जे.एन.यू.
काण्ड
ख़ूनी
ख़ंज़र के रखवाले लेने आये आज़ादी
गाली
दे-दे माँग रहे वे जाने कैसी आज़ादी ॥
आग
लगाकर घर में मेरे कहते दे दो आज़ादी
बन्दी
है घर में ही उनके डरी-डरी सी आज़ादी ॥
गाँव का
उनके हाल अज़ब सब आये करने बरबादी
सहमा-सहमा
सच रहता है झूठ ने ले ली आज़ादी ॥
गरियाने
की देवों-पुरुखों को उन्हें चाहिये आज़ादी
लिये
कामिनी चौराहों पर नंग-नाच की आज़ादी ॥
मुझे बता
दे इतना कोई ये कहाँ मिलेगी आज़ादी
जहाँ से
उनको उठा के दे दूँ उनके मन की आज़ादी ॥
टुकड़े-टुकड़े
कर घर मेरा बाँट रहे वे आबादी
आज़ादी
हैरान देखकर असली-नकली आज़ादी ॥
स्मृति
ग्रंथ जलाकर बोले यहाँ नहीं है आज़ादी
आतंकी को
हीरो मनवाने माँग रहे हैं आज़ादी ॥
रोज-रोज
इनके करतब से घायल होती आज़ादी
मिथ्यारोपों
की झड़ी लगा बोले यही है आज़ादी ॥
साम्यवाद
से ब्याह रचाया मनबसिया है शहज़ादी
कश्मीरी
पंडित को बेघर कर माँग रहे हैं आज़ादी ॥
हिंदू है
किरकिरी आँख की, अरबी-चीनी दादा-दादी
ख़ुद को कहते
मूल निवासी माँग रहे हैं आज़ादी ॥
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " लोकसभा चैनल की टीआरपी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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