tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post3744574236157494776..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: बस्तर कला को सहेजते लोक कलाकार बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-161179333212342642015-02-27T11:55:01.563+05:302015-02-27T11:55:01.563+05:30जी ! आज लोककला परम्परा को संरक्षित कर पाना तनिक दु...जी ! आज लोककला परम्परा को संरक्षित कर पाना तनिक दुश्कर होता जा रहा है ...ऊपर से नये संदर्भों में नवांकुरण के अभाव ने स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया है ....फिर भी हम आशान्वित हैं कि वारिश में बहने वाली पहाड़ी नदी को कोई रोक नहीं सकेगा । <br />बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-17062296966975010392015-02-26T11:31:40.377+05:302015-02-26T11:31:40.377+05:30लोक कला, अंतर की तरल-सरल अभिव्यक्ति होने के कारण ब...लोक कला, अंतर की तरल-सरल अभिव्यक्ति होने के कारण बड़ी ,अनायास और अबाध होती है . बिना किसी ट्रेनिंग, आरोपणों और आडंबरों के बिना मन तक पहुँच बनाने में समर्थ - परंपराओं के साथ जन के संस्कारों का चित्रण होने के कारण इन कलाओं की जीवन्तता कभी पुरानी नहीं होती .लोक जीवन की संवेदनाओँ और रागात्मक वृत्तियों तक पहुँचने का लालित्यमय माध्यम हैं ये लोक कलाएँ .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com