tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post7073608372399115704..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: पतझड़ के बादबस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-22915009440240228492011-04-27T07:40:28.432+05:302011-04-27T07:40:28.432+05:30@ कौशलेन्द्र जी
आपने कहा "...वंचितों के लिए ...@ कौशलेन्द्र जी <br />आपने कहा "...वंचितों के लिए फंतासी भी एक साधन हो सकती है जीने का."! शायद इसी में मानव जीवन का सत्य भी छिपा आपने बयान कर दिया!<br /> <br />'माया' अथवा 'योगमाया' के सन्दर्भ में प्राचीन 'ज्ञानी हिन्दू' तपस्या कर, गहराई में जा, (बाल धुप में सफ़ेद नहीं कर!) 'शून्य', निराकार ब्रह्म, नादबिन्दू, तक पहुँच गए जो शून्य काल और शून्य आकार से सम्बंधित जाना गया, जिस कारण वो अजन्मा और अनंत, अमृत शिव, 'सत्य', माना जाता चला आ रहा है 'हिन्दुओं' द्वारा, और उसके द्वारा स्वयं अपने भीतर रचित सृष्टि को दर्शाया, 'माँ यशोदा का 'कृष्ण के मुंह में ब्रह्माण्ड देखने' के कथन द्वारा भी,,,और सौर मंडल को ब्रह्माण्ड का सार जान, सूर्य यानि 'अदिति' अथवा 'आदित्य' को प्रथम पुरुष, और सौरमंडल के अन्य सदस्यों को द्वितीय से नवं, बुद्ध ग्रह से 'सूर्यपुत्र', छल्ले दार शनि तक, यानि सुदर्शन- चक्र धारी नादबिन्दू विष्णु के साकार स्वरुप तक भी ...हम इसी कारण आज गर्व से कहते हैं की भारत ने संसार को शून्य दिया,,, किन्तु आम तौर पर उसे 'हम' आधुनिक भारतीय' केवल गणित का माध्यम भर मान लेते हैं... <br /><br />किन्तु प्राचीन 'ज्ञानी हिन्दू' ने सृष्टि को, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को, निराकार ब्रह्म की फंतासी समान ही जाने! <br /><br />'अंडा' शब्द का उपयोग कर निराकार जीव को और अन्य जीवों को भी वास्तव में, अजन्मा अथवा शून्य काल से सम्बंधित दर्शाता है, यानि यदि सृष्टि की उत्पत्ति शून्य कल में हुई तो वो शून्य में ही ध्वंस भी हो गयी होगी! किन्तु निराकार की फंतासी द्वारा असत्य एवं अस्थायी साकार को सौर मंडल द्वारा रचित काल-चक्र द्वारा निराकार ब्रह्म को स्वयं काल से परे, स्थिर रहते, किन्तु शून्य काल में रचित साकार को अनंत काल तक देखते हुए जाना गया...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-17789586303766134482011-04-24T11:25:52.307+05:302011-04-24T11:25:52.307+05:30@...पर क्या इतना आसान होगा उनकी स्मृतियों को विस्म...@...पर क्या इतना आसान होगा उनकी स्मृतियों को विस्मृत करना....... <br /><br />मालिनी जी ! आसान नहीं है स्मृतियों को विस्मृत कर पाना किन्तु प्रयास तो करना होगा ...यही स्वभाव है हमारा.......मृत्यु ही एक उपाय है इन्हें पूरी तरह विस्मृत कर पाने का .......मरने का एक बड़ा लाभ यह भी है. पूर्व जन्म की स्मृतियाँ शेष रहतीं तो जीवन कितना मुश्किल हो जाता ! टूटती ज़िंदगी को संबल देने का विस्मृतियों के अतिरिक्त और कौन सा निरापद उपाय हो सकता है ! <br /><br />@....झूठे उत्सव मनाने से पाप भले ही ना लगे......पर क्या झूठ पर टिकी खुशियों की उम्र लम्बी हो सकेगी........ <br /><br />लम्बे समय तक टिकने वाला तो कुछ भी नहीं है इस संसार में. खीर की काल्पनिक आशा किसी बुभुक्ष रंक की भूख नहीं मिटा सकेगी, किन्तु एक क्षणिक सांत्वना तो दे ही सकती है .......<br />वंचितों के लिए फंतासी भी एक साधन हो सकती है जीने का.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-57479553964735076222011-04-24T08:28:03.761+05:302011-04-24T08:28:03.761+05:30जो पुराने थे
टूट कर गिर चुके हैं
गिर कर बिखर चुक...जो पुराने थे <br />टूट कर गिर चुके हैं <br />गिर कर बिखर चुके हैं <br />उन्हें समेट कर <br />कोई कैसे चिपका ले <br />अपनी शाखों से ?<br />अब तो <br />वसंत की कल्पना ही करनी होगी <br />प्रति वर्ष <br />वसंत का उत्सव भी मनाना होगा <br />बिना ..............<br />वसंत के आगमन के ही. <br />जीने के लिए <br />हर्ज़ नहीं है<br />झूठे उत्सव मनाने में <br />इतने असत्य से <br />पाप नहीं लगेगा,<br /><br /><br />अदभुत......... <br />गिर कर बिखर गये पुराने पत्तों को शाखों से चिपकाया नहीं जा सकता ...पर क्या इतना आसान होगा उनकी स्मृतियों को विस्मृत करना....... <br /><br />झूठे उत्सव मनाने मनाने से पाप भले ही ना लगे........पर क्या झूठ पर टिकी खुशियों की उम्र लम्बी हो सकेगी........ <br /><br />पर हाँ एक बात तो माननी ही होगी कि पतझड़ के बाद भी जीवन खत्म नहीं होता........अनुकूल परिस्थितियाँ मिलते ही नईं कोंपलें फिर से फूटने लगेंगीं....मालिनी गौतमhttps://www.blogger.com/profile/13479031445513404304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-55916798203447236112011-04-24T02:00:41.796+05:302011-04-24T02:00:41.796+05:30झूठे उत्सव मनाने में
इतने असत्य से
पाप नहीं लगे...झूठे उत्सव मनाने में <br />इतने असत्य से <br />पाप नहीं लगेगा<br />hmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm<br />baba <br />vaise sach he.<br />aajkal hum sab....apne aap ko kshnik khiyon ke daayron me bhi baandhe rkhna chahte hain,...kyunki schchi khushiyaan shayd bchhii nhi yaa milti nhi<br />bahut saarthak rchnaa babaVenuS "ज़ोया"https://www.blogger.com/profile/03536990933468056653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-20037561172182892332011-04-23T22:08:09.072+05:302011-04-23T22:08:09.072+05:30बार बार इन पत्थरों के बीच चमकते हीरे को देख सोचती ...बार बार इन पत्थरों के बीच चमकते हीरे को देख सोचती हूँ<br />कितना सही बैठता है आप पर ...!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23333314141377623012011-04-23T19:37:18.227+05:302011-04-23T19:37:18.227+05:30Your blog is great你的部落格真好!!
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