शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

कोठों से होकर संस्कृति का उद्धार...

दुनिया की हर बुरी चीज से हमें मोहब्बत है किंतु इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसे पसंद भी करते हैं ।

हमें हिंदुत्व से बेपनाह मोहब्बत है, भारतीय संस्कृति और विक्रमादित्य की न्याय प्रणाली में गहरा विश्वास है ...और हम चाहते हैं कि भारत में रामराज्य की स्थापना हो, किंतु...

...किंतु भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए भ्रष्टाचार से गहरी मोहब्बत करना हमारी विवशता है । यानी कोठे ख़त्म करने के लिए हमने कोठों पर जाना शुरू कर दिया है । ...यूँ, इसका मतलब यह नहीं है कि हम भ्रष्टाचार को पसंद करते हैं और अब कभी उसका विरोध नहीं करेंगे । जब-जब हमारे विरोधी भ्रष्टाचार में लिप्त होंगे तब-तब हम उनके ख़िलाफ आग उगलते रहेंगे ।

विरोध करने का अर्थ यह नहीं है कि हम भ्रष्टाचार में सम्मिलित नहीं रहेंगे ...अवसर मिलते ही भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूब जाना ही तो पुरुषार्थ है । हम पुरुषार्थी हैं, …अवसर भी है ...और इसलिए अब हम कोई भी काम रिश्वत लिए बिना नहीं करेंगे ।

आप हमारे प्रियपात्र हैं क्योंकि आप ईमानदार व्यक्ति हैं ...हम नहीं चाहते कि आपका कोई नुकसान हो, कोई आपको थप्पड़ मारे ...कोई आपके घर में आग लगा दे ...इसलिए व्यावहारिक बनिए और हमें चौथ देना शुरू कर दीजिये । यह एक सामान्य शिष्टाचार है ...और हमारा दावा है कि हम इसी शिष्टाचार के बल पर भारत में रामराज्य की स्थापना कर देंगे । विक्रमादित्य बनने का रास्ता रावणत्व से होकर जाता है इसलिए पहले हम रावण बन गये हैं । यदि कभी यह रास्ता औरंगज़ेबत्व से होकर जायेगा तो हम औरंगज़ेब भी बनने को तैयार हो जायेंगे ।

कोठे बुरे हैं ...जब तक हमें अवसर नहीं मिलता, भ्रष्टाचार बुरा है ...जब तक हमें अवसर नहीं मिलता, रिश्वतखोरी बुरी है ....जब तक हमें रिश्वत लेने का अवसर नहीं मिलता । अवसर मिलने पर भी हम भारतीयता और भारतीय संस्कृति के ठेकेदार बने रहते हैं ...और अपनी इस दुष्टता पर हमें गर्व है ।

1 टिप्पणी:

  1. शुचिता का विरोध कौन करेगा ! किंतु शुचिता के पाखण्ड को तो सहन नहीं किया जा सकता न!

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.