tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post4393406052105150314..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: सैनिकबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-37390599308281091812010-12-30T23:02:48.354+05:302010-12-30T23:02:48.354+05:30हाँ ! कहीं -कहीं तो दिन में भी चलना मुश्किल है ......हाँ ! कहीं -कहीं तो दिन में भी चलना मुश्किल है ...अराजकता बढती जा रही है ...नेता ...अधिकारी ... (और कुछ न्यायाधीश भी) देश को बेचने की फिराक में हैं .......हमें अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी ...शासन समर्थ नहीं है हमारे अधिकारों की रक्षा करने में ...खुद हमें हर पल सजग -सचेत रहना होगा.शाम को ७ बजे के बाद भले ही सडक पर मत चलो पर हिम्मत रखो ...और हर मुश्किल का सामना करने के लिए तैयार रहो....यह चिंता सिर्फ मेरी ही बेटी की नहीं है ...पूरे देश की लडकियों की है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-48963117662975188612010-12-30T21:41:45.340+05:302010-12-30T21:41:45.340+05:30किसकी खुशी के लिए
अपने बुढ़ापे की लाठी को
जवान ब...किसकी खुशी के लिए <br />अपने बुढ़ापे की लाठी को <br />जवान बहू के सपनों को <br />गर्भस्थ भ्रूण के पिता को <br />किसकी खुशी के लिए भेज दिया उन्होंनें <br /><br /><br />तो देश को चबाना बंद कर दो <br /><br /><br />अपना दूसरा और तीसरा बेटा भी भेज देगा <br />मौत के मुह में <br />ताकि तुम <br />चैन से जी सको.<br /><br /><br />रक्तबीजों के रथ पर बैठे सारथी <br /><br /><br /><br />संवेदनाएं <br />उत्तरदायित्व <br /><br /><br />सीता की रक्षा नहीं कर सकी <br />लक्ष्मण रेखा<br /><br />रक्त की उष्णता से समाप्त हुई हमारी ठिठुरन.<br />सर्दियों में <br /><br />सैन्य अधिकारियों के क्षत-विक्षत शवों के साथ <br />अमानवीय यातनाओं का पुरस्कार लेकर <br />वापस आ गयी है.<br />शीघ्र ही हम <br />एक और बस<br />पूरब में भी भेजेंगे<br />और ........इससे पहले कि हम उन्हें बुलाकर <br />गजलें सुनें <br />मैं <br />इस ठिठुरती व्यवस्था की पुनरावृत्ति को <br />विराम देने के लिए बाध्य हो गया हूँ <br />आओ .....कुछ आग जलाएं ....अपने भीतर भी .....<br />ताकि कुछ तो गर्मी आए हमारे खून में <br /><br />******************************<br />ufffffffffffffffffff baba बाबा ..................क्या कहूँ..सच में...खून में उबाल आ गया आपकी रच ना पड़ के....पर बाबा ..क्या किया जाए...कई बार सपने आते हैं ऐसे..की..शायद कोई दिव्य शक्ति से भरा त्रिशुल या सुदर्शन चक्र आये और..काट जाए हर वो सर..जो इस देश को अपने नाखूनों से खरोचने की कोशिश कर रहे हैं..पर फिर सुबह हो जाती है..और सपना टूट जाता है...फिर दिमाग खराब रहत है..क्या कर सकती हूं मियन..तो तो शायद खुद अपनी रक्षा ..तक नही कर सकती..रात के ७ बजे के बाद तो शाद मैं पैदल भी नही चल सकती..और फिर दिमाग फटने लगता है..इन बातों से..क्या करें...फिर खुद को शांत कर के अपने कर्म में लगाना पड़ता है..वरना दिमाग फट जाए..........<br />बाबा...आपकी रचना ने..फिर वोही ज्वलंत विचार उद्वेलित कर दिए मस्तिक्ष में ..........VenuS "ज़ोया"https://www.blogger.com/profile/03536990933468056653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-31403141096487291712010-12-30T21:26:32.524+05:302010-12-30T21:26:32.524+05:30धन्यवाद सलिल भैया ! .......लंका में तो एक ही विभीष...धन्यवाद सलिल भैया ! .......लंका में तो एक ही विभीषण था ...और सोने की लंका ढह गयी ......अब दुर्भाग्य से भारत में भी हो गये हैं ....वह भी बेशुमार .....क्या होगा देश का ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-21869640874407659862010-12-30T21:09:13.292+05:302010-12-30T21:09:13.292+05:30कौशलेंद्र जी!ज़बर्दस्त तेज़ाबी हमला किया है अपने उन ...कौशलेंद्र जी!ज़बर्दस्त तेज़ाबी हमला किया है अपने उन आकाओं पर जिन्होंने शहीदों की चिताओं की आग तापकर, वीरों की बलिदान भूमि पर आदर्श कॉलोनी बनाई.. विधवा उस शहीद की झोली फैलाये रही और करोड़ों की सम्पत्ति और अट्टलिका खड़ी कर ली आकाओं ने!!<br />सलाम है आपके जज़्बे को!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com