tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post7064310868098170741..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: ....सोचता हूँबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-31701901239973655662011-01-30T21:48:28.653+05:302011-01-30T21:48:28.653+05:30एक आशावादी सार्थक रचना ।
बढ़िया भाई ।एक आशावादी सार्थक रचना ।<br />बढ़िया भाई ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-64282328800745030122011-01-30T20:59:59.010+05:302011-01-30T20:59:59.010+05:30हीर जी ! आपने व्याकरण की त्रुटियों की ओर ध्यान आकृ...हीर जी ! आपने व्याकरण की त्रुटियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया ...वह भी अलग से मेल करके .....आपके इस बड़प्पन और संवेदनशीलता को मेरा सादर नमन !बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-31453203862142367682011-01-30T20:16:12.467+05:302011-01-30T20:16:12.467+05:30बीज तो हम बोते ही रहेंगे हीर जी !
क्योंकि ..........बीज तो हम बोते ही रहेंगे हीर जी ! <br />क्योंकि ........बीज को <br />उगना ही होगा .......<br />बहुत आँसू गिरे हैं वहां <br />इतनी नमी तो है ही <br />कि अंकुरित हो सकें वहां <br />कुछ संभावनाएं ...... <br />स्मित की. <br />आखिर <br />राख में भी कम नहीं होती ख़ुश्बू <br />किसी भी मिट्टी सेबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-58129260138626158062011-01-30T19:43:52.596+05:302011-01-30T19:43:52.596+05:30चलो, इस सोये ज्वालामुखी पर बोते हैं
कुछ बीज ........चलो, इस सोये ज्वालामुखी पर बोते हैं <br />कुछ बीज ........<br />उगाते हैं कुछ लताएँ.<br />कुछ दिनों बाद <br />जब अंगड़ाती हुई मुस्कराएंगी लताएँ<br /><br />आप कोशिश जारी रखें<br />बीज न भी उगे तो भी उस राख में<br />संभवत: अपने आपको सुरक्षित समझे ....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-68088606435325009572011-01-30T18:42:50.784+05:302011-01-30T18:42:50.784+05:30हमारी पृथ्वी आरम्भ में आग का गोला थी, जो भीतर ही भ...हमारी पृथ्वी आरम्भ में आग का गोला थी, जो भीतर ही भीतर सुलगती आ रही है युगों युगों से,,,ज्वालामुखी विस्फोट निरंतर होते आते हैं कहीं न कहीं,,, और दर्शाते हैं कि कैसे परिवर्तन शील प्रकृति में सतही बदलाव लाने में, बाढ़ में लायी गयी मिटटी समान, ज्वालामुखी की राख भी योगदान देती है - किन्तु पहले पुराने को मिटा, नए को और हरा भरा कर, नए को प्रसन्नता दे, पुराने दुःख भूल!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-83799929575423161432011-01-30T18:36:00.067+05:302011-01-30T18:36:00.067+05:30सलिल भैया ! धन्यवाद ......इस हौसला अफजाई के लिए.सलिल भैया ! धन्यवाद ......इस हौसला अफजाई के लिए.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-48485352789363406382011-01-30T17:40:50.426+05:302011-01-30T17:40:50.426+05:30अद्भुत अभिव्यक्ति है कौशलेंद्र जी!राख को अवसर दें ...अद्भुत अभिव्यक्ति है कौशलेंद्र जी!राख को अवसर दें सुगंध फैलाने का! कमाल के भाव हैं, अभिभूत हूँ हृदय तक!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com