सोमवार, 27 अप्रैल 2020

हिंदूराष्ट्र की आवश्यकता


सेक्युलरिज़्म यानी सिलेक्टिव धार्मिक असहिष्णुता, …कम से कम भारत में तो सेक्युलरिज़्म का अभी तक यही स्वरूप हम सबके सामने प्रकट होता रहा है । भारतविरोधी लोग सेक्युलरिज़्म को नई पीढ़ी के बीच आधुनिक फ़ैशन के रूप में स्थापित करने में कामयाब हुये हैं । आज़ादी के बाद से ही हमारी नई पीढ़ियाँ सेक्युलरिज़्म को हुलसते हुये आगे बढ़कर स्वीकार करती रही हैं और इसे सनातनधर्म एवं भारतीय मूल्यों के विरुद्ध एक कुत्सित और हिंसक आंदोलन के रूप में अपनाती रही हैं । हमारी नयी पीढ़ियाँ हमारे विरुद्ध बड़ी उग्रता के साथ उठकर खड़ी होती रही हैं । यह भारत पर इण्डिया की बहुत बड़ी जीत है जिसके दूरगामी परिणाम शुभ नहीं हैं । इसीलिए भारत में सेक्युलरिज़्म के औचित्य ने मुझे हमेशा परेशान किया है । सेक्युलरिज़्म की सिगरेट भारत के फेफड़ों को लगातार खोखला करती जा रही है और हमें इस सिगरेट की लत लग चुकी है ।  
हिंदी में यदि सेक्युलरिज़्म का अर्थ धर्मनिरपेक्षताहै तो यह एक बहुत बड़ा वैचारिक छल है । धर्मनिरपेक्ष कुछ भी नहीं होता, न मनुष्य और न ब्रह्माण्ड के अन्य सजीव और निर्जीव तत्व । ब्रह्माण्ड की हर चीज किसी न किसी वैज्ञानिक सिद्धांत के सापेक्ष ही अपने अस्तित्व में रह पाती है । धर्म को बहुत व्यापक अर्थों और संदर्भों में ग्रहण किया जाना चाहिए । यह बात अलग है कि आमतौर पर धर्म को बहुत ही संकुचित अर्थों में ग्रहण किया जाता है जो अन्ततः कलह और युद्धों के रूप में ही फलित होता है । मध्य एशियाई और पश्चिमी देशों का इतिहास धार्मिक उत्पीड़न की क्रूर घटनाओं से भरा पड़ा है । स्वाधीनता के समय से ही पाकिस्तान में निरंतर हो रहे हिंदुओं के धार्मिक उत्पीड़न और पालघर में हिंदू-विरोध की आग में क्रूरतापूर्वक झोंक दिए गये संतों के संदर्भ में आज मैं व्यथित होकर धर्म के इसी संकुचित स्वरूप पर सोचने के लिए विवश हुआ हूँ । भारत में ओढ़ ली गई धर्मनिरपेक्षता के औचित्य पर भी आज पूरे भारत के लिए चिंतन का अवसर है ।   
सनातन धर्म अपने आप में उदार, समावेशी और सहिष्णु जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है जिसके कारण भारत में सेक्युलरिज़्म की आवश्यकता का कोई सैद्धांतिक और व्यावहारिक औचित्य नहीं बनता । यह छद्म राजनीतिज्ञों की एक निकृष्ट आवश्यकता हो सकती है किंतु तब धर्म से इसका कोई वास्तविक सम्बंध नहीं हो सकता सिवाय इसके कि विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्यता उत्पन्न कर खण्डित कर दिए गए समाज पर अपनी हुक़ूमत क़ायम की जाय ।
पिछले पाँच-छह सालों से मुसलमानों के दिल-ओ-दिमाग में इण्डियन राजनीतिज्ञ यह भरते रहे हैं कि मोदी इण्डिया को भारत बनाना चाहते हैं और फिर भारत को एक हिंदू राष्ट्र ...जहाँ मुसलमानों को उत्पीड़ित किया जायेगा और उनका जीना मुश्किल हो जायेगा । भारत से लेकर विदेशों तक मोदी की हर नीति का अंधविरोध प्रदर्शन इनकी इसी रुग्ण मानसिकता का प्रतीक है ।
जिस भारत ने विभाजन के समय मुसलमानों को अपनी ज़मीन के दो हिस्से दे देने के बाद भी भारत न छोड़ने के लिए विनती की उस भारत पर इस तरह का आरोप मढ़ना अकृतज्ञता और धूर्तता का ही द्योतक हो सकता है । आख़िर हिंदुओं के प्रति इतनी नफ़रत क्यों ? मुसलमानों का एक उग्र समूह इण्डिया को मुस्लिमराष्ट्र बनाने की घोषणा करता है, शरीयत कानून लागू करने की माँग करता है, इण्डिया के संविधान और अदालत को मानने से इंकार करता है ...और निर्लज्जतापूर्वक यह दुष्प्रचार करता है कि वह भारत को हिंदूराष्ट्र नहीं बनने देगा । यानी यह गैंग इण्डिया को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए ख़ून बहा देगा लेकिन उसे न तो भारत बनने देगा और न हिंदू राष्ट्र । यह कैसी ज़िद है, आख़िर हिंदुस्थान को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं होना चाहिए ? हिंदुओं को उनकी राष्ट्रीय पहचान क्यों नहीं मिलनी चाहिये ?  
मैं स्पष्ट कर दूँ कि सेक्युलरिज़्म के निर्लज्ज छलावे के बाद अब इण्डिया को हिंदूराष्ट्र बनाना वर्तमान विषाक्त कर दिए गए समय की विवश माँग हो गयी है और यह माँग इण्डिया में रह रहे सभी धार्मिक समुदायों के हित में होगी । इस्लाम को बचाने के लिए इस देश को सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र भारतबनाना आवश्यक है अन्यथा अन्य मुस्लिम बहुल देशों की तरह यहाँ भी कभी शांति नहीं स्थापित हो सकेगी ।
सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र भारतकी परिस्थितिजन्य वर्तमान अवधारणा सच्चे अर्थों में एक ऐसे राज्य की स्थापना करना है जहाँ रहने वाले सभी लोगों का जीवन अपने-अपने धर्मों के अनुरूप धर्मसापेक्ष होगा और हर नागरिक परधर्मों के प्रति सहिष्णु तो होगा किंतु कलियुग के पापाचार को देखते हुये इस नये भारत में अन्य धार्मिक समुदायों के बीच जाकर अपने धार्मिक विचारों का प्रचार नहीं कर सकेगा । भारत ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में अपने धार्मिक सिद्धांतों और विचारों को अन्य धार्मिक समुदायों के बीच जाकर प्रचारित करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता । ऐसा करने से सुख-शांति स्थापित करने के स्थान पर अशांति और उपद्रव का वातावरण ही निर्मित होता है । दुनिया भर में होते रहने वाले धार्मिक दंगों और युद्धों का इतिहास इस बात का साक्षात प्रमाण है । किसी भी राष्ट्र की शांति के लिए आवश्यक है कि धार्मिक प्रचार और धर्मांतरण के कृत्य पूरी तरह धार्मिक और सामाजिक अपराध माने जायँ ।
यह एक गम्भीर वैचारिक त्रासदी है कि दुनिया भर में सेक्युलरिज़्म की दूषित और विषाक्त ढाल के सहारे पारम्परिक स्वधर्मों के प्रति धार्मिक विद्वेष उत्पन्न करते हुये परधर्म को स्वीकार करने के लिए लोगों को प्रेरित किए जाने की निकृष्ट परम्परा स्थापित कर दी गयी है । जब हम अन्य धर्मावलम्बियों के बीच जाकर अपने धर्म विशेष का प्रचार करते हैं और लोगों को अपना पारम्परिक धर्म छोड़कर धर्मांतरित हो जाने के लिए प्रेरित करते हैं तो उसी क्षण धर्म की पवित्रता और परधर्म के प्रति सहिष्णुता का अंत हो जाता है । धार्मिक प्रचार के दौरान लोगों के मन में धार्मिक भेदभाव के विद्वेषपूर्ण बीजारोपण की घटनाओं की पुनरावृत्तियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती । दुर्भाग्य से, सेक्युलरिज़्म का यही स्वरूप पूरी दुनिया वर्षों से देखती आ रही है ।

आख़िर धर्मांतरण के लिए किसी को प्रेरित करने की आवश्यकता ही क्या है ? आप किसी समुदाय के धर्म को निकृष्ट और अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करके धर्मों के प्रति किस सहिष्णुता का प्रदर्शन करते हैं ? सनातनधर्मी हिंदुओं ने कभी भी किसी समुदाय की धर्मालोचना करते हुये धार्मिक अविश्वास उत्पन्न करने और सनातनधर्म के प्रति अन्य धर्मावलम्बियों को सम्मोहित करने का कोई प्रयास नहीं किया क्योंकि ऐसा करना सनातनधर्म की अवधारणा और पवित्रता के विरुद्ध है । भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि यहाँ अन्य धर्मावलम्बियों के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव किया जायेगा या उन्हें उत्पीड़ित किया जायेगा । हिंदू राष्ट्र की स्थापना का अभिप्राय केवल इतना है कि भारत के लोग अपनी धार्मिक विरासत, आदर्शों और जीवनमूल्यों पर छलपूर्वक किए जाने वाले आघातों और आक्रमणों को रोक सकें और भारत भूमि को अब और खण्डित होने से बचा सकें ।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

क्या है Asymptometic Corona


टीवी ख़बरों के अनुसार कोरोना के सम्बंध में इस समय तीन बातें प्रमुखता से चर्चित हो रही हैं जिससे आम जनता की चिंताओं में और इज़ाफ़ा हो गया है ।
1-  अभी तो इससे भी बुरा समय आना बाकी है – WHO
2-  कोरोना के नहीं मिल रहे लक्षण किंतु टेस्ट निकल रहे पॉज़िटिव –विभिन्न टीवी चैनल्स ।
3-  कोरोना बदल रहा है अपना रूप, प्रकट हो रहे हैं नए-नए लक्षण –विभिन्न टीवी चैनल्स ।    

पहली ख़बर WHO की ओर से दी गई एक चेतावनी है । यह वही WHO है जिसने चीन के झूठ को छिपाने में चीन की मदद की, कोरोना संक्रमण को पैण्डेमिक घोषित करने में विलम्ब किया और कोरोना को पूरी दुनिया में अपने पैर फैलाने का अवसर उपलब्ध करवाया । अब वही WHO पूरी दुनिया को डरवा रहा है । WHO की यह चेतावनी ऐसे समय में आयी है जबकि भारत इस जंग में निरंतर जीत की ओर अग्रसर होता जा रहा है । स्वाइन फ़्लू के आउटब्रेक के समय और अब कोरोना आउटब्रेक के समय WHO का जो चरित्र दुनिया के सामने आया है वह निराश करने वाला है और हमें यह सोचने के लिए विवश करता है कि कहीं यह भी तो एक चाल नहीं?

कोरोना संक्रमण से जहाँ लाखों लोग मर रहे हैं वहीं इस संक्रमण से होने वाली मौतों की नींव पर बहुत बड़े उद्योग की रचना भी प्रारम्भ हो चुकी है । यानी मौत का भय अब अगले कई सालों तक मेडिकल उद्योग में सोना बरसाने वाला व्यापार बनने जा रहा है जिसमें वैक्सीन होंगे, दवाइयाँ होंगी, इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाइयाँ होंगी, टॉनिक्स होंगे, टेस्ट किट्स होंगी, वेंटीलेटर्स होंगे और होंगे एयर-प्यूरीफ़ायर्स ।

एण्टी कोरोना वैक्सीन पर दुनिया भर में रिसर्च शुरू हो चुकी है, एण्टी कोरोना दवाइयों पर भी रिसर्च चल रही है । इस सबमें कम से कम अठारह माह का समय लगेगा । तब तक कोरोना के भय को ज़िंदा रखना व्यापारिक सिद्धांत का तक़ाज़ा है । यदि एण्टी-ऑक्सीडेण्ट्स के उपयोग से हमने कोरोना को अपने पास फटकने से रोक दिया तो इन वैक्सीन्स और दवाइयों का क्या होगा जो अठारह महीने बाद बाजार में आने वाली हैं! इसलिए सम्भव है कि WHO की चेतावनी टैमीफ़्लू के व्यापार की तरह किसी व्यापारिक साज़िश का एक हिस्सा हो । लेकिन, हमें WHO द्वारा दी गयी चेतावनी के वैज्ञानिक पक्ष पर भी विचार करना होगा ।

यूँ, यह सुस्थापित तथ्य है कि ट्रांज़ीशन पीरियड्स माइक्रॉब्स के संक्रमण के लिए सर्वथा उपयुक्त अवसर हुआ करते हैं । भारत के संदर्भ में देखें तो ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु आने वाली है । इन दोनों ऋतुओं के संधिकाल में हर तरह के वायरस, बैक्टीरिया और फ़ंगल इनफ़ेक्शन की सम्भावनायें अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक बढ़ जाया करती हैं । पैथोजेनिक माइक्रॉब्स के चरित्र के अनुसार यह एक सामान्य स्थिति है । आनेवाली ऋतुसंधि में ग्रीष्म ऋतु के अंतिम चौदह दिन और वर्षाऋतु के प्रारम्भिक चौदह दिन का काल किसी भी संक्रमण के लिए अधिक सुग्राही होगा अतः इस अवधि में हमें सावधान रहने की आवश्यकता है । इस अवधि में यदि हम हर्बल एंटीऑक्सीडेण्ट्स का निरंतर सेवन करते रहें, फ़्रिज़ में रखे खाद्य-पेय से दूर रहें, आइसक्रीम जैसी चीजों का स्तेमाल न करें और साइंटिफ़िक अनटचेबिलिटी का पालन करते रहें तो हम न केवल कोरोना बल्कि किसी भी वायरल इनफ़ेक्शन के संक्रमण से स्वयं को बचा सकते हैं ।      

कोरोना के Asymptometic स्वरूप को लेकर आम आदमी चिंतित है । इस स्थिति में कोरोना के लक्षण तो नहीं मिलते लेकिन उस व्यक्ति का टेस्ट पॉज़िटिव मिलता है । इसका एक नकारात्मक पक्ष यह है कि ऐसा व्यक्ति कैरियर बनकर दूसरों को संक्रमित कर सकता है, इस नये संक्रमित व्यक्ति में कोरोना Asymptometic हो भी सकता है और नहीं भी । यदि नये शिकार में यह Asymptometic न हुआ और संक्रमित की इम्युनिटी कमज़ोर हुयी तो कोरोना अपने कई लक्षणों के साथ प्रकट होकर मरीज़ के जीवन के लिए चैलेंजिंग साबित हो सकता है । वहीं इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि संक्रमित होने के बाद भी Asymptometic होना इस बात का प्रमाण है कि कोरोना वायरस उस व्यक्ति के शरीर में पैथोलॉज़िकल प्रक्रिया शुरू कर पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है । यह कोरोना की हार है और उस संक्रमित व्यक्ति की जीत । सम्भव है कि आने वाली ग़र्मियों में कोरोना वायरस इतना एटेनुएट हो जाय कि संक्रमण के बाद भी वह निष्क्रिय ही बना रहे । यद्यपि साइंटिस्ट्स में कोरोना वायरस पर तापमान के प्रभाव को लेकर अभी मतभेद बना हुआ है किंतु कोरोना की संरचना से हम एक सटीक अनुमान लगा सकते हैं ।

इस वायरस की आउटर सर्फ़ेस लिपिड की बनी एक दोहरी लेयर है जिसके बीच में प्रोटीन की एक लेयर स्टफ़्ड है । भारत की ग़र्मी लिपिड की लेयर को ऑक्सीडाइज़्ड करके वायरस को नष्ट कर सकती है । शेष बची प्रोटीन की लेयर भी इतनी ग़र्मी में टूट कर वायरस के जेनेटिक मैटेरियल को एक्सपोज़ कर देगी जिससे वायरस नष्ट हो जायेगा । ध्यान रहे कि वैदिक साइंस में अग्नि और सूर्य को माइक्रॉब्स के लिए घातक माना जाता रहा है ।   

चिंता का तीसरा विषय है कोरोना का बदला हुआ स्वरूप जिसमें अभी तक पाये जाते रहे क्लासिकल लक्षणों के अलावा, अथवा उन लक्षणों के साथ कुछ एकदम नए लक्षण भी प्रकट हो रहे हैं, जैसे पेट में दर्द, बॉवेल डिसऑर्डर, इनसिफ़ेलाइटिस जैसे लक्षण और पैर की उँगली में बैंगनी रंग की सूजन का होना । मुझे लगता है कि अभी यह कहना ज़ल्दबाजी होगी कि ये लक्षण कोरोना वायरस की वज़ह से ही हो रहे हैं । यह सब को-इंसीडेंट्ली भी हो सकता है । इन बातों पर विचार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति की इम्यूनिटी यदि कमज़ोर है तो कोरोना उस व्यक्ति के शरीर में पहुँचकर इस कमज़ोर स्थिति का अपने तरीके से लाभ उठाने का प्रयास करेगा साथ ही कुछ अन्य अपॉर्च्युनिस्ट माइक्रॉब्स भी ऐसे अवसर का लाभ उठाने से नहीं चूकते । हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि हर व्यक्ति की कोशिकायें किसी भी फ़ॉरेन बॉडी के साथ अपने तरीके से रिएक्ट करती हैं, यह रिएक्शन हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है, यहाँ तक कि रोग की इंटेन्सिटी भी और उसकी अवधि भी । इस सबके बाद भी यह गम्भीर चिंता का विषय नहीं है क्योंकि अंततः रोगी का इलाज़ तो उसमें प्रकट हुए लक्षणों के आधार पर ही किया जाना है न!  

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

Proposal to combat Covid2019 with Ayurvedic system


Name of the proposal: Ayurveda to cure Covid2019

Purpose: Saving the lives by winning Covid2019 effectively with available Ayurvedic antioxidants and medicines. Controlling the spread of pandemic outbreak of Covid-2019.

Problem: Unavailability of Vaccine and specific medicaments in modern system of medicine against Covid2019 virus. Effective preventive medicines are not available in modern system in case of Covid2019.

Why this Proposal: Ayurvedic system is able very effectively to combat present strain of deadly corona virus at two levels – 1- Preventive level, 2- Curative level.

Principle of combating the virus: Ayurveda believes in priority to preventive measures especially in the communities which are prone to infection, by suggesting herbal antioxidants available in all the Indian kitchens. Since covid2019 severely infects the alveoli of the lungs causing breathing difficulties and cellular suffocation especially in the victims having the history of smoking and pneumonia like respiratory disorders. The condition may become worst in the patients suffering from DM, cardiac disorders, hypertension and chronic renal disorders. So the specific and symptomatic treatments are suggested as per individual case.

Ayurvedic protocol: includes-

(A)           At preventive level: Along with the practices of social distancing and scientific untouchability, it includes use of immuno stimulants, and fumigation in home and working places, viz –
1-   Gargling with hot decoction made of turmeric, dry ginger, and glycyrrhiza glabra added with salt twice daily to prevent the virus to be active. The practice can be repeated every time after returning home from the market or outer sides.
2-   Eye washing:  with normal decoction made of turmeric and glycurrhiza glabra twice daily to prevent the virus to be active. The practice can be repeated every time after returning home from the market or outer sides.  
3-   Use of fresh lemon (half cut piece of average size) juice mixed with hot water to improve cellular metabolism and mitochondrial functions, is proposed to take twice or thrice a day.  
4-   Use of homemade antioxidants: as to serve immunity enhancing, prophylactic and antiviral purposes. The proposed homemade antioxidant is composed of Illicium verum (Star anise), Piper nigrum (black piper), Syzygium aromaticum (clove) and Cinnamomnm zelanicum (cinnamon) in equal quantity. Three grams of this powder is proposed to take twice daily mixed with honey or can be taken with lukewarm water.
5-   Anti geriatric medication for general debility: Since the old persons are more prone to this viral infection, some additional medicines are proposed to cure general debility including (a) Tab Immusante (Himalaya) 1 tab twice daily and (b) anti geriatric compound made of Tinospora cordifolia (सत्व गिलोय) 500mg + Glycyrrhiza glabra (यष्टीमधु) 500 mg + त्रिफला 1 gm + Asparagus racemosus (शतावरी चूर्ण) 1 gm + Withania somnifera (अश्वगंधा चूर्ण) 1 grm + काशीश भस्म 100 mg in each dose, proposed to take twice daily mixed with honey. The anti geriatric effects of these herbs are well known in Ayurvedic treatises and practiced well across the country.
6-   Fumigation: As the transition periods of day and night and seasons are more suitable for the microbes to be active, traditional fumigation with herbal medicines are proposed to disinfectant the home, quarantine rooms and the working places every morning and evening. The proposed compound for effective fumigation is traditional and easily available includes resin of Commiphora mukul (गुग्गुल), Seeds of Sesamum indicum (कृष्ण तिल),  seeds of Hordeum vulgare (barley seeds, यव), Jaggery (गुड़), cow ghee, dried panchang of Swertia chirayita (चिरायता) and Achyranthes aspera (अपामार्ग), Dried leaves of azadyrachta indica (नीम), dried twigs of Magnifera indica (आम्र) and Calotropis procera (मदार). 

(B)           Curative level: includes specific and symptomatic medication.
1-   In case of flue like symptoms and dry cough  - a composition made of विषाणभस्म 125 मिग्रा. + मल्लसिंदूर 100 मिग्रा. + प्रवाल पिष्टी 100 मिग्रा. + रूदंती फल चूर्ण 1 ग्राम + लक्ष्मीविलास रस नारदीय 250 मिग्रा. + त्रिभुवनकीर्ति रस 125 मिग्रा. + चंद्रकला रस 250 मिग्रा. + त्रिकटु चूर्ण 1 ग्राम in each dose is proposed to take three times a day with lukewarm water.
2-   In case of fever  - Tab Nirocil (Solumiks pharmacy) 2 BD + महासुदर्शन घन वटी 2BD is proposed to take with Lukewarm water. A mixture of अमृतारिष्ट and मुस्तकारिष्ट each 15 ml is also proposed to take twice daily mixed with equal quantity of lukewarm water.
3-   In case of history of cardiac disorders - Tab Abana (Himalaya) 2 BD + हृदयार्णव रस 1 BD + नागार्जुनाभ्र रस 1 BD are also proposed along with other appropriate medicines specific for the cardiac problems whatever be.
4-   If the patient is suffering from DM  - Tab BGR-34 + Tab Neem (Himalaya) each 2 BD are proposed to add in the schedule.
5-   In case of history of Asthma or pulmonary/ bronchial pneumonia - श्वास कुठार रस 2 Tabs thrice a day along with leave juice of Piper betel is proposed to add in the schedule.
Availability of proposed herbs and medicines: Easily available at Ayurvedic medical stores all over the India.
Specialty of the Ayurvedic medication: 
1-   Antiviral effects of Andrographis panniculata (one of the ingredients of महासुदर्शन घन वटी) and Phyllanthus urinaria have been proved.
2-   Proposed medicines and herbs are well known in their respective pharmacological effects and have been practiced since long in British India, Tibet and Shri Lanka,
3-   No side effects of proposed medicines are reported so far since long.
Expected results:  
1-   Pandemic outbreak of corona virus would be controlled effectively.
2-   Treatment of the symptoms appeared following the viral infection would be ensue very effectively.
3-   Effective curative treatment would be established to credit ancient knowledge of India.

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः

कैसा है कोरोना का किला, कैसी हो उसे ढहाने की रणनीति...



कोरोना के विरुद्ध युद्ध जारी है, हमें एक ऐसे शत्रु के विरुद्ध युद्ध में उतरना पड़ा है जो अदृश्य है और जिसके बारे में किसी को अधिक जानकारी भी नहीं है । इस बीच कई हाइपोथीसिस सामने आ रही हैं और बहुत से विरोधाभास भी । मेरा मानना है कि हमें कोरोना के किले को समझने के बाद उसे ढहाने की रणनीति बनानी होगी । उधर भारत विरोधी अमरीकी सांसदों और वैज्ञानिकों की एक टीम भारत से अमेरिका को एक्सपोर्ट की जाने वाली दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के ख़िलाफ़ मैदान में उतर चुकी है । जिसके बाद से कई दवा कम्पनीज़ के शेयर्स में ज़बरदस्त उछाल के बाद बिकवाली शुरू हो गयी और पिछले दो दिनों में इप्का और आई.ओ.एल. के शेयर नीचे आने लगे । इस समय दुनिया में कोरोना युद्ध के साथ-साथ व्यापार युद्ध भी चल रहा है, एक साथ दो-दो विश्वयुद्ध ।

ज्ञात तथ्य यह है कि कोरोना परिवार के सभी सदस्यों के किले की बाहरी दीवाल लिपिड (फ़ैट) की दो पर्तों से बनी हुयी है जिसके बीच में प्रोटीन की एक पर्त है । इसके बाद शुरू होता है कोरोना का अपना महल जिसकी दीवाल प्रोटीन की बनी हुयी है और उसके अंदर रहती है कोरोना की आत्मा यानी रिबो-न्यूक्लियक एसिड के स्ट्रेण्ड । हमें इतनी सी ही जानकारी के सहारे आगे बढ़ना होगा । हमारी रणनीति ऐसी होनी चाहिये जिससे लिपिड की दीवाल को तोड़ा जा सके । हम सब जानते हैं कि साबुन का झाग लिपिड का दुश्मन होता है जो लिपिड को अपने में घुला कर हटा देता है । इसके बाद बचती है प्रोटीन की दीवाल जिसे सूखी और गर्म हवा तोड़ देती है । यानी बाहर से घर वापस आते ही हाथ और चेहरे को साबुन और गुनगुने पानी से धो कर सुखा लिया जाय तो हम कोरोना के किले को भेद सकते हैं । सावधानी यह रखनी है कि बारम्बार चेहरे को साबुन से धोने से त्वचा पर रहने वाली नेचुरल ऑयल की स्वाभाविक पर्त भी धुल जायेगी जिससे चेहरे की त्वचा को क्षति हो सकती है अतः धोने के बाद चेहरे में थोड़ा सा नीबू का रस लगाया जाना उचित होगा ।

यदि हम किसी तरह लिपिड की पर्त को ऑक्सीडाइज़्ड कर सकें तो भी कोरोना के किले को भेदा जा सकता है । यह काम शुष्क हवा आसानी से कर सकती है । लिपिड की पर्त के ऑक्सीडाइज़्ड होते ही शेष बची प्रोटीन की पर्त अधिक समय तक कोरोना के आर.एन.ए. की सुरक्षा नहीं रख सकती और इस तरह किले को पूरी तरह ध्वस्त लिया जा सकता है ।

पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट के बाद भी मेडिकल स्टाफ़ के कुछ लोगों को कोरोना से संक्रमित पाया जाना हमें अन्य उपायों के स्तेमाल की ओर प्रेरित करता है । हमने बारम्बार ग़र्म पानी में हल्दी, मुलेठी, सोंठ और नमक डालकर बनाये हुये काढ़े से कम से कम दो बार गरारा करने का निवेदन किया है । मात्र तीस मिली.ली. की मात्रा में इस काढ़े को दिन भर में दो या तीन बार पिया भी जा सकता है । ज़्यादातर लोग आँखों के माध्यम से होने वाले कोरोना संक्रमण की उपेक्षा कर दिया करते हैं । हल्दी और मुलेठी से बने काढ़े से आँखों को धो लेना इस समस्या का बेहतरीन उपाय है । ध्यान रहे, आँखों को धोने वाले काढ़े का तापमान सामान्य यानी एट रूम टेम्प्रेचर ही होना चाहिये । जड़ी-बूटियों से बने इन काढ़ों के प्रयोग से फ़ॉरेन बॉडीज़ को वाश आउट करने के साथ-साथ निष्क्रिय करने में भी बहुत मदद मिलती है ।

दुश्मन को हमारे शरीर में प्रवेश करने का आमंत्रण देने के लिए हमारी सावधानियों में जरा सी कमी ही पर्याप्त है । इसलिए यदि किसी कारण से वायरस शरीर के अंदर पहुँच सकने में सफल हो ही जाय तो हमें वायरस के रिप्लीकेशन को रोकने के उपायों को ध्यान में रखते हुये अपने अगली रणनीति पर विचार करना चाहिये । सबको पता है कि विटामिन सी और ज़िंक का औषधीय प्रभाव एण्टी-वायरल होता है । विटामिन सी के लिए नीबू का सेवन और ज़िंक के लिए कद्दू के बीज का सेवन सबसे सरल और सहज उपलब्ध उपाय है । एक और उपाय यह भी है कि हमारे शरीर के इण्टरनल इंवायर्नमेण्ट को किसी तरह वायरस के रिप्लीकेशन के लिए अनुपयुक्त बना दिया जाय । ध्यान रहे कि शरीर की कोशिकाओं के अंदर पहुँचे हुये वायरस के रिप्लीकेशन को रोकना हमारे युद्ध की अंतिम रणनीति है और यह काम हर्बल एण्टीऑक्सीडेण्ट्स के सेवन से बख़ूबी किया जा सकता है ।

अभी जब तक किसी के भी पास एण्टीकोरोना की ज्ञात दवा नहीं, हम चुप नहीं बैठे रह सकते । वायरस के किले को भेद कर उसके जेनेटिक मैटेरियल को निष्क्रिय कर देने की चुनौतियों का सामना सामान्य से घरेलू उपायों से किया जा सकना इतना असम्भव भी नहीं है ।

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

समुद्र नहीं, नदी की तरह होता है धर्म...


मनुष्य के लिए धर्म का अस्तित्व तभी तक है जब तक वह जीवित है, मनुष्य के मरते ही उसका धर्म भी समाप्त हो जाता है । हमारा जीवन नदी की तरह अपनी स्वाभाविक गति से बहता है ...बाधाओं को लाँघते हुये और कठिन परिस्थितियों में अपनी राह बनाते हुये जीवन को निरंतर आगे बढ़ना होता है । जीवन समुद्र नहीं है जो उसे बाँध दिया जाय, बाँधने का प्रयास किया जायेगा तो वह गर्जना करेगा और विद्रोह के लिए तैयार हो जायेगा । हमारा आचरण धर्म से संचालित होता है । धर्म वही जो बाधाओं और संकट के समय नदी की तरह नवीन मार्ग निर्मित कर सकने में सक्षम हो, अर्थात धर्म को समुद्र की तरह नहीं बल्कि नदी की तरह होना होता है । किंतु जब हम हठपूर्वक धर्म को समुद्र मान लेते हैं तो धर्म की अपरिमित शक्ति हमारा विनाश करने लगती है ।

आज मैं चीन की साम्यवादी विचारधारा के उस अंश का प्रबल समर्थन करने के लिए विवश हो गया हूँ जिसमें धर्म को वैचारिक अफ़ीम घोषित किया गया है । संदर्भ है कोरोना महामारी से जूझते विश्व का और प्रसंग है जमातियों और नमाज़ियों के आचरण में समाज, राष्ट्र, कानून और संविधान से ऊपर धार्मिक अनुष्ठानों को महत्व देने की वह हठी प्रवृत्ति जो उन्हें थूकने, करेंसी से नाक पोछने, फलों एवं सब्जियों में थूक लगाकर बेचने, मेडिकल स्टाफ़ की महिलाओं से अश्लील हरकतें करने, पत्थर बरसाने और तलवार से हमले करने के लिए प्रोत्साहित करती है । ऐसे समय में किसी भी धर्म के अनुयायियों द्वारा किया जाने वाला बाह्य अनुष्ठान अधार्मिक कृत्य है, फिर वे मुसलमान हों या हिंदू । हमें यह समझना होगा कि धार्मिक आचरण के प्रदर्शन का कोई महत्व नहीं होता । कोई भी प्रदर्शन एक ऐसी प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है जिसमें हमारे व्यक्तिगत अहंकारों को अपनी विजय के मार्ग तलशने के अवसर प्राप्त होते हैं । धर्म को हमसे कठोरता नहीं, लचीलेपन की अपेक्षा है, ऐसा लचीलापन जो मानवता के लिए समर्पित हो अन्यथा धर्म को विनाशकारी होने से कोई रोक नहीं सकेगा ।
कोरोना संक्रमण के कारण सभी धर्मों के आराधना स्थलों को दुनिया भर में कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है किंतु मुसलमानों के कुछ फ़िकरे जुमे की नमाज़ के नाम पर मस्ज़िदों में एकत्र हो रहे हैं । केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों एवं अधिकारियों को उनके आगे हाथ जोड़ कर मिन्नतें करने के लिए मज़बूर होना पड़ रहा है कि वे महामारी को रोकने में सामूहिक नमाज़ के लिए एक स्थान पर एकत्र न हों । मंत्री और अधिकारी उनके आगे हाथ जोड़ते हैं और वे उन पर हमले करते हैं । आख़िर केंद्र और राज्यों की सरकारें इतनी मज़बूर और भयभीत क्यों हैं कि उन्हें समाज के एक हिस्से के सामने नियम पालन करने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है ?
वैश्विक संकट की इस घड़ी में आइसिस समर्थक मुसलमान कोरोना के संक्रमण से ख़ुश हैं । उन्हें अपनी क़ौम के कुछ लोगों को फ़िदायीन वायरस बनकर क़ाफ़िरों पर हमले करने का दुर्भाग्यपूर्ण अवसर प्राप्त हो गया है । समाचार है कि बिहार मूल के भारतीय ज़ालिम मियाँ ने नेपाल से कोरोना संक्रमित चालीस से पचास लोगों को भारत में भेजने की तैयारी कर ली है । घातक हथियारों की तस्करी करने वाला, भारत मूल का ज़ालिम मियाँ भारत की तबाही के लिए नेपाल में बैठकर षड्यंत्र करते समय यह भूल जाता है कि कोई भी फ़िदायीन वायरस उस भीड़ को तबाह करेगा जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं ।

भारत के प्राचीन कथानकों में राक्षस, दैत्य और दानव जैसे वैचारिक सम्प्रदाय के लोगों द्वारा ऋषियों-मुनियों की तपस्या में विघ्न उत्पन्न करते रहने की न जाने कितनी घटनाओं को हम सबने पढ़ा है । भारत में राक्षसों, दैत्यों और दानवों की परम्परा वाले लोगों की आज भी कमी नहीं है ।

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

कोरोना युद्ध में भारत की चुनौतियाँ


चीनी युद्ध का एक और सम्भावित मोर्चा...

ख़बर है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है । यदि यह सच है तो इसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिये । आज जबकि पूरी दुनिया पिछले तीन महीनों से चीनी बायो-वीपन के हमले से जूझ रही है और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था धराशायी हो चुकी है, चीन की इस क्रूरतापूर्ण हरकत ने उसकी पाशविकवृत्ति को एक बार फिर उजागर कर दिया है । चीन और अमेरिका के बीच छिड़े व्यापारिक युद्ध में चीनी जैवास्त्र कोरोना वायरस के कहर का सामना पूरी दुनिया को करना पड़ रहा है । चीन द्वारा छेड़ा गया यह विश्वयुद्ध अपनी क्रूरता के लिये अगले सैकड़ों साल तक याद रखा जायेगा । इस विश्वयुद्ध को धूर्ततापूर्ण तरीके से शुरू करने, जैवास्त्र का क्रूरतापूर्ण प्रयोग करने और अमानवीय व्यवहारों के लिए चीन अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए कितने भी झूठ का सहारा लेता रहे, किंतु वास्तविकता पूरी दुनिया जान चुकी है ।

वैश्विक संकट की इस घड़ी में चीन अपने पड़ोसी देशों को हड़पने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है । भारत को चीनी चालों से सावधान रहना होगा । इसके बाद भी चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनना हो तो मैं चीन को चुनना चाहूँगा । इसके पीछे चीन और भारत की प्राचीन सुसंस्कृत सभ्यता, श्रेष्ठ दार्शनिक पृष्ठभूमि, समृद्ध कलाओं, लोकजीवन की ग्राम्य ख़ुश्बू, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और लगभग एक जैसी सामाजिक समस्याओं का सुदृढ़ आधार है । अमेरिका और भारत के बीच इस तरह का कोई सुदृढ़ आधार नहीं है इसलिए अमेरिका के साथ हमारी नहीं बन सकेगी... कभी नहीं बन सकेगी । 

चीन हमारा पड़ोसी है, यदि वह ईमानदारी के साथ भारत से हाथ मिला ले तो यह दोनों देशों के चहुँमुखी विकास के लिए दुनिया का सर्वश्रेष्ठ समझौता होगा । अमेरिकी राष्ट्रपति की हालिया भारत यात्रा को लेकर भारतीय उद्योग जगत को तब निराशा हुयी जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को रोटी के स्थान पर मौत का सामान बेचने की पेशकश की । भारत को घातक और विनाशकारी आयुध बेचने के समझौते ने अमेरिका की धूर्तता, क्रूरता और विनाशकारी बुद्धि का खुलकर इज़हार किया है जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है ।

राजनीतिक और व्यापारिक दृष्टि से देखें तो चीन और अमेरिका ने विगत सात दशकों में अपनी छवि वैश्विक गुण्डा और धूर्त देशों के रूप में बनायी है, दोनों में अंतर इतना ही है कि जहाँ चीन एक चालाक गुण्डा है वहीं अमेरिका एक मूर्ख गुण्डा है । दोनों देश पूरी दुनिया पर अपनी दादागीरी चलाने के लिए नित नये उपायों पर बड़ी शिद्दत से योजनायें बनाने और उन पर अमल करने में दक्ष हैं । अपने धूर्ततापूर्ण व्यापारिक समझौतों के माध्यम से दोनों देशों की कोशिशें दुनिया भर के शेष देशों से चौथ वसूलने की हुआ करती हैं । फ़िलहाल, चीन ने दक्षिण चीन सागर में हालिया युद्धाभ्यास की हुंकार भरते हुये और वुहान से लॉक-डाउन समाप्त करके अपनी क्रूर व्यापारिक बिसात बिछा दी है जिसमें कोरोना के वैक्सीन, एण्टीवायरस दवाइयो और मेडिकल उपकरणों की तिज़ारत करके ट्रिलियन डॉलर्स की कमायी से चीन अपनी तिजोरियाँ भरने के लिए तैयार हो गया है ।  

लॉक-अप में लॉक-डाउन और पेरिशेबल कम्मोडिटीज़...

ख़बर है कि पेरिशेबल कम्मोडिटीज़ का परिवहन न हो पाने के कारण सब्जी, फल और दूध उत्पादकों की हालत ख़राब होती जा रही है । उन्हें होने वाली क्षति की भरपायी किया जा सकना असम्भव है । इन लोगों को स्थानीय प्रशासनों से अपेक्षा है कि पेरिशेबल कम्मोडिटीज़ के परिवहन पर प्राथमिकता के तौर पर ध्यान दिया जाय जिससे सब्जियाँ और दूध जैसे उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुँच सकें और किसानों की आर्थिक स्थिति पंगु होने से बचायी जा सके ।

भारत ही नहीं पूरी दुनिया के दिहाड़ी श्रमिकों के सामने आज अचानक रोटी की समस्या खड़ी हो गयी है वहीं किसानों को भी अपने पेरिशेबल उत्पाद उपभोक्ताओं के पास तक पहुँचाने की समस्या से जूझना पड़ रहा है । चीनी कोरोना की मार झेलते किसान और श्रमिक बेहाल हैं । किसान के पास श्रमिकों का टोटा है और श्रमिकों के पास काम का । भारत में असंगठित दिहाड़ी श्रमिकों का अंतरराज्यीय पलायन एक सामान्य बात है, किंतु कोरोना के कहर ने कई स्थानों से ऐसे श्रमिकों को अपने घर लौट जाने के लिए विवश कर दिया और अब वे क्वारण्टाइन में अच्छा वक़्त आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । हर किसी को ज़ल्दी से ज़ल्दी लॉक-डाउन समाप्त होने की प्रतीक्षा है किंतु मौज़ूदा हालात इसके पक्ष में दिखायी नहीं देते । वापस घर जाने के लिए उमड़ पड़ी दिहाड़ी श्रमिकों की भीड़ पुलिस, प्रशासन और मेडिकल टीम के साथ जहाँ दिल से सहयोग कर रही है वहीं न जाने कहाँ गुम हो गये तब्लीगी ज़मात के लोग क्वारण्टाइन, पैथोलॉज़िकल टेस्ट और इलाज़  के लिए सामने ही नहीं आ रहे हैं और यदि उन्हें किसी तरह पकड़कर लाया भी जाता है तो वे हिंसक हमले करने में भी पीछे नहीं हटते । चीनी वायरस-वार का सामना करने में यह एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आयी है जिससे लगभग सभी प्रांतों की पुलिस को जूझना पड़ रहा है । अच्छा होगा यदि लॉक-डाउन को अभी कुछ दिन और लॉक-अप में ही रहने दिया जाय ।

स्थितियाँ ऐसी हैं कि चरमराते हुये आर्थिक ढाँचे को सुधारने के लिए लॉक-डाउन को जितनी ज़ल्दी सम्भव हो समाप्त कर दिया जाना चाहिये किंतु कोरोना युद्ध को जीतने के लिए अभी कुछ दिन और लॉक-डाउन बनाये रखना बहुत आवश्यक है । इस युद्ध में भारत के इंतज़ामों के अभी तक के परिणामों को देखते हुये मध्य का रास्ता निकाले जाने पर विचार किया जा सकता है । चिन्हित किए गये कोरोना हॉट-स्पॉट्स को छोड़कर शेष स्थानों में चरणबद्ध तरीके से लॉक-डाउन समाप्त किये जाने पर विचार किया जाना चाहिये । दूसरी ओर जीवन रक्षक अत्यावश्यक वस्तुओं के उत्पादन वाले फ़ार्मेसी जैसे उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाना आवश्यक हो गया है । 

कोरोना जंग में कम नहीं हैं चुनौतियाँ...
कोरोना जंग में भारत के विरुद्ध एक साथ कई मोर्चों पर जंग शुरू हो चुकी है । जहाँ अन्य देशों को केवल कोरोना वायरस, ग़रीबों की भूख, चौपट होते उद्योगों और मूर्खों के असहयोग की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है वहीं भारत को इन सारी समस्याओं के साथ-साथ अपने राजनीतिक विरोधियों के षड्यंत्रपूर्ण असहयोग, अतिवाद से प्रभावित धार्मिक दुष्प्रचारों, हिंसक माओवादियों और पाकिस्तानी आतंकवाद जैसे कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ रहा है । 
चीनी दोस्त पाकिस्तानी सेना के जवान कोरोना से संक्रमित हुये तो पाकिस्तान को भारत के ख़िलाफ़ जैसे कोई मुँहमाँगी मुराद मिल गयी । अपनी सेना के कोरोना संक्रमित जवानों को भारत में वायरस विस्फोट करने के लिए फ़िदायीन बना दिया गया । पिछले कई दशकों से भारत का यह अनुभव रहा है कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश मानवता की सारी हदों को पार करने और भारत को हर तरह की क्षति पहुँचाने के किसी अवसर को न चूकने से कभी बाज नहीं आते । हाल ही में कश्मीर घाटी में हुयी आतंकी घटनाओं ने भारत को बता दिया है कि चीनी विश्वयुद्ध में पाकिस्तान चीन के साथ खड़ा है यानी भारत पर पाकिस्तान के टुच्चहे हमले जारी रहेंगे जिनसे न केवल भारत को बल्कि बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को भी सावधान रहना होगा ।