यह
बस्तर है
बस्तर
में बचा-खुचा जंगल है
जंगल
में महुआ है
महुआ
में नशा है
नशे में
मस्ती...
हुआ
करती थी कभी
जो अब
सहम गयी है
क्योंकि
जंगल धधक रहा है ।
यह
बस्तर है
जहाँ नहीं
खिसकी कोई टेक्टोनिक प्लेट
पर
खिसकते जा रहे हैं लोहे के पर्वत ।
बैलाडीला
का पर्वत
जापान
स्थानांतरित हो गया है
और अब
रावघाट
की बारी है ।
बस्तरिया
परेशान है
तीर में
लगाने को
लोहा
कहाँ से लायेगा वह ।
यह
बस्तर है
जहाँ
हरा सोना है
दहशत से
सहमा हुआ,
यहाँ
सुनहरा सोना है
भय से
दुबका हुआ,
यहाँ
काला सोना है
धधकता
हुआ... धरती के भीतर
और ऊपर
झुलसी
हुयी हरियाली है,
लंगोटी
वाला वनवासी हैरान है
ये मेरे
बस्तर को क्या हुआ है !
यह
बस्तर है
जहाँ
मांदर की थाप पर
सहमे से
पैर थिरकते तो हैं
पर नहीं
गूँजती रिलो-रिलो की धुन ।
यह
बस्तर है
जहाँ अब
नहीं गाती है गीत
कोई
मैना
नहीं
बचे हैं हिरण
कुलाँचें
भरने के लिये ।
यह
बस्तर है
जहाँ की
हवा में तैरती है
बारूद
की गन्ध,
जहाँ
पेड़ों की फुनगियों पर लटकते दिखते हैं
इंसानी
ज़िस्मों के चिथड़े
और
झुलसे हुये पेड़ों के नीचे
सहमी
हुयी ज़िन्दगी
तलाश
करती है अपने लिये
ज़िन्दगी
के मायने ।
यह
बस्तर है
जहाँ
सहमे हुये हैं पहाड़
और भय
से थरथराती हुयी
ठिठक-ठिठक
कर बहती हैं नदियाँ ।
यह
बस्तर है
जहाँ
दर्द है... दर्द है... दर्द है...
और दवा
का
कहीं
पता नहीं... पता नहीं... पता नहीं...
यह
बस्तर है
जहाँ
अबूझ माड़ है
जिसे भोगने
लगी रहती है होड़
और सारे
प्रतिस्पर्धी
दिल्ली
में उड़ाते रहते हैं चिंता की पतंगें
जिसकी
पतंग सबसे ऊँची
वह ख़ुश
है,
थपथपाता
है अपनी पीठ
पर नहीं
चाहता कोई बस्तर को बूझना
कभी नहीं... कभी नहीं... कभी नहीं ।