tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post8118580866291618486..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: ये आवारे ....बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-30114006204920018042011-07-06T11:17:24.835+05:302011-07-06T11:17:24.835+05:30हे भगवान - मुझे तो पता ही नहीं था कि कुत्ते का मा...हे भगवान - मुझे तो पता ही नहीं था कि कुत्ते का मांस भी खाया जाता है - पर दूसरी ओर - हम मनुष्यों ने छोड़ा किस प्राणी को है | क्या हम मनुष्यों को भी नहीं नोच खाते ?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-22190749724290516872011-07-05T16:33:07.503+05:302011-07-05T16:33:07.503+05:30उफ्फ्फ ......
बहुत ही संवेदनशील ......
आप लाजवाब ...उफ्फ्फ ......<br />बहुत ही संवेदनशील ......<br /><br />आप लाजवाब कहानियाँ लिख सकते हैं .....<br />मुझे तो आपकी ब्राज़ील यात्रा की कल्पना शक्ति पर ही हैरत हुई थी .....<br />इस प्रतिभा को उजागर कीजिये .....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-6806191642113351002011-06-26T17:10:46.484+05:302011-06-26T17:10:46.484+05:30कौशलेन्द्र जी, आपने अच्छा प्रयास किया नागालैंड के ...कौशलेन्द्र जी, आपने अच्छा प्रयास किया नागालैंड के सिपाहियों की कुत्ते का मांस खाने की आदत के माध्यम से वर्तमान मानव को उन से भी गया गुजरा देखने को... सही है यदि आप मणिपुर से असम आयें तो आपको नागालैंड के बीच से हो कर आना पड़ेगा... मैंने भी दो-एक बार सड़क मार्ग से यात्रा के दौरान अनुभव किया की सारे रास्ते हमें कोई चिड़िया अथवा कुत्ता देखने को नहीं मिला, क्यूंकि नागा इन्हें खा जाते हैं!...<br /><br />इस सन्दर्भ में, एक ऑफिसर जो जन गणना के सम्बन्ध में राजधानी कोहिमा गया था, उससे रेल यात्रा के दौरान 'संयोगवश' मुलाकात हुई तो उसने बताया कैसे काम के सिलसिले में वो अपने क्षेत्रीय नागा ऑफिसर के घर एक शाम गया था तो वे दोनों उसके घर के बरामदे में ही बैठ काम करने लगे... मेज के ऊपर बल्ब के प्रकाश में खिंच आये जो कीड़े-मकौड़े गिर रहे थे, उनको वो एक खाली डब्बे में डालता जा रहा था तो उसने सोचा वो बहुत सफाई पसंद था... फिर जब डब्बा भर गया तो उसने नौकर को उसे पकड़ा दिया... <br /><br />किन्तु जब चाय का समय हुआ तो नौकर चाय के साथ उन कीड़ों को भी तल के ले आया और उसके बॉस ने प्लेट उनकी और भी बढ़ा दी!<br /><br />फिर उसी ने मुझे नागालैंड वासियों कि इस प्रकृति कि तुलना करते कहा कि कैसे एक किम्वदंती के अनुसार नाग के माथे में मणि होती है जिसकी रोशनी में कीड़े आदि खिंचे आते हैं और नाग का भोजन बन जाते हैं!JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-45928182551305408662011-06-26T04:26:26.696+05:302011-06-26T04:26:26.696+05:30@कुछ महीनों बाद अपने कुछ साथियों को खोकर ...शरीर औ...@कुछ महीनों बाद अपने कुछ साथियों को खोकर ...शरीर और मन पर कभी न मिटने वाले घाव लेकर वापस चली जाती है .......पर उनके जाने से पहले आ जाती है एक और नयी बटालियन .....फिर अपने कुछ साथियों को खोने और अपने शरीर के कुछ अंगों को खोने की अलिखित शर्त पर<br /><br />मार्मिक सत्य!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-2617396396136449782011-06-20T14:13:32.516+05:302011-06-20T14:13:32.516+05:30संवेदनशील कथानक को लिये हुए सटीक व्यंग्य करती बेहत...संवेदनशील कथानक को लिये हुए सटीक व्यंग्य करती बेहतरीन बेहतरीन प्रस्तुति.........बधाई.....मालिनी गौतमhttps://www.blogger.com/profile/13479031445513404304noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-1460016637964927412011-06-19T20:34:14.068+05:302011-06-19T20:34:14.068+05:30कौशलेन्द्र जी दिल को छो लेने वाली कहानी...दोपाए की...कौशलेन्द्र जी दिल को छो लेने वाली कहानी...दोपाए की फितरत ही ऐसी है कि अपना काम बन जाए बस, फिर उसे किसी की नहीं पड़ी है...<br />साधुवाद...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-50381742543775123622011-06-19T19:17:03.768+05:302011-06-19T19:17:03.768+05:30क्रूर मनुष्यता, और सम्वेदनशीलता की मार्मिक कथा!!
क...क्रूर मनुष्यता, और सम्वेदनशीलता की मार्मिक कथा!!<br />कौशलेन्द्र जी अच्छा गूँथा है कथ्य!!<br /><br />तबीयत तो दूसरे दिन ही ठीक हो गई थी, पर अफसोस रह गया मिलन न हो पाया।<br /><br />शुभकामनाएँ।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23859946968137325362011-06-19T19:11:48.098+05:302011-06-19T19:11:48.098+05:30इन दो पैर से चलने वाले दोपायों का क्या इलाज है राज...इन दो पैर से चलने वाले दोपायों का क्या इलाज है राजनीती हमारी समाज और व्यवस्था की मज़बूरी है ..इनसे पूर्ण रूप से मुक्ति पाना संभव प्रतीत नहीं होता हैआशुतोष की कलमhttps://www.blogger.com/profile/05182428076588668769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-24636436977102500912011-06-19T13:52:56.583+05:302011-06-19T13:52:56.583+05:30एकता , संवेदनशीलता और नेतृत्व का उत्कृष्ट उदाहरण।एकता , संवेदनशीलता और नेतृत्व का उत्कृष्ट उदाहरण।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-24880481791504750672011-06-19T13:51:36.764+05:302011-06-19T13:51:36.764+05:30.
बहुत ही मार्मिक कहानी लिखी है कौशलेन्द्र जी । ....<br /><br />बहुत ही मार्मिक कहानी लिखी है कौशलेन्द्र जी । सभी तो स्वार्थी हैं , किसी दुसरे की व्यथा से सरोकार कहाँ । अपने लिए बंदोबस्त हो जाए बस फिर क्या । किसी की जान जाए या रहे। सभी स्वयं को कभी और अन्य को आवारा ही समझते हैं। शायद दोपायों की फितरत ही ऐसी है।<br /><br />कौन रोता है किसी की बात पर यारों ,<br />सबको अपनी ही किसी बात पर रोना आया। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com