tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post65411880465530661..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: मन तो कंटिया में उलझा था भगवान् कैसे मिलते ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-3150847309427915252011-03-28T14:52:38.086+05:302011-03-28T14:52:38.086+05:30यहां तो सम्मेलन हो रहा है, गंभीर और उपयोगी, इसलिए...यहां तो सम्मेलन हो रहा है, गंभीर और उपयोगी, इसलिए टिप्पणीकर्ता के बजाय पाठक बन कर वापस.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-40875491479529246132011-03-27T10:59:19.293+05:302011-03-27T10:59:19.293+05:30कौशलेंद्र जी, मेरी तीन बेटियाँ हैं,,,तीनों एक एक ब...कौशलेंद्र जी, मेरी तीन बेटियाँ हैं,,,तीनों एक एक बच्चे की माँ,,,बेनू सबसे छोटी है, और बड़ी समान ग्राफिक डिज़ाईनर,,,आर्ट डाइरेक्टर एक पत्रिका में मुंबई में ...आपकी बेटी का नाम पढ़ ही मैंने उसका नाम लिखा था ! प्रसन्नता हुई जान की चि. बेणु भूजल से सम्बंधित विषय में शोधकार्य कर रही हैं...मेरे कार्यकाल के दौरान मैं भी 'जल' से सम्बंधित रहा, भारत और भूटान में भी ! <br />हिंदी में मेरी अन्य टिप्पणियां नीचे दिए ब्लॉग में भी देखी जा सकती हैं -<br />http://jayatuhindurastra.blogspot.com/JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-88089061731909201332011-03-27T10:08:17.221+05:302011-03-27T10:08:17.221+05:30आदरणीय जे.सी. बाबा जी ! ॐ नमोनारायण ! ! ! मेरी भी ...आदरणीय जे.सी. बाबा जी ! ॐ नमोनारायण ! ! ! मेरी भी बेटी का नाम वेणु है और वह चंडीगढ़ से भूजल संरक्षण में पीएच.डी. कर रही है. मैं आपके सारे कमेंट्स को पढ़ता हूँ. शायद आप फिजिक्स के छात्र रहे होंगे तभी आपको भारतीय मेटाफिजिक्स में भी इतनी रूचि है. डाक्टर फ्रिट्ज़ ऑफ़काप्रा की द टर्निंग पॉइंट एवं द टाओ ऑफ़ फिजिक्स मेरी प्रिय पुस्तकें रही हैं. आप अपना चिन्तन जारी रखें और टिप्पणियाँ भी. केवल एक निवेदन है कि भाषा सुगम व् सुबोध रखने का प्रयास कीजिएगा ताकि अन्य ब्लोगर्स भी इस दुरूह विषय को समझ सकें. दर्शन यूँ भी हर किसी के लिए रुचिकर विषय नहीं होता.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-71453418837208391242011-03-27T09:03:21.661+05:302011-03-27T09:03:21.661+05:30कौशलेन्द्र जी, अभी इतने सारे सार्थक शब्दों का आदान...कौशलेन्द्र जी, अभी इतने सारे सार्थक शब्दों का आदान प्रदान देख प्रसन्नता हुई,,,नहीं तो एक कमेन्ट लिख कई घंटे तक 'नेकी कर कुँए में डाल' जैसा प्रतीत होता है!...<br />जैसा मैंने पहले भी कहा, ८० के दशक में मैं गौहाटी में था जब मेरी तब दस वर्षीय बेटी बेनू ने एक दिन (८ दिसम्बर, ८१,,,और हमारी माँ का स्वर्गवास उसी तिथि को '७८ में हुवा था !) अचानक कहा "पापा आपकी फ्लाईट केंसल हो गयी ?" ,,,और गुवाहटी से इम्फाल जाने के लिए एअरपोर्ट पहुँच देखा कि तकनिकी खराबी के कारण जहाज दिल्ली से देरी से उड़ने वाला है,,, और जब आया, इम्फाल न जा दिल्ली लौट गया! <br />यद्यपि पहले भी बचपन से ही कुछेक विचित्र घटनाएँ घट चुकी थीं,,, बाबा बनने की शायद वो घटना पहली सीढ़ी थी ! <br />मेरे मन में अब बहुत प्रश्न थे, जिस कारण मैं सबसे चर्चा करने लगा ...किन्तु मेरी पत्नी एक दिन बोली कि मेरी बातें सुन सब जम्हाई लेते हैं, मैं क्यूँ इस विषय पर चर्चा करता हूँ?! मेरा तब उत्तर था कि कोई सुने या न सुने, बोलने वाला जो भी बोलता है स्वयं सुन भी रहा होता है,,, और बहुत बार पश्नों का उत्तर अपने मन में ही मिल जाता है !JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-22681127697023084242011-03-26T22:43:17.586+05:302011-03-26T22:43:17.586+05:30आदरणीया चौरे जी ! सही कहना है आपका. मैं आपके ब्लॉग...आदरणीया चौरे जी ! सही कहना है आपका. मैं आपके ब्लॉग पर गया था. हमारी आपकी विचारधारा में साम्यता है. <br />दिव्या ! तुमने तो भावुक कर दिया मुझे. आज सुबह जब अखबार में पढ़ा तो मुझे सबसे पहले तुम्हारा ही ख्याल आया. सचमुच जीवन की कोई निश्चितता नहीं ..कब क्या हो जाय ..कोई नहीं जानता. कुछ दिनों के लिए लखनऊ या ग्वालियर क्यों नहीं आ जातीं बच्चों को लेकर ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-25385859168173371862011-03-26T22:22:16.156+05:302011-03-26T22:22:16.156+05:30हे धर्मपरायणा बालिके ! प्रतीत होता है कि आज इस नास...हे धर्मपरायणा बालिके ! प्रतीत होता है कि आज इस नास्तिक को वेदाध्ययन करवा कर ही छोड़ेंगी आप. वैसे मेरी बिटिया वेणु कहती है कि " कोई भी नास्तिक हो ही नहीं सकता ...और बाबा आप तो बिलकुल भी नास्तिक नहीं हो ...केवल नास्तिक होने का ढोंग करते हो "....... मैंने कहा- ..." क्योंकि लोग आस्तिक होने का ढोंग करते हैं तो मैंने सोचा इसका उलटा करके देखते हैं ज़रा"बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-37327142120308046422011-03-26T22:18:52.487+05:302011-03-26T22:18:52.487+05:30.
कौशल जी ,
अपनों को निमंत्रण नहीं दिया जाता । ज....<br /><br />कौशल जी ,<br /><br />अपनों को निमंत्रण नहीं दिया जाता । जो अपने होते हैं वे तो अचानक ही मिलने आकर pleasant surprise देते हैं । आपका हल पल स्वागत है हमारे घर पर।<br /><br />आजकल थोड़ी चिंता है , कल थाईलैंड और मयन्मार में आये भूकंप [७-रिक्टर स्केल] से तकरीबन १०० लोगों की मृत्यु हो गयी । 'चांग-माई' में जहाँ भूकंप आया , हम लोगों की वहां बुकिंग थी अप्रैल के प्रथम सप्ताह में 'सोंक्रांत' की छुट्टियों में। जीवन की अनिश्चितता बढ़ सी गयी है ।<br /><br />इसीलिए हर दिन , हर पल अब भागवद-गीता पाठ ही है ह्रदय में । ताकि मरने पर सद्गति मिले और परम धाम में प्रभु के प्रवचन सुनें तब दुःख तज कर । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-3743277908538132011-03-26T22:16:04.518+05:302011-03-26T22:16:04.518+05:30दुनिया में या हमारे आसपास ही ऐसे कई लोग है जो बिना...दुनिया में या हमारे आसपास ही ऐसे कई लोग है जो बिना प्रवचन सुने बिना मंदिर जाये भी सत्य के मार्ग पर चलते है अल्प सुख सुविधाओ में सुख पाते हुए अपने जीवन को कई लोगो के लिए अनुकरणीय बना देते है |<br />बाजार का काम ही है शोषण करना पर जो बाजार उपरी चीजो की पूर्ति करता है वो जीवन जीने के लिए आवश्यक भी है किन्तु ईश्वर के नाम अंतरात्मा का शोषण करते है भावनाओ को विकृत बनाकर वो समानांतर राजनीती ही करते है |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-82029152987328691412011-03-26T22:08:48.436+05:302011-03-26T22:08:48.436+05:30सत्य वचन बालिके ! महिमा किंचित भी न्यून नहीं होती....सत्य वचन बालिके ! महिमा किंचित भी न्यून नहीं होती. उस महिमा को जानने के लिए ही तो यह सारी उठापटक है. आप अपने यहाँ कब भागवत कथा का आयोजन करवाएंगी ? श्रवण लाभ हेतु मैं भी थाईलैंड आने वाला हूँ. दोनों बच्चों (दिव्या की छाया प्रतियाँ ) से भी मिल लूंगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-55421266013002563512011-03-26T22:01:43.578+05:302011-03-26T22:01:43.578+05:30.
पिंग-पोंग की गेंद की तरह बुद्धि , वाह्य आडम्बर ....<br /><br />पिंग-पोंग की गेंद की तरह बुद्धि , वाह्य आडम्बर को परे धकेल देती है , और सार को गृहण कर लेती है । आखिर १०० प्रतिशत का लाभ तो कहीं नहीं होता न ? इसलिए गहरे पानी पैठकर , कुछ मोती तो ढूंढें ही जा सकते हैं ।<br /><br />वो कहते हैं न की - "Something is better than nothing "<br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-82747422853665930832011-03-26T21:55:21.968+05:302011-03-26T21:55:21.968+05:30संतों और बाबाओं के बाजावाद होने से भी धर्म की महिम...संतों और बाबाओं के बाजावाद होने से भी धर्म की महिमा कम तो नहीं हो जाती ?ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-68874054855009965142011-03-26T21:54:11.401+05:302011-03-26T21:54:11.401+05:30JC जी का वक्तव्य ध्यान देने योग्य है । सिर्फ काले...JC जी का वक्तव्य ध्यान देने योग्य है । सिर्फ काले बादलों को ही क्यूँ देखना । क्यूँ न उसमें छिपी आशा की एक किरण को भी देखा जाए । निराशा और हताशा से लाभ क्या ? सृष्टि तो चलायमान है , फिर अधीर होकर ठहरना क्यूँ ?ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-83400854197671513732011-03-26T21:49:53.496+05:302011-03-26T21:49:53.496+05:30बाबा जे सी जी ! (यह संबोधन आपको हीर जी ने दिया हुआ...बाबा जे सी जी ! (यह संबोधन आपको हीर जी ने दिया हुआ है, मैं उन्हीं का अनुकरण कर रहा हूँ ) , हीर जी, दिव्या जी एवं अन्य सभी सुधीजन ! एक सोद्देश्य और स्वस्थ्य विमर्श के लिए आप सभी का साधुवाद ! ! ! <br /> बाबा जे.सी. जी ! मैं तो सब कुछ देखने का प्रयास करता हूँ. राजा आम्भिदेव ने सब कुछ देखने का प्रयास किया होता तो हम यवनों से दलित न हुए होते .....देश के विभाजन के समय यदि हमारे तत्कालीन कर्णधारों ने सब कुछ देखा होता तो देश के टुकड़े न हुए होते...... धर्म और आध्यात्म को यदि हमने उनके सम्पूर्ण स्वरूप में देखने का प्रयास किया होता तो हम भ्रष्टाचारी नहीं बने होते ........हम एकांश ही देख पाते हैं अपनी भावना (आवश्यकता ) के अनुरूप ......और चार अंधों की तरह अपने -अपने तरीके से हाथी को परिभाषित करते रहते हैं ......हाथी को उसके समग्र रूप में देखने का समय आखिर कब आयेगा ? और कब हम सक्षम हो पायेंगे ? धर्म और आध्यात्म हमारे सर्वांगीण विकास के लिए हैं ......चारो पुरुषार्थों की सम्यक उपलब्धि के लिए हैं ........इस धर्मप्राण देश की जनता फिर भी कष्ट और शोषण की शिकार है .......दुःख यही है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-13890969486759717642011-03-26T21:02:59.729+05:302011-03-26T21:02:59.729+05:30.
कौशल जी ,
१- सहमत हूँ आपके कथन से ।
२- कभी-कभी....<br /><br />कौशल जी ,<br /><br />१- सहमत हूँ आपके कथन से ।<br />२- कभी-कभी प्रवचन का भी लाभ मिलता है और आनंद भी , जैसे मैंने लिया अभी-अभी , आपकी उपरोक्त दो टिप्पणियों से ।<br /><br />कृतार्थ हुयी। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-65243001875002459802011-03-26T20:36:25.562+05:302011-03-26T20:36:25.562+05:30कौशलेन्द्र जी, यह हर व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर ...कौशलेन्द्र जी, यह हर व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वो काले बादलों को ही केवल देखेगा अथवा उसकी रुपहली रेखा (सिल्वर लाइनिंग) को, या दोनों को (गौरी और काली, निर्गुण से मिल ॐ ?) ....तुलसीदास जी कह गए "जाकी रही भावना जैसी/ प्रभु मूरत तिन देखी तैसी" ...हम जानते हैं कि सिक्के के दो चेहरे ही देखे जाते हैं (सर और पूँछ, 'सहस्रार' और 'मूलाधार' चक्र, अथवा बंध, जोगियों कि भाषा में) ,,,और यह भूल जाते हैं सिक्के / शरीर के बीच के भाग को - जिसके बिना साकार संभव ही नहीं है!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-58184398613535805522011-03-26T19:50:02.486+05:302011-03-26T19:50:02.486+05:30...........पुनश्च, भारतीय मूल की सुश्री श्रेया अय्..............पुनश्च, भारतीय मूल की सुश्री श्रेया अय्यर की टीम ने कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी की ओर से भारत के सात राज्यों के २७२ हिन्दू संगठनों, २४८ इस्लामिक, २५ ईसाई और २३ सिख व् जैन संगठनों पर दो वर्ष तक किये गए एक अध्ययन के नतीजे में बताया कि भारत में धार्मिक संगठन व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, साथ ही लोगों की निष्ठा बनाए रखने के लिए वे अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं. इस अध्ययन में सामने आयीं कुछ बातें विचारणीय हैं -<br />१- कि विचारधारा के मामले में ये सभी धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख़ अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढाने की कोशिश के लिए नीतियाँ अपनाते हैं.<br />२- इन धार्मिक संगठनों के कामकाज में अन्य कारोबारी कंपनियों के कामकाज की तरह ही लचीलापन भी होता है.<br />३- आपसी प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने की होड़ में ये संगठन आसपास के राजनीतिक, आर्थिक और अन्य तरह के माहौल को बदलते रहते हैं.<br /> कलियुग में "धर्म" को व्यापार का एक साधन मात्र बना लिया गया है. बाबाओं की जीवन शैली एक आम आदमी के लिए स्वप्न जैसी है. वह जब इन्हें देखता है तो भौचक रह जाता है. और जैसी कि हमारी प्रवृत्ति है ....प्रभुता के आगे एक आम आदमी नतमस्तक हो जाता है....और यह व्यापार चलता रहता है. हम तो एक सीधी सी बात जानते हैं कि यदि हम कंगूरों का सुख भोग रहे हैं तो निश्चित ही हमने नींव में अपने ही लोगों को दफ़न किया हुआ है .....धार्मिक व्यक्ति को कंगूरों का सुख नसीब हो ही नहीं सकता. सत्य और धर्म का मार्ग सदा ही कंटकाकीर्ण रहा है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-86060500779625014602011-03-26T19:18:24.401+05:302011-03-26T19:18:24.401+05:30दिव्या जी ! लाभ किसका लिया जाना है, धर्म का या प्र...दिव्या जी ! लाभ किसका लिया जाना है, धर्म का या प्रवचन का ? किसे नहीं पता कि रिश्वत, चोरी, झूठ....आदि गलत हैं ? जीवन के सात्विक पथ से अनभिज्ञ कौन है ? ये प्रवचन कितनी बार सुन चुके हैं हम .......बचपन से सुनते आये हैं.......धारण कितना कर सके हैं ?...बात यहीं पर अटकती है. हम प्रवचन में कुशल हैं ...पर धारण करते समय अवसरवादी बन जाते हैं ...और धर्म का मज़ाक बन जाता है. मुझे नहीं लगता कि अब किसी को प्रवचन की आवश्यकता रह गयी है ...हम जो जानते हैं उसका शतांश भी यदि अपने जीवन में अपना सके तो कुछ धार्मिक हो जायेंगे. हम लोग विरोधाभासों में जीने के अभ्यस्त हो गए हैं. माया-मोह त्यागने का उपदेश देने वाले बाबा माया-मोह में आकंठ डूबे हुए हैं....उनका रहन-सहन आभिजात्य है .....वे धरती के देवता हैं .माया के लिए इनके मुकद्दमे अदालतों में चल रहे हैं. दिव्या रानी ! धर्म प्रदर्शन की नहीं आचरण की चीज़ है जिसे व्यक्ति स्वस्फूर्त चेतना से अपनाता है. आशुतोष जी ने स्पष्ट कर दिया है कि आध्यात्मिकता खुद हमारे अन्दर होती है. इसे सीखना नहीं पड़ता. और जो सीखने-सिखाने की बात करते हैं निश्चित ही वे छल करते हैं. मैंने तो पाखण्ड ही अधिक देखा है.....बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-89292802950519744532011-03-26T16:54:31.828+05:302011-03-26T16:54:31.828+05:30दुःख-सुख , धर्म-अधर्म अक्सर साथ साथ चलते हैं । कट...दुःख-सुख , धर्म-अधर्म अक्सर साथ साथ चलते हैं । कटिया पर ध्यान गया , मन में खेद हुआ , अर्थात अधर्म के खिलाफ हो गए आप , लेकिन पूरे समय उधर ही आसक्ति क्यूँ रही ? थोडा सा ध्यान धर्म [प्रवचन] पर भी होता तो कुछ लाभ ले सकते थे आप उसका भी , मन यूँ न खिन्न होता तब ।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-25240640213258037742011-03-26T15:29:46.207+05:302011-03-26T15:29:46.207+05:30बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन| धन्यवाद|बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन| धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-45179839070480942622011-03-26T08:35:14.388+05:302011-03-26T08:35:14.388+05:30हरकीरत जी, ख़ुशी हुई जान कि मेरे कमेन्ट से कुछ लाभ...हरकीरत जी, ख़ुशी हुई जान कि मेरे कमेन्ट से कुछ लाभ तो हुआ! जहां तक कुण्डलिनी शक्ति का प्रश्न है, यह भी सब जानते हैं कि किसी भी शक्ति अथवा वस्तु का उपयोग यदि संभव है तो दुरूपयोग भी किया जाना संभव है - वो तो व्यक्ति वशेष की प्रकृति पर निर्भर करेगा - भारत में राम और रावण इसके उदाहरण माने जाते हैं...<br />टिप्पणी लिखने के बाद, क्या उस पर कोई प्रतिक्रिया हुई? अथवा किसी जिज्ञासु ने कुछ और जानना चाहा? आदि, कारणों से मैं दुबारा अवश्य लौटता हूँ (विषय सरल नहीं है क्यूंकि:)... <br />यह भी सभी आम व्यक्ति ने कभी न कभी अनुभव किया होगा कि विचार-शून्य स्तिथि में पहुंचना यदि असंभव नहीं तो अत्यन कठिन अवश्य है...जिसका उदाहरण मैंने पिंग-पोंग की गेंद से दिया था, जिसे फव्वारे का पानी ऊपर धकेल देता है क्यूंकि वो जल (जिसे साकार की बनावट के लिए आवश्यक पञ्च भूतों में से एक जाना गया है) की प्रकृति है,,, डूबते हुए को भी ऊपर ही धकेलता है,,,,JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23255782850694902552011-03-26T00:03:35.427+05:302011-03-26T00:03:35.427+05:30आज के अध्यात्म पर करारा प्रहार |
शायद ये भी उसी तर...आज के अध्यात्म पर करारा प्रहार |<br />शायद ये भी उसी तर्ज पर<br />http://shobhanaonline.blogspot.com/2011/03/blog-post_13.htmlशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-82141215863211018652011-03-25T22:04:49.569+05:302011-03-25T22:04:49.569+05:30जी बाबा जे सी जी इतना तो पता है हम अपने मस्तिष्क क...जी बाबा जे सी जी इतना तो पता है हम अपने मस्तिष्क का एक प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं करते हैं ...और ये भी कि एक कुंडलिय शक्ति हमारे भीतर सोई पड़ी रहती है जिसे जगाना खतरे से खाली नहीं ....<br /><br />@ प्राचीन ज्ञानी पुरुष साधना और उनके द्वारा छोड़े गए कथन आदि से 'सत्य' को कुछ कुछ जान ....<br /><br />ओये होए ....आपको भी मेरे इस कमेन्ट के बारे आपकी इन्द्रिय शक्ति ने इंगित किया था क्या जो दोबारा पढने चले आये .....?<br /><br />@ केवल मौन यानि थोड़े से समय के लिए ही शून्य में पहुँच जागृत अवस्था में भी सम्बन्ध स्थापित कर सकता है,,<br /><br />अगर फिर शून्य से लौट ही न पाए तो .....????<br /><br />@ यदि किसी जटिल प्रश्न का उत्तर न मिल रहा हो तो उसको सोचते सोचते सो जाओ,,,और संभव है कि सुबह जागने के तुरंत पश्चात आपको अपने मन में ही उसका उत्तर मिल जाए!<br /><br />ओये होए....!<br /> मैं न कहूँ कि सुबह सुबह बाथरूम में ही क्यों नज़्म उतरती है ....<br />चलिए आज तो बड़ी पते की बातें सीखीं आपसे ....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23495193461712169162011-03-25T17:52:47.479+05:302011-03-25T17:52:47.479+05:30हा हा हा हा! हरकीरत जी, ८० के दशक में मुझे आपके शह...हा हा हा हा! हरकीरत जी, ८० के दशक में मुझे आपके शहर गुवाहाटी में ही , कामरूप जिला में, कुछ ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी अदृश्य पुरानी आत्मा ने मुझे घेर लिया और भगवान् को छोड़ स्वयं अपने मन में झाँकने का आदेश दिया...तब से खोज चालू है,,,जिससे पता चला कि आज हम पश्चिम के माध्यम से जान गए हैं कि मानव मस्तिष्क एक गजब का कॉम्प्यूटर है जिसमें अरबों सेल हैं किन्तु वर्तमान में 'सबसे बुद्धिमान' व्यक्ति भी उनमें से एक नगण्य प्रतिशत का ही उपयोग कर सकता है,,,यानि आम आदमी इस प्राकृतिक कॉम्प्यूटर का सही उपयोग बिलकुल नहीं जानता...<br />फिर भी, जोगी आदि प्राचीन ज्ञानी पुरुषों की साधना और उनके द्वारा छोड़े गए कथन आदि से 'सत्य' को कुछ कुछ जान और 'परम सत्य' को शून्य काल और स्थान से जुड़ा मान, शायद उस परम ज्ञानि जीव,,, जो सबके भीतर विद्यमान है,,, केवल मौन यानि थोड़े से समय के लिए ही शून्य में पहुँच जागृत अवस्था में भी सम्बन्ध स्थापित कर सकता है,,,क्यूंकि आधुनिक वैज्ञानिक भी अनुभव किये हैं कि यदि किसी जटिल प्रश्न का उत्तर न मिल रहा हो तो उसको सोचते सोचते सो जाओ,,,और संभव है कि सुबह जागने के तुरंत पश्चात आपको अपने मन में ही उसका उत्तर मिल जाए! ज्ञानि कह गए, "करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान..."!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-83534791714711271662011-03-25T11:26:27.950+05:302011-03-25T11:26:27.950+05:30कमाल है हीर जी ! खरबूजे को देख कर खरबूजे को रंग चढ...कमाल है हीर जी ! खरबूजे को देख कर खरबूजे को रंग चढ़ रहा है क्या ? आपभी नास्तिक हैं क्या? चलो, एक नास्तिक एक नास्तिकी ......मिले तो सही नेट पर ...२-४ का और जुगाड़ हो जाय तो अपनी भी एक युनियन बना लेते हैं "अखिल भारतीय नास्तिक संघ" सचिव आपको बना देंगे और अध्यक्ष जे.सी जी को. मगर रोकडे का हिसाब मेरे ही पास रहेगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-33630488756847328782011-03-25T10:58:42.708+05:302011-03-25T10:58:42.708+05:30और एक राज़ की बात बताऊँ आपको ...?
ये बाबा जे सी जी...और एक राज़ की बात बताऊँ आपको ...?<br />ये बाबा जे सी जी का वक्तव्य तो अपने पल्ले कुछ नहीं पड़ता ....<br />नास्तिक जो ठहरे .....):हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.com