए फीता हो
आमंत्रित अतिथि नेता हो
तो कहा जा सकता है
दावे के साथ
कि वहाँ होगा
वह सब कुछ
होना चाहिए
जो कभी नहीं
किंतु
नहीं होगा वह
किया जाता है आयोजित
जिसके लिए सेमिनार ।

अन्दर तक घुस चुकी हैं जड़ें
अलोकतांत्रिक लोकतंत्र की
ऐसे सुनियोजित सेमिनार्स में
जो सिर्फ़
अहम हिस्सा भर होते हैं
बौद्धिक षड्यंत्रों के
होता है जिनका
सीधा सम्बन्ध
नेताओं के विकास से
और
नेताओं के विकास का
भारत के दुर्भाग्य से ।


1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.