tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post7087345831628361827..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: छत्तीसगढ़ी भाषा के उन्नयन हेतु हमारे उत्तरदायित्वबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-89327199258843362112011-04-07T10:57:43.973+05:302011-04-07T10:57:43.973+05:30भारत का इतिहास ही ऐसा रहा है कि आज हम एक आरंभ में ...भारत का इतिहास ही ऐसा रहा है कि आज हम एक आरंभ में सीधे-साधे धागे समान समय के जाल में उलझ के रह गए प्रतीत होते हैं, चारों दिशा से बंधे हुए, हर क्षेत्र मैं सदियों से व्याप्त विविधता के कारण, भले ही वो धर्म हो अथवा भाषा, अन्यथा कुछ और जैसे "इसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से अधिक सफ़ेद कैसे!"...<br /><br />उलझे धागे को जिसने सुलझाया हो कभी वो ही कह सकता है कि इस में कितना धैर्य और समय आवश्यक होता है,,,गलत खींचो तो उलटे, सुलझने की जगह, गांठें पड़ जाती हैं ,,,किन्तु आज किसी के पास समय ही नहीं है,,,हम चाहते हैं कि यदि अमेरिका में कुछ 'झुनझुना' है, (जो उन्होंने सदियों की तपस्या के बाद पाया हो), तो वो भारत में भी जादू का डंडा घुमाने समान तुरंत अभी क्यूँ नहीं?? <br /><br />यह विश्वास करना ही कठिन है कि इसी देश कि मिटटी में कभी तपस्वी, योगी, ऋषि, सिद्ध पुरुष, आदि रहे होंगे जो पानी में चलते होंगे, हवा में उड़ सकते होंगे (हनुमान समान), अथवा एक जगह से गायब हो किसी दूसरी जगह,,, बिना मोटर कार, हवाई जहाज आदि के जो फिर भी समय लेते हैं,,, पलक झपकाते ही पहुँच सकते होंगे! यदि यह संभव है मानव के लिए तो आज हम क्यूँ मकड़ी के जाले में फंसे किसी पतंगे समान हाथ पैर मार उसमें और फंसते चले जाते हैं???<br />प्राचीन हिन्दू इसे केवल दृष्टि का दोष (माया) बता गए...इसे उन्होंने ऐसा ही जाना जैसे हम किसी फिल्म की रील को बिना आरंभिक स्तिथि में लाये अंत से आरंभ की ओर देखना शुरू करदें!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-36828938454151654542011-04-06T17:20:01.453+05:302011-04-06T17:20:01.453+05:30बाबा ...आपके बात बहुत सार्थक हे...हमे अपनी बोली..भ...बाबा ...आपके बात बहुत सार्थक हे...हमे अपनी बोली..भाषा का सम्मान करना चैये..उसको आदर देना चाहिए.............पर बाबा ..इस चक्कर में हमारी मात्रभाषा का क्या..मुंबई वाले .....मराठी...में लिखेंगे बोलेंगे...गुजराती वाले गुजराती में......पंजाबी वाले पंजाबी में......तो हिंदी कोण बोलेगा,...सिर्फ ..दसवीं कक्षा तक मात्र हिंदी विषय का मास्टर .........हम सब को पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए के हम हिंदी को प्रथम स्थान दे ...मैं पिछले साल गुजरात गयी...वहाँ दुकाओं पर या तो गुजराती में लिखा था या इंग्लिश में....हिंदी थी ही नही...यही हाल पंजाब ..मराठी...और बाकी जगहा का हे ... कोई भी क्षत्र ...व्यक्ति ...बोली ...जाती...देश से बड़ी नही होनी चाहिए <br /><br />हाँ..हमे अपनी माँ बोलियों को ज़िंदा ज़रूर रखना चाहियी..उनका आदर लर्न चाहिए..बोलना चाहिए..पर अपनी मात्रभाषा की कीमत पर नही.<br /><br />और हाँ............ये मेरे अपने विचार हैं...हर व्यक्तिविशेष के अपने अपने विचार होना स्वाभाविक हे....मेरे उद्देश्य किसी के विचारों को गलत ठहराना ..या कहना..या भावों को ठेस पहुँचाना नही हेVenuS "ज़ोया"https://www.blogger.com/profile/03536990933468056653noreply@blogger.com