tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post8805993725606727493..comments2023-10-24T13:31:43.875+05:30Comments on बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....: अपसंस्कृति ...कौन है ज़िम्मेदार ?बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttp://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-68126563793142091832011-01-20T11:36:16.573+05:302011-01-20T11:36:16.573+05:30फिजियोलोजिकल-फिलोसोफी की दृष्टि से आपका विश्लेषण ब...फिजियोलोजिकल-फिलोसोफी की दृष्टि से आपका विश्लेषण बिलकुल सही है .......आज कलियुग में प्रज्ञापराध का भीषण दौर चल रहा है ....हित में अहित और अहित में हित दिखाई दे रहा है लोगों को. पर उत्तरोत्तर इस क्षरण को रोकने के उत्तरदायित्व का भार भी इसी कलियुग के लोगों का ही है .....<br />जे.सी जी ! आपके विश्लेषण से जो अनलिखा रह गया था वह पूरा हो गया ......आपका बहुत-बहुत आभार ......आते रहिएगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-48452873299287539342011-01-19T13:01:58.934+05:302011-01-19T13:01:58.934+05:30यदि कोई वैज्ञानिक कारण खोजें तो शायद हम कहें कि पञ...यदि कोई वैज्ञानिक कारण खोजें तो शायद हम कहें कि पञ्च तत्वों से शरीर बना होने के कारण, और उसमें जल की मात्रा लगभग ७८ % होने से, मानव की प्रकृति भी जल के समान अधिक हो सकती है,,,यानि मन को ऊपर उठने के लिए अतिरिक्त शक्ति, अथवा मन पर नियंत्रण की आवश्यकता,,, नहीं तो जैसे पानी सदैव नीचे की ओर ही बहता है मानवीय मन भी अच्छाई (शैशव काल में शुद्ध) से बुराई की ओर ही जाता है, अथवा नियंत्रण न हो तो इसके नीचे जाने की संभावना रहती है (परीक्षा हेतु प्राकृतिक प्रलोभन की वस्तुओं की उपस्तिथि के कारण अच्छे संस्कारों की आवश्यकता)...इसे प्राचीन ज्ञानियों, योगियों, तपस्वियों, सिद्धों, ऋषि-मुनि, आदि ने काल का प्रभाव जाना,,,यानि समय, युगों, के साथ, अजन्मे एवं अनंत ईश्वर का प्रतिरूप होते हुए भी, घटती प्रतीत होती मानव क्षमता, सतयुग में १०० % से कलयुग के अंत में में शून्य (माया के कारण! ज्ञानेन्द्रियों में दोष के चलते...JChttps://www.blogger.com/profile/05374795168555108039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-23917694852099239692011-01-18T20:58:00.854+05:302011-01-18T20:58:00.854+05:30.
कौशलेन्द्र जी ,
चिंतित होना पहली सीढ़ी है । फिर....<br /><br />कौशलेन्द्र जी ,<br /><br />चिंतित होना पहली सीढ़ी है । फिर हम सब मिलकर उस पर लिखते हैं, उसका विरोध करते हैं। बहुत लोगों तक हमारी आवाज़ पहुँचती है। ज्यादा से ज्यादा लोग विरोध करेंगे तो ज्यादा जल्दी इन परिस्थियों से निजात पायी जा सकती है।<br /><br />लेकिन, सच्छे दिल से विरोध होना चाहिए।<br /><br />एक कटु अनुभव -- जिन लोगों ने मेरे लेख " भारतीय संस्कृति की रक्षा " पर अश्लीलता के विरुद्ध लिखा, उन्हीं लोगों ने दुसरे लेखक की रचना पर अर्धनग्न स्त्री के चित्र को --" बेहतरीन , सजीव प्रस्तुति लिखा "<br /><br />मैंने आपत्ति दर्ज की तो लेखक मुझसे ही नाराज़ हो गए।<br /><br />मुझे लगता है लोगों के दो चेहरे हैं।<br /><br />हाथी के दांत खाने के और , दिखाने के और। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8311087627766487257.post-69398229432034098412011-01-18T12:42:49.316+05:302011-01-18T12:42:49.316+05:30यह हमारे बहुमत समाज का प्रतिबिंब है.यह हमारे बहुमत समाज का प्रतिबिंब है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.com