tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post5291777113547067335..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: आखिर त्रुटि कहाँ रह गयी.......बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-1793691447009318052011-04-01T14:02:35.959+05:302011-04-01T14:02:35.959+05:30कौशलेन्द्र जी, आप भाग्यवान हो जो आपके शारीरिक अंग ...कौशलेन्द्र जी, आप भाग्यवान हो जो आपके शारीरिक अंग स्वस्थ हैं और आप उनका उपयोग अपनी भौतिक और मानसिक क्षमतानुसार कर पा रहे हैं...और आप जानते होंगे या<br /> महसूस करते होंगे कि 'आप' बहुत सारी बीमारयों से ग्रसित व्यक्तियों को ठीक कर पाने में आज असमर्थ हैं, और जिनकी संख्या में वृद्धि होती जा रहीं हैं जिसके लिए आप कई अन्य व्यक्तियों अथवा प्राकृतिक परिस्थितियों को दोष देते होंगे..एक ज़माने में मैंने भी सारे चिकित्सकों को दोषी ठहराया था जब मेरी पत्नी को ३० वर्ष की आयु में ही (आर एच) आर्थराईतिस हो गया ,,, और फिर २४ वर्ष विभिन्न पद्दति के डॉक्टरों, तांत्रिकों आदि से पाला पड़ा ('८२ में बस्तर के कोंडागांव के एक आयुर्वेदिक चिकित्सकों को मिला, जो भाग्यवश जगदलपुर आये हुए थे )! मैं अब यह मानता हूँ कि वो मेरी असली शिक्षा का एक अंश था!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-25631159662069523892011-04-01T12:12:57.050+05:302011-04-01T12:12:57.050+05:30बाबा जी ! ॐ नमो नारायण ! अदृश्य शक्तियों का अपना म...बाबा जी ! ॐ नमो नारायण ! अदृश्य शक्तियों का अपना महत्त्व है, जगत की भौतिक लीला अगम्य है ...यह सब सत्य है ...किन्तु ये बातें हमें भाग्यवादी बना देती हैं और कदाचित हममें से अधिकाँश लोग अकर्मण्य होने लगते हैं ....जब हम कर्म और उसके अनुरूप भाग्य निर्माण की प्रक्रिया पर अधिक बल देंगे तभी कर्मठ हो सकेंगे. मैं किसी भी सिद्धांत के व्यावहारिक अतिवाद का विरोधी हूँ. इसीलिये सब कुछ अदृश्य शक्तियों के ऊपर नहीं छोड़ सकता. शक्तियों के व्यावहारिक व उचित-अनुचित उपयोग के लिए हम ही उत्तरदायी हैंबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-15493882675977664942011-04-01T11:41:20.811+05:302011-04-01T11:41:20.811+05:30हरकीरत जी, यह तो शायद हम सभी आज जानते हैं, पशुओं क...हरकीरत जी, यह तो शायद हम सभी आज जानते हैं, पशुओं की कई प्रजातियाँ अथवा जातियां समय समय पर विलुप्त होती आ रही हैं - लगभग साढ़े छः करोड़ वर्ष पहले सारे डायनासौर ही विलुप्त हो गए, यह भी जान गए,,, किन्तु अपनी 'चूहा दौड़' के चलते, 'सोने के हिरन' के पीछे भागते, 'हम' उसके परिणाम देख न पाए (गंगा भी मैली हो गयी !), और हाल ही में वर्तमान मानव को अपनी चिंता हो आयी है...और हिन्दू मान्यतानुसार भी यह माना गया है कि युग के अंत में (और बीच बीच में भी) प्रलय का होना प्राकृतिक है - हिमयुग आने पर हर जीव के भीतर विद्यमान आत्माएं जम आती हैं और ब्रह्मा के नए दिन के आरम्भ में उसी स्तर से हर आत्मा काल चक्र में फिर से प्रवेश कर जाती हैं...भारत के अतिरिक्त कई अन्य स्थानों में भी ज्ञानी लोग हुए हैं, उनमें से प्राचीन 'माया सभ्यता' के अनुसार बनाये गए कैलैंडर में २१/१२/२०१२ (केवल ०,१,२ संख्या?) से आगे कोई तिथि नहीं दिखायी गयी है, जिससे इसे उनके द्वारा प्रलय का दिन माने जाने की अटकलें लग गयी हैं...<br /> <br />जहां तक मानव के पृथ्वी पर जन्म दिन का प्रश्न है ('मृत्यु' की तिथि का भी), भारत में कई सदियों से जन्मदिन और आयु की गणना चन्द्रमा, यानि 'इंदु' के चक्र के आधार पर की जाती रही हैं (शायद जिस कारण हम 'सिन्धु' नदी के किनारे बसे तत्कालीन भारतीय 'हिन्दू' कहलाये जाने लगे? चंद्रमा के चक्र को यद्यपि 'अधिक मास' लगा सूर्य के चक्र से जोड़ सूर्य को भी मान्यता दी गयी,,,'सूर्य-चन्द्र' के कहने पर ही विष्णु ने राहू का सर काटा था'!),,,'बर्थडे' सूर्य के चक्र के अनुसार मानना तो पश्चिम की गुलामी की देन मानी जाती है ( ?),,,किन्तु यह भी सबके सामने है कि कैसे 'सूर्यवंशी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ' समान अंग्रेजों ने भी अपना साम्राज्य बढाया था (यानी राम-लीला कही एक अंश?) ...आम आदमी भी देख सकता है कि कैसे अमावास्या से आरंभ हो पूर्णमासी तक अपनी बढती कला के, और उसके पश्चात घटती कला के, माध्यम से चन्द्रमा एक पखवाड़े तक ऊपर चढ़ने के बाद नीचे उतरने के संकेत करता है, जैसे आम आदमी अपने जीवन में भी वैसी ही सीढ़ियों के प्रतिबिम्ब से हर जगह देखता है (बस की लाइन में भी खड़ा अपना नंबर लगा!)... काल-चक्र में व्यस्त आत्मा को सत्य और परमात्मा को परम सत्य जान योगियों ने उपदेश दिया "कर्म कर/ फल की इच्छा मत कर! क्यूंकि फल योगेश्वर कृष्ण के हाथ में पहले से ही आपको देने हेतु रखा है!)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-33502320620419411312011-04-01T07:33:24.148+05:302011-04-01T07:33:24.148+05:30’सम्वेदना के स्वर’ पर आपकी टिप्पणी पढ़कर इधर आने क...’सम्वेदना के स्वर’ पर आपकी टिप्पणी पढ़कर इधर आने को प्रेरित हुआ। यही पोस्ट पढ़ी है अब तक, लेकिन अब लग रहा है कि मेरा बहुत सा समय आपके ब्लॉग पर खर्च होने वाला है:))<br /><br />इस पोस्ट के आपके विचारों से सहमत बल्कि प्रभावित।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-41992203130274989552011-03-31T19:33:59.587+05:302011-03-31T19:33:59.587+05:30@अब क्यूंकि हमारे सौर-मंडल की आयु लगभग साढ़े चार अर...@अब क्यूंकि हमारे सौर-मंडल की आयु लगभग साढ़े चार अरब वर्ष अंक गयी है, प्रश्न यह उठ सकता है कि अब सतयुग फिर आएगा या ब्रह्मा कि रात आरंभ होना निकट है?<br /><br />आ...हा..हा..... गुरु जी बड़ी जिज्ञासा थी जानने की इस विषय में ...<br />अपनी दिव्य दृष्टि से जानकार बताइए न ...क्या सचमुच दुनिया का अंत होने वाला है ....?<br />कुछ लोग २१ मई २०११ तो कुछ २१ दिसंबर १२ बता रहे है ....<br />यूँ कुछ विशेष चिंता बस अपनी किताब छपवा लूँ अंत से पहले जल्दी से ...<br />क्या बता बाद में किसी के हाथ लग जाये कहीं दबी हुई ...<br />तो हमारी पुस्तक किसी संग्रहालय का हिस्सा बन जाये ....<br /><br />नारायण ..नारायण .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-59546477011893375942011-03-31T15:06:17.875+05:302011-03-31T15:06:17.875+05:30जे सी जी, जहाँ तक कक्षा,विद्यार्थी और नम्बरों का स...जे सी जी, जहाँ तक कक्षा,विद्यार्थी और नम्बरों का सवाल है तो अध्यापक सभी को एक जैसा पढ़ाता है पर हर विद्यार्थी अपनी-अपनी ग्रहण शक्ति के अनुसार ग्रहण करता है,लिखता है और नंबर प्राप्त करता है.........लेकिन किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता .......आपकी इस बात का तो मैं भी समर्थन करती हूँ.......ऐसा अभी भी बहुत कुछ है जिसे विज्ञान परिभाषित नहीं कर सका है..........मालिनी गौतमhttps://www.blogger.com/profile/13479031445513404304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-53261251305879262282011-03-31T14:25:36.422+05:302011-03-31T14:25:36.422+05:30कौशलेन्द्र जी, जो कुछ भी बाहरी संसार में घट रहा है...कौशलेन्द्र जी, जो कुछ भी बाहरी संसार में घट रहा है वो विभिन्न माध्यमों से आम और ख़ास आदमी तक पहुंच जाता है,,,हर व्यक्ति विशेष अपनी प्राकृतिक क्षमता और अनुभव के आधार पर यूं एकत्रित सूचना का समय समय पर विश्लेषण करता रहता है (और सफ़ेद बाल वाले कहते हैं कि उनके बाल धूप में सफ़ेद नहीं हुए!) ,,, और इस प्रकार विभिन्न निष्कर्ष पर पहुँच हरेक की हर विषय पर अपनी अपनी (द्वैतवाद के कारण 'सही' या 'गलत'?) धारणाएं बन जाती हैं...प्राचीन ज्ञानी इस लिए कह गए, "हरी अनंत / हरी कथा अनंता" आदि,,, और "सत्यम शिवम् सुंदरम" कथन द्वारा सत्व अथवा ब्रह्माण्ड का सार, यानि अमृत शिव (विष धारक निराकार नादबिन्दू, 'विष्णु', अथवा साकार महेश, गंगाधर शिव यानि पृथ्वी) तक पहुँचने का प्रयास करने का उपदेश दे गए...<br /><br />क्यूंकि हर देश और हर परिवार का कई सदियों का एक इतिहास होता है जिस कारण जब हम किसी एक देश में किसी एक परिवार विशेष में जन्म लेते हैं तो यह परिस्थिति 'माया' के अन्दर्भ में, ऐसी ही समझी जा सकती है जैसे कोई सिनेमा हॉल में फिल्म आरंभ होने के पश्चात विलम्ब से पहुंचे तो फिल्म का पूर्ण आनंद नहीं ले पाता जैसे समय से पहुंचा दृष्टा ,,,और यदि लगभग फिल्म की समाप्ति पर जो पहुंचे तो परेशान ही दिखाई पड़ेगा 'भूत' का ज्ञान न होने के कारण (पंचभूत और भूतनाथ का भी?)...<br /><br />प्रोफ़ेसर साहिबा से विशेषकर जानना चाहूँगा कि आप अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों को पढ़ाती हैं और उनकी परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र भी बनाती होंगी? फिर सभी एक समान अंक क्यूँ नहीं पाते? कुछ जीरो या लगभग जीरो भी पाते होंगे और कुछ १०० या १०० के निकट भी? अन्य सभी किसी ४०-५० औसत के निकट भी? मेरे ख्याल से ऐसा हर देश में और हर कक्षा कि परीक्षा में होता है किसी भी काल में...तो क्या यह कुछ संकेत नहीं किसी अदृश्य शक्ति की उपस्तिथि का ?JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-46197019889050797972011-03-30T20:42:55.533+05:302011-03-30T20:42:55.533+05:30@प्रोफ़ेसर साहिबा ! परीक्षा तो तमाशा हो गयी है. सा...@प्रोफ़ेसर साहिबा ! परीक्षा तो तमाशा हो गयी है. सारा तमाशा अंकों का ही है ...यह अंक वाला मूल्यांकन मेरी समझ से परे है .आपके बगीचे में बहुत से फूल हैं क्या ? इस बार फिर एक नया फूल ....कृपया हर फूल के नीचे यदि संभव हो तो उसका वानस्पतिक नाम भी लिख दिया करें.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-49939456327739209472011-03-30T20:36:58.085+05:302011-03-30T20:36:58.085+05:30आशुतोष जी ! अच्छा याद दिलाया आपने . अगली पोस्ट मैक...आशुतोष जी ! अच्छा याद दिलाया आपने . अगली पोस्ट मैकाले पर होगी.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-11250783351193767142011-03-30T15:07:56.016+05:302011-03-30T15:07:56.016+05:30सत्य वचन कौशलेन्द्र जी........दसवी और बारहवी की पर...सत्य वचन कौशलेन्द्र जी........दसवी और बारहवी की परीक्षाओं का बुरा हाल है....खासकर उन राज्यों में जहाँ मेडिकल व इंजिनियरिंग में प्रवेश मेरिट के आधार पर मिलता है......परीक्षा केन्द्रों के बाहर अभिभावकों का जमघट लगा रहता है..... पढ़ाई का एकमात्र उद्देश्य रह गया है बस किसी भी तरह से नौकरी प्राप्त करना और नौकरी मिलनें के बाद एकमात्र उद्देश्य होता है कम से कम समय में अधिक से अधिक धन का संचय करना......समाज में रहते हुए भी हम स्वकेन्द्रित होते जा रहें । खुद को सँवारनें के चक्कर में बाकी सब कितना बिगड़ता जा रहा है उस ओर हमारी नज़र ही नहीं जाती<br />(या हम जानबूझकर नजर डालना ही नहीं चाहते) <br />स्थिति भयावह है........आत्ममंथन जरूरी है।<br /><br />जे सी जी सतयुग के आगमन के प्रति आशांवित हैं.....चलिये अच्छा है।<br /><br />पिछले दो-तीन बार से आपके लेख पढ़ रही हूँ कौशलेन्द्र जी । काफी असरकारक व प्रभावी तरीके से विषय की नब्ज को पकड़कर आप उसका विश्लेषण करतें हैं......बधाई....मालिनी गौतमhttps://www.blogger.com/profile/13479031445513404304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-59700188493818569222011-03-30T14:24:28.573+05:302011-03-30T14:24:28.573+05:30पुनश्च - एक कहावत है, "शक्कर खोरे को शक्कर और...पुनश्च - एक कहावत है, "शक्कर खोरे को शक्कर और टक्कर खोरे को टक्कर मिलती है"!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-41512014279207042052011-03-30T14:14:53.203+05:302011-03-30T14:14:53.203+05:30धन्यवाद हरकीरत जी याद करने के लिए!
कौशलेन्द्र जी ...धन्यवाद हरकीरत जी याद करने के लिए! <br />कौशलेन्द्र जी ने वर्तमान में भारत के बिगड़ते हालात पर प्रकाश डाला है और चिंता व्यक्त की है...<br />सीधे शब्दों में शायद कोई 'हिन्दू अथवा भारतीय ही कह सकता है कि हमारे प्राचीन ज्ञानियों के अनुसार ऐसा दिखना तो अपेक्षित ही है! <br />क्यूंकि हिन्दू मान्यतानुसार अनंत काल-चक्र में, जो कुल मिला कर एक महायुग कहलाता है, एक चक्र में सतयुग से त्रेतायुग और द्वापरयुग होते हुए कलियुग और घोर कलियुग अर्थात सागर मंथन के आरम्भ पर समय पहुँच जाता है, जब चारों ओर विष व्याप्त हो गया था (जैसा वर्तमान में खाद्य पदार्थ, जल, वायु सभी विषैले हो चले हैं, यानि हम घोर कलियुग का नज़ारा कर रहे हैं!),,,और जिसमें राक्षश और देवता यानि स्वार्थी और निस्वार्थ अथवा परोपकारी व्यक्ति दोनों, यानि सभी, प्रभावित हो गए थे...और ऐसा (माया के कारण) एक बार ही नहीं होते प्रतीत होता, अपितु 'ब्रह्मा' के एक दिन में (जो हमारे ४ अरब वर्षों से भी अधिक है) फिर से एक नया महायुग आरम्भ हो जाता है और ऐसा १,००० से अधिक बार दिखाई पड़ता है,,,जिसके पश्चात ब्रह्मा की उतनी ही लम्बी रात्री का आरम्भ हो जाता है! <br />अब क्यूंकि हमारे सौर-मंडल की आयु लगभग साढ़े चार अरब वर्ष अंक गयी है, प्रश्न यह उठ सकता है कि अब सतयुग फिर आएगा या ब्रह्मा कि रात आरंभ होना निकट है (यानि हिमयुग का आरंभ)...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-74276219736409609962011-03-30T10:36:37.110+05:302011-03-30T10:36:37.110+05:30. क्या करेंगे उस धन का जब डायबिटीज के कारण इतनी पा.... क्या करेंगे उस धन का जब डायबिटीज के कारण इतनी पाबंदियाँ लगी हुयी हैं ? भोजन को पचाने के लिए दवाइयों का सहारा, रात में नींद के लिए दवाइयों का सहारा ...सुबह मल विसर्जन के लिए फिर दवाइयों की शरण ?<br />हा...हा...हा......<br />अरे नाम नहीं होगा क्या कोठी वाले हैं ....?<br />बड़े बड़े लोग आपको आमंत्रित करते हैं ...सम्मान देते हैं ...<br />अन्दर से कमीज काली है तो क्या ऊपर से तो उजली है न .....?<br />और क्या सभी आपकी तरह बच्चे को लेकर खड़े हो जायें ....<br />मास्टर साहब बच्चा फेल होता है तो हो जाये ...<br />पर इसे नक़ल न करने दें ......<br /><br />अरे ...आज बाबा जे सी जी आये नहीं अभी तक .....?<br />अब फिर आना पड़ेगा उनके प्रवचन सुनने .....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-24299736684654306582011-03-30T00:48:07.417+05:302011-03-30T00:48:07.417+05:30बहुत संवेदनशील चिंतन ...बहुत संवेदनशील चिंतन ...Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-91294117078931667282011-03-29T22:50:27.535+05:302011-03-29T22:50:27.535+05:30@ विवेक तभी क्रियाशील हो पायेगा अन्यथा वह केवल सू...@ विवेक तभी क्रियाशील हो पायेगा अन्यथा वह केवल सूचना भर रहेगा. धूम्रपान से कैंसर होता है, झूठ बोलना पाप है, हिंसा अनैतिक कृत्य है, शोषण निंदनीय है .....ये विवेकपूर्ण सूचनाएं पीढी-दर-पीढी हस्तांतरित होती रहेंगी ......और अर्थहीन उपदेशों की परम्परा यूँ ही चलती रहेगी . <br /><br />अद्भुत लेखन शैली। प्रभावी भी।<br />इस वाक्य को पढ़कर बचपन में पढ़ी कहानी याद आ गई जिसमें जाल में फंसा तोता रटता रहता है, ‘शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से उसमें फंसना नहीं ...!’मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-78166608118461188212011-03-29T22:49:44.453+05:302011-03-29T22:49:44.453+05:30बहुत सुन्दर चिंतन...लेकिन ये स्थिति भाप कर ही मैका...बहुत सुन्दर चिंतन...लेकिन ये स्थिति भाप कर ही मैकाले ने वर्तमान शिक्षा पद्धति लागू करवाया था..उसकी गुलामी अब भी कर रहें है..और उसका प्रतिफल देख रहें है हम सबआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.com