tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post8228609513674131951..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: बह रही है आज भी वह धार ...बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-65910746355784018942011-03-29T12:41:18.345+05:302011-03-29T12:41:18.345+05:30रह गया पर्वत अकड़ता
हो गया नीचा...और भी नीचा .
...रह गया पर्वत अकड़ता <br />हो गया नीचा...और भी नीचा . <br /><br />,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,<br />सुन्दर रचना है...प्रकृति अकड़ने वाले को खुद ही सबक सिखा देती है..आशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-30919580537603931332011-03-28T09:28:38.690+05:302011-03-28T09:28:38.690+05:30सीख कर निर्बंध सरिता से सबक
चूम कर उसके मुहाने को...सीख कर निर्बंध सरिता से सबक <br />चूम कर उसके मुहाने को <br />पवन ने भी राह पकड़ी <br />चोटियों की <br />हो गया फिर पार <br />उठकर और भी ऊंचा <br />प्रेम उसके संग ज़ो था ... <br />रह गया पर्वत अकड़ता <br />हो गया नीचा...और भी नीचा .<br /><br /><br />waah sunder rachna ke liye badhai sweekar kareinamrendra "amar"https://www.blogger.com/profile/00750610107988470826noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-27285921945233348522011-03-27T21:20:40.197+05:302011-03-27T21:20:40.197+05:30प्रकृति में अपने रंग भरती दृष्टि.प्रकृति में अपने रंग भरती दृष्टि.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-15465072721172220862011-03-27T20:09:32.896+05:302011-03-27T20:09:32.896+05:30प्रेम की सरिता.....
चूर करती पर्वतों के गर्व को
...प्रेम की सरिता..... <br />चूर करती पर्वतों के गर्व को <br />धकेलती..........बुहारती ..... <br />प्रेम से वह पत्थरों को<br />बढ़ गयी ....बढ़ती गयी होकर <br />वह पर्वतों से ...और भी आगे.<br />घमंडी पर्वतों के पार ..<br />बह रही है आज भी वह धार ...<br /><br />बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-17309862756114079152011-03-27T16:53:12.012+05:302011-03-27T16:53:12.012+05:30और फिर झरने लगी एक
प्रेम की सरिता
चूर करती पर्...और फिर झरने लगी एक <br /><br />प्रेम की सरिता <br /><br />चूर करती पर्वतों के गर्व को....<br /><br />**********************<br /><br />भावपूर्ण सुन्दर रचनासुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-18510212245036335692011-03-27T14:19:01.986+05:302011-03-27T14:19:01.986+05:30झर-झरा कर झर पड़ी प्रेयसी ब्रह्माण्ड की
और फिर झर...झर-झरा कर झर पड़ी प्रेयसी ब्रह्माण्ड की <br />और फिर झरने लगी एक <br />प्रेम की सरिता..... <br />चूर करती पर्वतों के गर्व को <br /><br />बहुत सुन्दर कविता कौशलेन्द्र जी,...... बेहतरीन शब्द संयोजन.......प्रकृति हमें कितन कुछ सिखाती है........जहाँ पर्वतों को झुकना पड़ता हो वहाँ हम मनुष्यों की तो क्या बिसात .......तो भी हम पता नहीं किन-किन व्यर्थ बातों में उलझते और अकड़ते रहतें हैं ...........बधाई स्वीकारें...........मालिनी गौतमhttps://www.blogger.com/profile/13479031445513404304noreply@blogger.com