tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post2056429131929732539..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: आस्थाबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23673509606979202262010-12-27T22:50:19.033+05:302010-12-27T22:50:19.033+05:30आप सभी का सादर अभिनन्दन ! अपना अमूल्य समय देने के ...आप सभी का सादर अभिनन्दन ! अपना अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार. हीर जी ! छोटे-मोटे पेड़ बह जाते हैं ...फिर सदा के लिए ढह भी जाते हैं ..उनकी सांस्कृतिक जड़ें इतनी गहरी नहीं होतीं ...भाई राजीव जी ! हमारा संदेश आप तक अपनी पूर्णता के साथ पहुंचा ....लिखना सार्थक हुआ ....हम सभी इस समय आस्था के घोर संकट से गुजर रहे हैं ...हमें बड़े धैर्य से अपनी जड़ों को पकड़े रहने की आवश्यकता है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-67399363366766959972010-12-27T21:47:23.120+05:302010-12-27T21:47:23.120+05:30.बरगद की जड़ों से मिट्टी बहाती हुई,
.....गहरी और प....बरगद की जड़ों से मिट्टी बहाती हुई,<br />.....गहरी और पुष्ट जड़ों से परिहास करती हुई,<br />........बरगद को अपने साथ बहा ले जाने की जिद करती हुई<br />नदी बहती रही .......पूरी बरसात भर.<br />बूढा बरगद <br />खड़ा रहा चुपचाप .....<br /><br />अगर आप विज्ञापन बालाओं की बात कर रहे हैं ....तो अक्सर मैंने ऐसे बूढ़े पेड़ों को नदी के साथ बहते देखा है .....<br />बरगद का तो पता नहीं .....<br />शायद ज्यादा संयमी होते हों .....<br />पर रचना ने दिल छू लिया .....<br />काफी गहरी और पुष्ट जड़े हैं बरगद की .....<br />बधाई .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-33503139952509124582010-12-27T19:55:37.220+05:302010-12-27T19:55:37.220+05:30संस्कृति जीत गयी ...
जिंदगी , समय , और परिवेश
के ...संस्कृति जीत गयी ...<br /><br />जिंदगी , समय , और परिवेश<br />के सत्य को<br />सहजता और सरलता से<br />खूबसूरत और अनुपम शब्दों में<br />काव्य-आकार दे पाना<br />आपकी रचना-कुशलता को परिभाषित करता है<br />अभिवादन स्वीकारें .daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-9986766076226899852010-12-27T16:57:36.429+05:302010-12-27T16:57:36.429+05:30... prabhaavashaalee lekhan ... prasanshaneey rach...... prabhaavashaalee lekhan ... prasanshaneey rachanaa !!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-58168974674338716552010-12-27T13:16:50.898+05:302010-12-27T13:16:50.898+05:30bahut sunderta ke saath likhe hain.bahut sunderta ke saath likhe hain.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-68824005724754740022010-12-26T22:55:29.447+05:302010-12-26T22:55:29.447+05:30बरगद के इर्द-गिर्द सब कुछ होता रहता है, लगता है वह...बरगद के इर्द-गिर्द सब कुछ होता रहता है, लगता है वह बेखबर सा, लेकिन आपने भी रेखांकित किया कि बाखबर है वह.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-76118731269672517542010-12-26T21:46:07.340+05:302010-12-26T21:46:07.340+05:30"संस्कृति जीत गयी
और हार गईं मेरे शहर क..."संस्कृति जीत गयी <br />और हार गईं मेरे शहर की<br />सारी विज्ञापन बालाएं.<br />बेचारी .........<br />पहाड़ी नदी !" <br />कौशलेन्द्र जी,पहाड़ी नदी और बरगद के सहारे आपने जो स्थापित करना चाहा उसमें सफल रहे हैं आप. आस्था से ही संस्कृति जैसे बरगद का अस्तित्व बनता है. पहाड़ी नदी का बिम्ब काफी अर्थपूर्ण है बरगद के सन्दर्भ. बहुत-बहुत बधाई.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-48867899373682818182010-12-26T20:43:18.971+05:302010-12-26T20:43:18.971+05:30भैया जी ! बिलकुल ठीक कहतानी आप, जड़े के साथ रहे के...भैया जी ! बिलकुल ठीक कहतानी आप, जड़े के साथ रहे के चाहीं ... पहाड़ी नदियन के दोष देय से खास भला नाहीं होई..... ऊ त नदियन के स्वभाव बा ......प्रकृति के एगो कडू सच्चाई बा ...शीला अ मुन्नी जैसन पहाडी नदियन के ज्यादा वुजूद नई ख़े....आपन जड़ मजबूती से पकरे के काम बा. हम रउरे साथ बानी जा ....बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-81751816900554586502010-12-26T19:47:08.919+05:302010-12-26T19:47:08.919+05:30कौशलेंद्र जी!
आपकी कविता पढकर अपने बौनेपन का एहसास...कौशलेंद्र जी!<br />आपकी कविता पढकर अपने बौनेपन का एहसास हुआ... प्राकृतिक बिम्बों के माध्यम से आपने कितनी खूबसूरती से परम्पराओं को बचाया है... अभी कुछ दिन पूर्व इसी विषय पर बहस हुई थी आपके प्रदेश के एक स्थापित कवि से... वे नदी के साथ थे..मैं बरगद की जर्जर जड़ों के साथ खड़ा था... क्योंकि मैंने देखी हैं बरगद की वो लताएँ जो अपने जैसे अनेकों बरगद पैदा करती हैं... कोलकाता का महान बरगद का पेड़..<br />अच्छा लगा आपको अपने साथ खड़ा पाकर!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com