tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post2655340788175561485..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: एक और जलियाँ वाला ......क्या यह इतना आवश्यक था ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-72392430513123007652011-06-09T22:33:01.914+05:302011-06-09T22:33:01.914+05:30आदरणीय कौशलेन्द्र जी
सादर वंदे मातरम्!
सर्वप्...<b><i>आदरणीय कौशलेन्द्र जी</i></b> <br />सादर वंदे मातरम्!<br /> <br />सर्वप्रथम आवश्यक और उत्तरदायित्वपूर्ण आलेख के लिए आभार !<br /><br /><b> भ्रष्टाचार के विरोध में और देश का धन वापस देश में लाने को लेकर सत्याग्रह में सम्मिलित होने देश भर से आयी, अर्धरात्रि में निहत्थी सो रही जनता से अचानक दिल्ली की सरकार को कानून-व्यवस्था पर खतरा मंडराने का खतरा दृष्टिगत हुआ. सरकारी हुक्म हुआ और रात में लगभग पांच हज़ार पुलिस के ज़वान जिनमें रैपिड एक्शन फ़ोर्स के जवान भी शामिल थे सोयी हुयी जनता पर बर्बरता का कहर बरपाने पहुंच गये .</b> <br /><b> </b> घोर शर्मनाक कुकृत्य ! <br /><br />और इसके बाद भी दलगत बयानबाजी करने वाले वे लोग जो मानवता से सोच ही नहीं सकते , उनसे गंभीरतापूर्वक दायित्व-निर्वहन करने का अनुरोध है -<br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow"><br />सोते लोगों पर करे जो गोली बौछार !<br />छू’कर तुम औलाद को कहो- “भली सरकार”!! </a></b> <br /><br /><b> </b> कॉंग्रसजन और उस जैसे लोगों के अलावा हर आम नागरिक आज स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा है -<br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">अब तक तो लादेन-इलियास<br />करते थे छुप-छुप कर वार !<br />सोए हुओं पर अश्रुगैस<br />डंडे और गोली बौछार !<br />बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर<br />पागल कुत्ते पांच हज़ार !<br /><br />सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !<br />ऐ दिल्ली वाली सरकार ! <br /></a></b> <br />पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…<br />आपका हार्दिक स्वागत है <br /><br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-90192012402560042122011-06-08T14:25:40.792+05:302011-06-08T14:25:40.792+05:30जाने किस तरह के निर्णय है ये...यह कौन-सा तंत्र है....जाने किस तरह के निर्णय है ये...यह कौन-सा तंत्र है....<br />क्षोभ होता है.Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-40085135976815240792011-06-07T16:23:07.603+05:302011-06-07T16:23:07.603+05:30मैं आपसे सहमत हूँ साथ ही सरकार के रवैये से काफी नि...मैं आपसे सहमत हूँ साथ ही सरकार के रवैये से काफी निराश भी हूँ. एक सार्थक और बेहतरीन लेख के लिए आपका आभार!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-61170481414624195652011-06-06T18:23:05.033+05:302011-06-06T18:23:05.033+05:30प्रकृति संकेत करती है... जैसे यदि कोई दलदल में फंस...प्रकृति संकेत करती है... जैसे यदि कोई दलदल में फंस जाता है, वो भय के कारण जितना अधिक जोर लगाता है उतना ही और कीचड में धंसता चला जाता है... अधिकतर उसे (सौ-मंडल के सार से बने व्यक्ति को) वो ही निकाल सकता है जो स्वयं सूखी और सख्त ज़मीन पर खड़ा हो (गैलेक्सी के केंद्र का प्रतिरूप कृष्ण?) ... <br /><br />किसी यूरोप के इतिहास की पुस्तक में पढ़ा था कि एक समय रोमन एम्पायर में रोजमर्रा का काम सिनेट करता था और एक सुलझा हुआ व्यक्ति, डिक्टेटर, को ज़मीन आदि दे दी जाती थी और वो दूर कहीं किसी खेत आदि में काम करता था, राजनीतिज्ञों से दूर (सोनिया समान?)... जब रोम पर हमला होता था तो पहले सिनेट ही लड़ाई की देख रेख करता था... किन्तु जब हार का डर होता था तो डिक्टेटर को बुला लिया जाता था और उसकी देखरेख में हार अधिकतर टल जाती थी ! <br /><br />और प्राचीन भारत में 'सूर्यवंशी राजाओं' के दो सलाहकार होते थे, एक रोजमर्रा के कार्य में सलाह के लिए (विश्वामित्र समान) और दूसरा दूरगामी परिणामों वाले कार्यों पर सलाह के लिए (वशिष्ट समान), उदहारणतया साम्राज्य के विस्तार के लिए योद्धाओं को योग आदि के माध्यम से सेहतमंद रखने के अतिरिक्त प्रकृति से तालमेल बनाने वाले किसी महर्षि का अश्वमेध यज्ञ आदि द्वारा भी, जैसा काशी के घाट में अनादि काल से चला आता 'दशाश्वमेध घाट' सूर्य की दस चरण में उत्पत्ति दर्शाता आया है...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-4798133866827406462011-06-06T16:20:35.555+05:302011-06-06T16:20:35.555+05:30एक बार फिर शिव त्रिनेत्र को,प्रलय रूप खुल जाने दो
...एक बार फिर शिव त्रिनेत्र को,प्रलय रूप खुल जाने दो<br />एक बार फिर महाकाल बन इन कुत्तों को तो मिटाने दो..<br />एक बार रघुपति राघव छोड़ , सावरकर को गाने दो...<br />एक बार फिर रामदेव को, दुर्वासा बन जाने दो...<br /><br />"आशुतोष नाथ तिवारी"आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-21990987024471276462011-06-06T10:48:07.707+05:302011-06-06T10:48:07.707+05:30भाई पाण्डेयजी ! जनता भीड़ है ...भीड़ की अपनी मानसि...भाई पाण्डेयजी ! जनता भीड़ है ...भीड़ की अपनी मानसिकता होती है ....उसमें स्थिरता का अभाव होता है ....उसे नेतृत्व की आवश्यकता इसलिए होती है. भीड़ यदि आत्मानुशासित होती तो शासन की आवश्यकता ही क्यों पड़ती ? भीड़ को सही नेतृत्व देने वालों का अभाव है ...उनके स्थान पर असुरों ने ध्वज थाम लिया है. यह ध्वज सही हाथों में कैसी आये यह सोचना है ....सोचना यह भी है कि सही और उपयुक्त लोगों की तलाश की जाय .बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-43514553038526689452011-06-06T10:34:12.817+05:302011-06-06T10:34:12.817+05:30भाई प्रतुल जी ! रविवार की घटना से पूरा देश आहत हुआ...भाई प्रतुल जी ! रविवार की घटना से पूरा देश आहत हुआ है.....लोकतांत्रिक सरकार ने अलोकतांत्रिक तरीके से सत्याग्रह का बर्बरता पूर्वक दमन किया है. किन्तु हमें संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, ईश्वरीय संकेतों को समझने की आवश्यकता है.समय की प्रतीक्षा कीजिये ...हमें अपना मार्ग स्वयं बनाना होगा. भारत के प्राचीन गौरव के अनुरूप देश के पुनर्निर्माण के लिए एक लम्बे तप की आवश्यकता है ...किन्तु इसके लिए परिस्थितियाँ उतनी अनुरूप नहीं हैं. देश को ब्रह्म तेज की आवश्यकता है .....इसे सृजित और संचित करना होगा. <br /> नहीं, निष्क्रिय होकर चुप कैसे बैठा जा सकता है ? कलम के सिपाही को अपना काम करते रहना है. धार को और भी तीक्ष्ण करना है. वैचारिक आन्दोलन ही अपने लक्ष्य तक पहुँच पाने में सफल हो पाते हैं ....कलम इसमें सहायक है ......शस्त्र के रूप में. धारदार और इमानदार लेखन कभी व्यर्थ नहीं जाता. संयोग से आप जहाँ हैं वहाँ पर लेखन और प्रकाशन से ही जुड़े हैं. बस समस्त इन्द्रियों को सजग रखिये और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शुचिता बनाए रखने का तप चलते रहने दीजिये. <br /> उग्रता हमारी रचनात्मक ऊर्जा का क्षरण बड़ी तीव्रता से करती है ...इससे बचना होगा. तिब्बती लामाओं की तरह आत्म रक्षार्थ शरीर को इस योग्य बनाना होगा. हमारे पास विचारों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ...इन्हीं के संबल पर हमें आगे बढ़ने की रणनीति बनानी होगी. प्रतिकूल परिस्थितियों में आत्मिक ऊर्जा का संचय आवश्यक है. दुःख और क्षोभ की इस घड़ी में हमें एक दूसरे को संबल देना होगा. <br />ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ! ! !बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-6759290461063265122011-06-05T22:21:16.942+05:302011-06-05T22:21:16.942+05:30घोर निंदनीय घटना।
रावण का चेहरा दिखता तो है मगर ज...घोर निंदनीय घटना। <br />रावण का चेहरा दिखता तो है मगर जनता के ज़ख्म इतने गहरे हैं, जिंदगी इतनी दुरूह कि समय बीतते ही भूल जाती है। जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है। बार-बार देखे रावणी चेहरे भी विस्मृत हो जाते हैं जेहन से।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-70493859542449555222011-06-05T21:27:08.813+05:302011-06-05T21:27:08.813+05:30कृपया मार्गदर्शन कीजिये कौशलेन्द्र जी, मेरा आक्रोश...कृपया मार्गदर्शन कीजिये कौशलेन्द्र जी, मेरा आक्रोश कौन-सी दिशा ले, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ? <br />क्या दिनकर शैली की कविता आज़ के समय में सत्ता परिवर्तन कर सकती है? क्या आज़ मनोरंजक चुटकुलों को पसंद करने वाले ज्वलनशील सामग्री से परहेज नहीं करेंगे? <br />मुझे जंग लग गया है इस सम्प्रेषण के ज़रिये. एक समय था मैं अपने आर्यवीरों को शारीरिक प्रशिक्षण दिया करता था. और अब संगठन फिर से खड़ा करूँ क्या? <br />मैं पागल हो गया हूँ आज की सरकारी बर्बरता को देखकर. मन कैसे शांत हो.. अथवा हृदय की आग को प्रज्ज्वलित रखूँ?प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-7664517095411824582011-06-05T19:55:20.931+05:302011-06-05T19:55:20.931+05:30जनता के रक्त से पोषित हर व्यक्ति यही कहता है कि बा...जनता के रक्त से पोषित हर व्यक्ति यही कहता है कि बाबा को योग से मतलब होना चाहिए ...राजनीति से नहीं. इसी से स्पष्ट है कि ये लोग भारतीय संस्कृति के कितने बड़े शत्रु हैं. इन लोगों ने जनता के मस्तिष्क में भी यह बात ट्रांसप्लांट करने का प्रयास किया है. मैंने यह बात कई लोगों की बहस में सुनी है.....बाद में पता चलता है कि साधु के राजनीति में आने के विरोध में बहस करने वाला खुद बहुत बड़ा बेईमान है. भारतीय संस्कृति में तो राजाओं के द्वारा साधु-संतों से ही बड़ी-बड़ी समस्याओं पर उनके मार्गदर्शन के अनुरोध की परम्परा रही है. साधुओं के कारण ही राजनीति भटकने से बच जाती थी .....राजनीति में सच्चे साधु होते तो विदेशों में भारत का इतना धन नहीं होता. दिग्विजय सिंह और मायावती को बाबा से ज्यादा शिकायतें हैं. . कहीं इनका धन भी तो विदेशी बैंकों में नहीं ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-24969840424723334012011-06-05T19:03:02.475+05:302011-06-05T19:03:02.475+05:30सार्थक लेख ... सरकार क्या करेगी ? उनके ही कितने लो...सार्थक लेख ... सरकार क्या करेगी ? उनके ही कितने लोगों का पैसा तो वहाँ जमा है ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-20068143806628236562011-06-05T18:46:33.028+05:302011-06-05T18:46:33.028+05:30यह लोकतंत्र का चीर-हरण है। चलो इसी बहाने जनता नें ...यह लोकतंत्र का चीर-हरण है। चलो इसी बहाने जनता नें इन कोंगेसी नेताओं की कुटिल राजनीति देखी।<br /><br />कपिल सिब्बल ने इसी लिये कहा कि बाबा योग ही सिखाए इस राजनिति में न आए। क्यों कि राजनिति इन कुटिलो की नीति है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com