शनिवार, 28 दिसंबर 2019

भारत में महान माने जाते हैं लुटेरे और क्रूर क़ातिल


मुगल वंश के शासकों का इतिहास भारत की नई पीढ़ी के सामने जिस तरह परोसा गया है उसने महानता और निकृष्टता की परिभाषाओं को उलट दिया है । भारत में मुगल वंश को महान शासकों का वंश माना जाता है जिसकी स्थापना एक उज़्बेक लुटेरे बाबर के द्वारा की गयी थी । बाबर के पूर्वजों का इतिहास भी क्रूरता, हत्या और लूटमार की घटनाओं से भरा रहा है
पितृ पक्ष का पूर्वज तैमूर लंग – 1369-1407, एक तुर्की उज़्बेक था जो बाद में समरकंद का अमीर बना । यह एक ऐसा लुटेरा और हत्यारा था जिसे भारत के लोग उसकी इन्हीं ख़ूबियों के कारण आज तक महान मानते आये हैं ।
मातृ पक्ष का पूर्वज तिमुचिन कैगन (चंघेज़ ख़ान) – 1162-1227, एक अति महत्वाकांक्षी मंगोलियन बौद्ध था जिसे क़त्ल-ए-आम से बेहद मोहब्बत थी ।    

https://knowindia.gov.in/hindi/  - यह एक सरकारी लिंक है जिसने मध्य कालीन भारत के इतिहास को नयी पीढ़ी के लिये परोसा है । इस इतिहास में परोसी गयी मुगल राजवंश की महानता से भारत को सावधान रहना होगा ।   

मध्‍य कालीन भारत का इतिहास
मुगल राजवंश
भारत में मुगल राजवंश महानतम शासकों में से एक था। मुगल शासकों ने हज़ारों लाखों लोगों पर शासन किया। भारत एक नियम के तहत एकत्र हो गया और यहां विभिन्‍न प्रकार की सांस्‍कृतिक और राजनैतिक समय अवधि मुगल शासन के दौरान देखी गई। पूरे भारत में अनेक मुस्लिम और हिन्‍दु राजवंश टूटे, और उसके बाद मुगल राजवंश के संस्‍थापक यहां आए। कुछ ऐसे लोग हुए हैं जैसे कि बाबर, जो महान एशियाई विजेता तैमूर लंग का पोता था और गंगा नदी की घाटी के उत्तरी क्षेत्र से आए विजेता चंगेज़खान, जिसने खैबर पर कब्‍जा करने का निर्णय लिया और अंतत: पूरे भारत पर कब्‍ज़ा कर लिया।
बाबर (1526-1530):
यह तैमूर लंग और चंगेज़खान का प्रपौत्र था जो भारत में प्रथम मुगल शासक थे। उसने पानीपत के प्रथम युद्ध में 1526 के दौरान लोधी वंश के साथ संघर्ष कर उन्‍हें पराजित किया और इस प्रकार अंत में मुगल राजवंश की स्‍थापना हुई। बाबर ने 1530 तक शासन किया और उसके बाद उसका बेटा हुमायूं गद्दी पर बैठा।
हुमायूं (1530-1540 और 1555-1556):
बाबर का सबसे बड़ा था जिसने अपने पिता के बाद राज्‍य संभाला और मुगल राजवंश का द्वितीय शासक बना। उसने लगभग 1 दशक तक भारत पर शासन किया किन्‍तु फिर उसे अफगानी शासक शेर शाह सूरी ने पराजित किया। हुमायूं अपनी पराजय के बाद लगभग 15 वर्ष तक भटकता रहा। इस बीच शेर शाह मौत हो गई और हुमायूं उसके उत्तरवर्ती सिकंदर सूरी को पराजित करने में सक्षम रहा तथा दोबारा हिन्‍दुस्‍तान का राज्‍य प्राप्‍त कर सका। जबकि इसके कुछ ही समय बाद केवल 48 वर्ष की उम्र में 1556 में उसकी मौत हो गई।
शेर शाह सूरी (1540-1545):
एक अफगान नेता था जिसने 1540 में हुमायूं को पराजित कर मुगल शासन पर विजय पाई। शेर शाह ने अधिक से अधिक 5 वर्ष तक दिल्‍ली के तख्‍त पर राज किया और वह इस उप महाद्वीप में अपने अधिकार क्षेत्र को स्‍थापित नहीं कर सका। एक राजा के तौर पर उसके खाते में अनेक उपलब्धियों का श्रेय जाता है। उसने एक दक्ष लोक प्रशासन की स्‍थापना की। उसने भूमि के माप के आधार पर राजस्‍व संग्रह की एक प्रणाली स्‍थापित की। उसके राज्‍य में आम आदमी को न्‍याय मिला। अनेक लोक कार्य उसके अल्‍प अवधि के शासन कार्य में कराए गए जैसे कि पेड़ लगाना, यात्रियों के लिए कुएं और सरायों का निर्माण कराया गया, सड़कें बनाई गई, उसी के शासन काल में दिल्‍ली से काबुल तक ग्रांड ट्रंक रोड बनाई गई। मुद्रा को बदल कर छोटी रकम के चांदी के सिक्‍के बनवाए गए, जिन्‍हें दाम कहते थे। यद्यपि शेर शाह तख्‍त पर बैठने के बाद अधिक समय जीवित नहीं रहा और 5 वर्ष के शासन काल बाद 1545 में उसकी मौत हो गई।
अकबर (1556-1605):
हुमायूं के उत्तराधिकारी, अकबर का जन्‍म निर्वासन के दौरान हुआ था और वह केवल 13 वर्ष का था जब उसके पिता की मौत हो गई। अकबर को इतिहास में एक विशिष्‍ट स्‍थान प्राप्‍त है। वह एक मात्र ऐसा शासक था जिसमें मुगल साम्राज्‍य की नींव का संपुष्‍ट बनाया। लगातार विजय पाने के बाद उसने भारत के अधिकांश भाग को अपने अधीन कर लिया। जो हिस्‍से उसके शासन में शामिल नहीं थे उन्‍हें सहायक भाग घोषित किया गया। उसने राजपूतों के प्रति भी उदारवादी नीति अपनाई और इस प्रकार उनसे खतरे को कम किया। अकबर न केवल एक महान विजेता था बल्कि वह एक सक्षम संगठनकर्ता एवं एक महान प्रशासक भी था। उसने ऐसा संस्‍थानों की स्‍थापना की जो एक प्रशासनिक प्रणाली की नींव सिद्ध हुए, जिन्‍हें ब्रिटिश कालीन भारत में भी प्रचालित किया गया था। अकबर के शासन काल में गैर मुस्लिमों के प्रति उसकी उदारवादी नीतियों, उसके धार्मिक नवाचार, भूमि राजस्‍व प्रणाली और उसकी प्रसिद्ध मनसबदारी प्रथा के कारण उसकी स्थिति भिन्‍न है। अकबर की मनसबदारी प्रथा मुगल सैन्‍य संगठन और नागरिक प्रशासन का आधार बनी।
अकबर की मृत्‍यु उसके तख्‍त पर आरोहण के लगभग 50 साल बाद 1605 में हुई और उसे सिकंदरा में आगरा के बाहर दफनाया गया। तब उसके बेटे जहांगीर ने तख्‍त को संभाला।
जहांगीर:
अकबर के स्‍थान पर उसके बेटे सलीम ने तख्‍तोताज़ को संभाला, जिसने जहांगीर की उपाधि पाई, जिसका अर्थ होता है दुनिया का विजेता। उसने मेहर उन निसा से निकाह किया, जिसे उसने नूरजहां (दुनिया की रोशनी) का खिताब दिया। वह उसे बेताहाशा प्रेम करता था और उसने प्रशासन की पूरी बागडोर नूरजहां को सौंप दी। उसने कांगड़ा और किश्‍वर के अतिरिक्‍त अपने राज्‍य का विस्‍तार किया तथा मुगल साम्राज्‍य में बंगाल को भी शामिल कर दिया। जहांगीर के अंदर अपने पिता अकबर जैसी राजनैतिक उद्यमशीलता की कमी थी। किन्‍तु वह एक ईमानदार और सहनशील शासक था। उसने समाज में सुधार करने का प्रयास किया और वह हिन्‍दुओं, ईसाइयों तथा ज्‍यूस के प्रति उदार था। जबकि सिक्‍खों के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण थे और दस सिक्‍ख गुरूओं में से पांचवें गुरू अर्जुन देव को जहांगीर के आदेश पर मौत के घाट उतार दिया गया था, जिन पर जहांगीर के बगावती बेटे खुसरू की सहायता करने का अरोप था। जहांगीर के शासन काल में कला, साहित्‍य और वास्‍तुकला फली फूली और श्री नगर में बनाया गया मुगल गार्डन उसकी कलात्‍मक अभिरुचि का एक स्‍थायी प्रमाण है। उसकी मृत्‍यु 1627 में हुई।
शाहजहां:
जहांगीर के बाद उसके द्वितीय पुत्र खुर्रम ने 1628 में तख्‍त संभाला। खुर्रम ने शाहजहां का नाम ग्रह किया जिसका अर्थ होता है दुनिया का राजा। उसने उत्तर दिशा में कंधार तक अपना राज्‍य विस्‍तारित किया और दक्षिण भारत का अधिकांश हिस्‍सा जीत लिया। मुगल शासन शाहजहां के कार्यकाल में अपने सर्वोच्‍च बिन्‍दु पर था। ऐसा अतुलनीय समृद्धि और शांति के लगभग 100 वर्षों तक हुआ। इसके परिणाम स्‍वरूप इस अवधि में दुनिया को मुगल शासन की कलाओं और संस्‍कृति के अनोखे विकास को देखने का अवसर मिला। शाहजहां को वास्‍तुकार राजा कहा जाता है। लाल किला और जामा मस्जिद, दिल्‍ली में स्थित ये दोनों इमारतें सिविल अभियांत्रिकी तथा कला की उपलब्धि के रूप में खड़ी हैं। इन सब के अलावा शाहजहां को आज ताज महल, के लिए याद किया जाता है, जो उसने आगरा में यमुना नदी के किनारे अपनी प्रिय पत्‍नी मुमताज महल के लिए सफेद संगमरमर से बनवाया था।
औरंगज़ेब:
औंरगज़ेब ने 1658 में तख्‍त संभाला और 1707 तक राज्‍य किया। इस प्रकार औरंगज़ेब ने 50 वर्ष तक राज्‍य किया। जो अकबर के बराबर लम्‍बा कार्यकाल था। परन्‍तु दुर्भाग्‍य से उसने अपने पांचों बेटों को शाही दरबार से दूर रखा और इसका नतीजा यह हुआ कि उनमें से किसी को भी सरकार चलाने की कला का प्रशिक्षण नहीं मिला। इससे मुगलों को आगे चल कर हानि उठानी पड़ी। अपने 50 वर्ष के शासन काल में औरंगजेब ने इस पूरे उप महाद्वीप को एक साथ एक शासन लाने की आकांक्षा को पूरा करने का प्रयास किया। यह उसी के कार्यकाल में हुआ जब मुगल शासन अपने क्षेत्र में सर्वोच्‍च बिन्‍दु तक पहुंचा। उसने वर्षों तक कठिन परिश्रम किया किन्‍तु अंत में उसका स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ता चला गया। उसने 1707 में 90 वर्ष की आयु पर मृत्‍यु के समय कोई संपत्ति नहीं छोड़ी। उसकी मौत के साथ विघटनकारी ताकतें उठ खड़ी हुईं और शक्तिशाली मुगल साम्राज्‍य का पतन शुरू हो गया।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

यौनदुष्कर्म और बेख़ौफ़ अपराधी


यह गुरुवार कितना अशुभ रहा! तेलंगाना के बाद अब यू.पी. में दहशत का साम्राज्य है । हैदराबाद की डॉ. प्रियंका रेड्डी की दर्दनाक हत्या के बाद जहाँ पूरा देश यौनदुष्कर्मियों को फाँसी देने की माँग कर रहा है वहीं यौनदुष्कर्मियों में इस बात को लेकर तनिक भी भय नहीं है, वे बेख़ौफ़ जघन्य अपराध किये जा रहे हैं । क्या यह दुःखद नहीं है कि जनता को यह माँग करनी पड़ रही है कि कानून का राज्य स्थापित करने के लिये यौनदुषकर्मियों को फाँसी की सजा दी जानी चाहिये ! यानी हमें न्याय के लिये भी राजा के सामने गिड़गिड़ाना ही होगा ।
१.   यू.पी. में मैनपुरी जिले के घिरोर कस्बे में कुछ शोहदों ने दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक किशोरी से छेड़छाड़ की, भाई ने समझाइश दी तो नाराज़ शोहदों ने पहले चौबीस घण्टे के भीतर देख लेने की चेतावनी दी फिर आज सुबह मौका देखा, सूने घर में घुस गये और किशोरी के गले में फंदा डालकर उसी के घर में फाँसी दे दी ।
संविधान का कौन सम्मान करता है ? कानून से कौन डरता है ? ऐसी ही निरंकुश और अराजक  व्यवस्था के लिये हम उन्हें अपने ऊपर हुक़ूमत का अधिकार देते हैं!
२.   मेरठ में भी आज सुबह राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे यौनदुष्कर्म के बाद चलती ट्रक से फेंकी हुयी एक युवती पायी गयी । अराजकता और निरंकुशता का यह आलम दहशत पैदा करता है । सड़क पर भागती गाड़ियों के भीतर किसी लड़की को कुछ लोगों द्वारा नोचा जाता है फिर उसे सड़क के किनारी कहीं भी फेंक दिया जाता है गोया चलती कार में गरम भुट्टा खाया फिर उसे चलती कार से बाहर फेंक दिया । स्त्री का जीवन एक वस्तु हो गया है, यूज़ एण्ड थ्रो ।
३.   उन्नाव जिले के पाटन खेड़ा गाँव की एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म हुआ था । आरोपी जमानत पर थे और अदालत में के चल रहा था । सभी आरोपी ब्राह्मण हैं, उन्होंने ब्राह्मण समुदाय को कलंकित करते हुये आज सुबह युवती को जीवित जला दिया । यानी ख़ौफ़ नाम की किसी चीज से अपराधी अब पूरी तरह अनजान हैं ।

गाँव की युवती न्याय की तलाश में थी, अदालत की राह में थी, आरोपियों ने न्याय की राह रोक दी, युवती को मारा-पीटा फिर उसे जीवित जला दिया । नब्बे प्रतिशत तक जल चुकी युवती अब दर्द से लड़ रही है और प्रतीक्षा कर रही है मौत की । न्याय की असफल प्रतीक्षा के बाद अब केवल मृत्यु की प्रतीक्षा ।

अब यह सवाल कौन पूछेगा माननीय न्यायालय जी से कि सामूहिक यौनदुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोपियों को जमानत पर क्यों छोड़ गया था, क्या इसलिये कि वे न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकें ?
चलो! हो गयी प्रभावित न्याय प्रक्रिया । जला दिया लड़की को, मिट गये सबूत, मर गयी फ़रियादी ।
आइये! अब हम माननीय न्यायालय का सम्मान करें ।

शनिवार, 30 नवंबर 2019

क़ानून से भयभीत है इंसानियत


सभ्य और विकसित माने जाने वाले समाज में बहुत सी अन्य लड़कियों की तरह एक और लड़की मर्मांतक पीड़ा से गुजरती हुयी तड़पकर मर गयी । इस तरह न जाने कितनी मारी जा चुकी लड़कियों का लेखा-जोखा रखना हुक़्मरानों के लिये परेशानी का एक सबब बन सकता है इसलिये ऐसे भयावह लेखे-जोखे सहेजे नहीं जाते ।
उसके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म किया गया फिर उसे जीवित जलाकर मार डाला गया । कुछ राक्षसों ने एक लड़की की ज़िंदगी को पहले नर्क बनाया फिर उसे जलाकर मार डाला । लोग उसके लिये न्याय की माँग कर रहे हैं ..हमेशा की तरह एक असफल प्रयास कर रहे हैं ।
उसके लिये न्याय की माँग की जा रही है जिसके लिये न्याय-अन्याय का अब कोई अर्थ नहीं रहा । यौन अपराधियों को समाज में जीवित रहने का अधिकार देने वाले कानून को कोई कैसे सम्मान दे सकता है ? इससे पहले कि समाज में बगावत हो जाय ऐसे कानूनों को विसर्जित करना होगा ।

हैदराबाद की पशु चिकित्सक डॉ. प्रियंका रेड्डी को मनुष्य प्रजाति के पशुओं ने जलाकर मार डाला । हमारा कानून बेगुनाहों की रक्षा नहीं कर पाता किंतु अपराधियों को ज़िंदा रहने का पूरा अधिकार देता है । यह उस सभ्य समाज के निकृष्टतम चरित्र का एक चित्र है जिसे हम सब न जाने कबसे देखते रहने के लिये विवश हैं । इसरो के वैज्ञानिक चाँद पर जा रहे हैं और हम अपने घर की चाँदनी को ख़ाक होता हुआ देख रहे हैं ।

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

हिमालय


थुनेर की नमकीन चाय
तिमूर के साथ भाँग के बीजों की चटनी
मडुवा की रोटी
छीपी के तड़के वाली
भट की दाल  
और
छोटी सी तिपायी पर
रिंगाल की टोकरी में रखे
बुराँस के सुर्ख फूल
अक्सर बुलाते हैं मुझे ।
मैं भाग जाना चाहता हूँ
एक दिन
तोड़ कर सारी जंजीरें
देवदार के जंगलों में ।

नैना देवी से
मिलम के मार्ग पर
वहाँ
बैठकर उस चोटी के एक किनारे
बजाना चाहता हूँ बाँसुरी
देखना चाहता हूँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड
बंद कर अपनी आँखें ।
हिमालय की दिव्यता
बाँधती है मुझे
अपने सम्मोहन में
किंतु
डरती है पत्नी
हिमालय के खिसकने से
बादलों के फटने से
रास्तों के अवरुद्ध हो जाने से...
मौत से भयभीत पत्नी 
नहीं जाना चाहती मुंसियारी
नहीं जाना चाहती बागेश्वर ।
डरती है पत्नी
जैसे डरते हैं और भी बहुत से लोग
भाग जाना चाहते हैं मैदानों की ओर
लेकर अपना परिवार ।

मैं
चढ़ जाना चाहता हूँ
दुर्गम चोटियों पर
डरते हैं जिनसे लोग
मुझे आकर्षित करती हैं
हिमालय की वे ही हलचलें
सहम जाते हैं जिनसे लोग ।

हिमालय की मुश्किलों से
दोस्ती नहीं कर सकी पत्नी
किंतु मेरे प्राण तो रखे हैं गिरवीं
वहीं कहीं
ढूँढने जाना है मुझे
एक दिन उन्हें ।

बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

गांधी को वस्तु बनते हुए देखा है मैंने

दो अक्टूबर और गांधी जयंती भारत में एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं । दो अक्टूबर को ही जन्मे लालबहादुर शास्त्री गांधी के आभामण्डल में पूरी तरह खो चुके हैं । गांधी जयंती के दिन शास्त्री जयंती नेपथ्य में चली जाया करती है । शास्त्री जी को दो अक्टूबर के दिन खोजना पड़ता है ।
- कभी-कभी कोई विराट आभा मण्डल उस ब्लैक होल की तरह होता है जो अपने समीप आने वाले हर आभा मण्डल को निगल जाता है । फ़िलहाल मंथन का विषय गांधी और शास्त्री नहीं बल्कि “किसकी झोली में गांधी” है ।
- 1947 से 2014 तक गांधी एक ही झोली के लिए आरक्षित हुआ करते थे फिर 2014 में अचानक एक झोली और खुल गई । गांधी एक हैं झोलियाँ दो हो गईं ।
- भारतीय नोट पर गांधी हैं, गांधी पर वोट हैं, वोट एक संख्या है, संख्या से सत्ता का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- गांधी अब विचार नहीं वस्तु हैं, वस्तु के लिए छीना झपटी हुआ करती है, छीना झपटी पहले कलह में और अंत में हिंसा में बदल जाया करती है । अहिंसा की बात करने वाले गांधी के नाम पर अब हिंसा का वातावरण निर्मित हो गया है ।
- गांधी किसी आश्रम से निकलकर सड़क पर आ गए हैं, गांधी के एक ओर हैं गोडसे और दूसरी ओर हैं एक और गांधी जो स्वयं को गांधी का उत्तराधिकारी मानते हैं । हवा में कुछ हाथ प्रकट होने लगे हैं जो असली और नकली गांधी पर उँगलियाँ उठाने लगे हैं । गांधी अवाक हैं.. वे कुछ बोल नहीं पाते, पहले भी जब बोल पाते थे तब कितने लोग उनकी बातें सुन पाते थे ?
- शायद गांधी एक मात्र ऐसे हैं जिन्हें लेकर छीना-झपटी का वातावरण बन गया है । हिटलर, मुसोलिनी, लेनिन, स्टालिन और माओ को लेकर कभी कोई छीना-झपटी नहीं हुई ...मरने के बाद इनमें से कोई भी अपने देश के परस्पर विरोधी दलों के लिए गांधी नहीं बन पाया ।
- गांधी की आत्मा से यदि पूछा जाय कि परस्पर विरोधी दलों के लिए गांधी बनने का अनुभव कैसा रहा तो शायद उनका उत्तर होगा कि किसी भी जननेता के लिए इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और कुछ नहीं होगी ।
- गांधी अब एक वस्तु हैं, गांधी अब एक नारा हैं, गांधी अब एक सीढ़ी हैं, गांधी अब एक सत्ता के साधन हैं ...गांधी अब गांधी नहीं रहे, वे एक वस्तु हो गए हैं । 

शनिवार, 7 सितंबर 2019

तबाही को आमंत्रित करती सभ्यता




दिनांक 060919
यह सभ्यता उन गलतियों की वज़ह से तबाह हो रही है जो हम जानबूझकर करते हैं...
तारीख़ बदल गयी है लेकिन मंजर वही है... अँधेरी रात और घनघोर वर्षा में डूबता जगदलपुर शहर । रात के दो बज रहे हैं अचानक कुछ गिरने की आवाज़ से नींद खुली तो देखा कमरे में पानी भरा हुआ है।
हमारा घर जगदलपुर के पॉश इलाके में है जहाँ एन.एम.डी.सी. के अधिकारियों से लेकर आई.जी. और कमिश्नर जैसे बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी भी रहते हैं। इसी साल जुलाई में भी यह शहर इसी तरह पानी में डूबा था किंतु सबक नहीं लिए जाने की परम्परा को निभाते हुए कोई सबक नहीं लिया गया । इस बार स्थिति ज़्यादा ही गम्भीर है।
विज्ञान एक ऐसा दैत्य है जिसे सम्हालना बहुत मुश्किल है । तबाही के दिन हमारी कोई भी उन्नत तकनीक किसी को भी बचा नहीं सकेगी ।  वह एक ऐसी घड़ी होगी जब कुछ भी हमारे पक्ष में नहीं होगा - न पद ...न पैसा

डायल 112...
पानी घरों के अंदर घुस चुका है, सारा सामान भीग रहा है। रात के ढाई बजे मैंने डायल 112 को फ़ोन करके सहायता की याचना करनी चाही। उधर से कहा गया कि आवाज़ नहीं सुनाई दे रही है, बी.एस.एन.एल की सेवा से हम बहुत अच्छी तरह परिचित हैं। हमने दोबारा और तिबारा फोन लगाया ...उधर से वही आवाज़...”आपकी आवाज़ स्पष्ट नहीं है, कृपया दोबारा लगाएँ” । इस बार हमने दूसरे मोबाइल से सम्पर्क किया, बात हुयी, उधर से कहा गया “शीघ्र ही आपसे सम्पर्क किया जाएगा”। पिछले बार भी यही कहा गया था, वह सम्पर्क आज तक नहीं हुआ। यूँ, वारिश के अलावा अन्य मामलों में डायल 112 की सेवा तुरन्त मिल जाया करती है जिसके लिए हम छत्तीसगढ़ शासन और डायल 112 की टीम के ऋणी हैं।
डायल 112 के बाद हमने कुछ और लोगों को फ़ोन करके उन्हें इत्तला दी कि आपके घर में पानी घुस चुका है कृपया अपने ज़रूरी सामान को बचाने का प्रयास करें । जिन्हें फ़ोन किया गया उनमें तीसरे नम्बर पर एक बंदा ऐसा भी है जो पिछले पाँच साल से मेरे साथ शत्रुवत व्यवहार करता आ रहा है । कहीं पढ़ा था, आपत्तिकाल में शत्रु और मित्र का भेद समाप्त हो जाना चाहिए ।
दरअसल यह हमें भी पता है कि जब सड़क पर जाघों तक पानी बह रहा हो तो ऐसे में डायल 112 की सेवा भी क्या कर सकेगी। हमने उन्हें सुझाव दिया कि जे.सी.बी. भेज कर बाउण्ड्रीवाल के कुछ हिस्से को तोड़ दिया जाय तो पानी घरों से बाहर निकलना शुरू हो जाएगा । पिछली बार की वारिश में हमारे पड़ोसी गुड्डू ख़ान ने अपनी जे.सी.बी. मँगवाकर कुछ मलबा हटाकर सफ़ाई की थी तो पानी घरों से बाहर निकलने लगा था। इस बार गुड्डू ख़ान हैदराबाद में हैं और डायल 112 वाले जे.सी.बी. की सेवा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं।
फ़िलहाल अब घर-घर में डल झील का आनंद प्राप्त करना हो गया आसान । बस, एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए हमें एक शिकारा बनवाना पड़ेगा । इसके बाद तो सब कश्मीर ही कश्मीर हो जायेगा ।

वरुण देवता हमसे बेहद ख़फ़ा हैं क्योंकि हमने प्रकृति के साथ बेहद बदसलूकी की है...
जगदलपुर शहर में इधर कुछ वर्षों में तेजी से कंक्रीट के जंगल खड़े किए जाते रहे हैं किंतु पानी के निकास की कहीं कोई व्यवस्था नहीं की गयी । कुछ कॉलौनीज़ तो ऐसी भी हैं जिनके चारों ओर बाउण्ड्रीवाल बनाकर किलेबंदी भी कर दी गई जिससे वारिश का पानी बाहर नहीं निकल पाता । यदि इन दीवालों को तोड़ दिया जाय तो कम से कम घरों को पानी में डूबने से बचाया जा सकता है किंतु इन बाउण्ड्रीवाल को तोड़ने में किसी अधिकारी की कोई दिलचस्पी नहीं है ।

पॉलीथिन बैग्स का अंधाधुंध दुरुपयोग और बेवकूफ़ाना ढंग से बनाये गये घर अब घरवालों के लिए मुसीबत बन चुके हैं । ऐसे ही हालातों में किसी दिन यह सभ्यता नष्ट हो जायेगी । लेकिन यह सब जानते हुये भी सुधार के बारे में कभी कोई नहीं सोचेगा । विकास और आधुनिकता का सभ्यताओं और प्रकृति के साथ यही तो तकाज़ा है ।

कामायनी...
“हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह...एक व्यक्ति भीगे नयनों से देख रहा था प्रबल प्रवाह” – कामायनी लिखने से पहले क्या जयशंकर प्रसाद के भी घर में घुसकर गुस्साये पानी ने कभी ऐसी ही मनमानी की होगी! 

भोर के पाँच बज रहे हैं, रात भर हुयी घनघोर वारिश कुछ कम ज़रूर हुई किंतु बंद अभी भी नहीं हुयी। हम अपनी श्रीमती जी के साथ रात भर कमरों से पानी उलीचते रहे और ज़रूरी सामान को बचाने की कोशिश करते रहे। लगातार तीन घंटे की मशक्कत के बाद हम दोनों ने घर का सारा पानी उलीच कर निकाल दिया। पानी के साथ कमरों में आकर ठहर गये गंदे कीचड़ को हमारी प्रतीक्षा है । बाहर आँगन में अभी भी जलस्तर ऊँचा है । घर के बाहर की सड़क पर पानी जाँघों तक है । पानी अब रुक-रुक कर बरस रहा है ।

नागलोक...  
पौ फटने लगी है। श्रीमती जी ने दरवाजा खोला तो देखता हूँ कि पानी में तैरता हुआ एक ज़हरीला नाग घर के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा है। श्रीमती जी ने झट से दरवाज़ा बंद कर दिया। नाग देवता को शरण के लिए अब कहीं और जाना होगा। मैं कुछ क्षणों के लिए नाग बनकर पानी में तैरता हुआ किसी आदमी के घर में शरण पाने की उम्मीद में घुसने की कोशिश करता हूँ। घर की मालिकिन मुझे देखते ही दरवाज़ा बंद कर लेती है.. मुझे बुरा लगता है और मैं निराश हो जाता हूँ। आज मुझे कोई भी अपने घर में नहीं घुसने देगा... सनसिटी के लोग ऐसे ही हैं। कम से कम प्राकृतिक आपदा के समय तो सहयोग करना चाहिये। मैं ज़हरीला हूँ तो इसमें मेरी क्या गलती है? पिछले महीने अमेज़ॉन के जंगल में आग धधकती रही, हमारे कितने भाई-बहन और रिश्तेदार आग में ज़िंदा जलकर ख़ाक हो गए! उफ़्फ़! ये आदमी लोग ख़ुद भी तबाह होते हैं और हमें भी तबाह करते हैं।
मैं एक बार फिर दरवाज़ा खोलता हूँ ...यह देखने के लिए कि नाग देवता अभी हैं या कहीं और चले गए। हाँ! वे जा चुके हैं । भोर का उजाला थोड़ा और बढ़ गया है । काश! लोगों के दिमाग़ों तक भी यह उजाला पहुँच पाता।

बदहवास सी एक नन्हीं चिड़िया मुंडेर पर आकर इधर-उधर देख रही है । पंछियों का कलरव आज सुनायी नहीं दे रहा है । वे सब परेशान हैं और शायद मन ही मन आदमी प्रजाति को कोस रहे हैं। चिड़िया उड़ गयी, श्रीमती जी ने दरवाज़ा खुला देखा तो चीख पड़ीं ...”ज़ल्दी बंद करो बाहर पानी में साँप हैं घर में घुस जायेंगे”। मैं दरवाज़ा खुला रखना चाहता हूँ ...किंतु चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकूँगा । मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया है । छत्तीसगढ़ का यह हिस्सा नागलोक है । कभी यहाँ नागवंशी राजा हुआ करते थे। अब राजा तो नहीं रहे किंतु नाग यहाँ आज भी बहुतातायत से मिलते हैं ।

असली साम्यवाद...
नौ बजे तक सड़क का जलस्तर काफ़ी कम हो चुका था और अब हॉस्पिटल जाया जा सकता था । रास्ते में कई जगह सड़क पानी के प्रवाह से कटी हुई मिली । कल तक जो सड़क ठीक-ठाक थी आज वहाँ एक से ढाई फ़िट गहरे गड्ढे बन चुके थे और उनमें पानी भरा हुआ था । हम जैसे-तैसे हॉस्पिटल पहुँचे तो प्रवेश द्वार क्षतिग्रस्त मिला । पूरे हॉस्पिटल में गाद वाले कीचड़ का आलम था । दवाइयों वाले स्टोर रूम में कीचड़ ही कीचड़ था। ज़मीन पर रखे सारे भीगे कार्टून कीचड़ में सने हुए थे । डॉ. क्रांति मण्डावी सारे कर्मचारियों के साथ स्वयं भी सफाई अभियान में लगी हुयी थीं । वे इस समय एक मेहनतकश स्वीपर की भूमिका में थीं और ओ.पी.डी. में भर गये पानी और कीचड़ को निकाल-निकाल कर फेंक रही थीं, फ़ार्मासिस्ट लोग झाड़ू और पानी का पाइप लेकर फ़र्श साफ़ कर रहे थे । जाते ही हमने भी एक झाड़ू थाम ली । हमने अपने जीवन में यह पहला ऐसा हॉस्पिटल देखा जहाँ आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर से लेकर स्वीपर तक सभी लोग मिलजुल कर बिना किसी अहं के किसी भी तरह के काम में जुट जाया करते हैं । ख़ासतौर पर सफ़ाई के समय हमने किसी भी अधिकारी या कर्मचारी में पद के अहंकार का लेश भी नहीं देखा । डॉक्टर्स की भागीदारी केवल दिखावे के लिए नहीं होती बल्कि वे भी कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहाते हैं । यह एक गौरवशाली परम्परा है जिसमें साम्यवाद के सिद्धांत का वास्तविकता के धरातल पर सही अनुवाद देखा जा सकता है ।

बी.एस.एन.एल. सेवाओं में स्पंदन की तलाश...

वारिश ने बी.एस.एन.एल. सेवाओं को स्पंदनहीन कर दिया । फ़िलहाल हमारा लैण्ड लाइन बिना कोई धारा समाप्त किये ही कश्मीर हो गया है, ब्रॉड बैण्ड कनेक्शन भी मृत हो चुका है। दुनिया से कटकर हम सत्तर के दशक के चाइना बन चुके हैं ...दुनिया से अलग एक अज़ूबी दुनिया के वाशिंदे ।  कहा नहीं जा सकता कि हमारी बी.एस.एन.एल. सेवायें कब तक कश्मीर या चाइना बनी रहेंगी । ज़रूरी नहीं कि सरकार ही कर्फ़्यू लगाएपवन देव, वरुण देव और अग्नि देव क्रुद्ध होने पर कभी भी कर्फ़्यू लगा सकते हैं । उनका लगाया कर्फ़्यू कोई तोड़ कर दिखाये तो भला! 

सोमवार, 19 अगस्त 2019

हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का समाधान...


मेरे बचपन और किशोरावस्था का एक बड़ा हिस्सा उत्तरप्रदेश में बीता था । उन दिनों उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़कने की यदाकदा ख़बरें आया करती थीं । बचपन में मुसलमानों के गाँव से होकर गुज़रना मेरे लिये एक बहुत ज़ोख़िम भरा काम हुआ करता था । मेरी कोशिश हुआ करती थी कि मुझे ऐसे गाँवों से हो कर न गुजरना पड़े । जब मैं शहर में पढ़ने गया और धीरे-धीरे शहर के कुछ मुसलमान लड़के मेरे मित्र बने तो मेरा भय बहुत हद तक कम हो गया ।

वर्ष 1990 ...यह गुलाबी शहर जयपुर था जहाँ रहकर मैं सर्ज़री में पी.जी. कर रहा था । उस समय प्रधानमंत्री थे विश्वनाथ प्रताप सिंह । मेरी छोटी बहन कुछ दिनों के लिये जयपुर आयी हुयी थी । एक दिन हिन्दू-मुस्लिम दंगा भड़का और मैं अपनी छोटी बहन के साथ दंगाइयों के बीच फँस गया, तब एक बार फिर मेरे बचपन की दहशत उभरी और मेरे दिल-ओ-दिमाग पर बुरी तरह छा गयी । रामनगर मोहल्ले की एक पतली गली में हमारे सामने अल्लाहो अकबर का नारा लगाते, तलवारें और रॉड लहराते दंगाइयों की भीड़ थी जबकि छतों पर महिलाओं और बच्चों ने ईंट-पत्थर के साथ मोर्चा सँभाला हुआ था । हमारी किस्मत अच्छी थी कि पीछे से पुलिस का एक ज़त्था आ गया । हम किसी तरह वहाँ से निकलकर घर तक पहुँच सके थे ।  
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों से गुजरते समय यह दहशत मुझे आज भी होती है । कुछ और बड़ा हुआ तो दिमाग में अक्सर कुछ सवाल उठने लगे, मसलन यह कि आज़ाद भारत में भी हिन्दुओं को धार्मिक दहशत का सामना क्यों करना पड़ता है ? आख़िर दुनिया में ऐसी कौन सी जगह है जहाँ हिन्दू महफ़ूज़ होकर रह सकें ...?

बाद के दिनों में मुझे कई मुसलमान बहुत अच्छे भी मिले । पहले वंगभंग और भारत विभाजन और इसके बाद हिन्दू-मुस्लिम फ़सादों की प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दुओं को लगने लगा कि जिस धर्म के कारण बँटवारे और दंगे होते हैं उसके लिये अब भारत में कोई स्थान नहीं होना चाहिये । इतना ही नहीं, इज़्रेल समस्या के बाद से हिन्दुओं को यह भी लगने लगा कि हिन्दुओं का भी एक देश होना चाहिये जिसे वे फ़ख़्र से अपना देश कह सकें । धार्मिक ठेकेदारों और राजनीतिक दाँव-पेचों ने इन समस्याओं का फ़ायदा उठाते हुये भारतीय समाज का जमकर धार्मिक ध्रुवीकरण किया । उच्चशिक्षित लोगों ने भी इस ध्रुवीकरण से परहेज़ करना प्रायः उचित नहीं समझा जिसके परिणामस्वरूप देश दरकता गया और आज स्थिति यह है कि यह ध्रुवीकरण नियंत्रण से बाहर होता चला जा रहा है ।

फ़सादी और विघ्नसंतोषी हर समुदाय में हैं, कोई भी समुदाय ऐसे लोगों से पूरी तरह मुक्त नहीं है । इसी तरह बहुत से अच्छे लोग भी हर समुदाय में हैं, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । भारत के लोगों को हिन्दू-मुस्लिम और भारत-पाकिस्तान समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ा है । दोनों समुदाय के लोग शेष बचे भारत पर अपनी-अपनी हुकूमत और वर्चस्व कायम करने के लिये परेशान हैं । इस प्रवृत्ति ने हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को और भी धारदार बना दिया है ।

हमारे बीच में कई ऐसे महत्वपूर्ण हिन्दू माननीय हैं जो भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के घोर विरोधी हैं वहीं कुछ मुस्लिम ऐसे भी हैं जो भारत, भारतीयता, और भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक हैं । मुस्लिमों का आँख बन्द कर विरोध करने से पहले हमें अब्दुल हमीद, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन आदि के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के आई.पी.एस. अधिकारी इम्तियाज़ हुसैन और आई.ए.एस. शाहिद चौधरी जैसे बहुत से ऐसे मुस्लिम लोगों को भी ध्यान में रखना चाहिये जो भारत के लिये जीते रहे या जी रहे हैं ।

रविवार, 18 अगस्त 2019

कोई धर्म न मानना भी एक धर्म है...


विश्व के कई देशों में लाखों लोगों ने अपने आपको किसी भी धर्म की सीमाओं से मुक्त रखने का फ़ैसला किया है । शासकीय अभिलेखों में ऐसे लोग रिलीज़न के बारे में “नो रिलीज़न” का उल्लेख किया करते हैं । कई साल पहले तक मुझे यह हास्यास्पद प्रतीत हुआ करता था । किंतु धीरे-धीरे ...यानी आइसिस के अस्तित्व में आने और सीरिया में तबाही की शुरुआत होने के बाद से मैंने “नो रिलीज़न” पर गम्भीरता से चिंतन करना शुरू किया । इस विषय पर मेरे शुरुआती लेखों में “नो रिलीज़न” को इंसानियत का रिलीज़न” निरूपित करने का प्रयास किया गया था । धीरे-धीरे मैंने अनुभव किया कि धर्म एक ऐसा तत्व है जिसके अभाव की कल्पना करना एक नितान्त अवैज्ञानिक हरकत है । अब मैं मानता हूँ कि “नो रिलीज़न” नामक एक नया धर्म है जो मानव धर्म के मामले में बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण पेश करता है । मैं “नो रिलीज़न” को एक प्रतिक्रियात्मक धर्म मानता हूँ जो विभिन्न धर्मों में व्याप्त “आदर्शों और व्यावहारिक जीवन के बीच की गहरी खाईं” के विरुद्ध एक बौद्धिक बगावत का परिणाम है । इसीलिए जब अपने लेखों में कई बार मैं “नो रिलीज़न” के पक्ष में खड़ा दिखायी देता हूँ तब सनातनधर्मियों को लगता है कि मैं सनातनधर्म से विद्रोह कर रहा हूँ ।
यदि आप “नो रिलीज़न” के बारे में तात्विक चिंतन करेंगे तो इसके भौतिक, अध्यात्मिक, दार्शनिक और मानवीय पक्षों का जो स्वरूप उभर कर सामने आयेगा वह आडम्बरविहीन मूल सनातन धर्म जैसा ही प्रतीत होगा, यही कारण है कि सनातनधर्म को मैं शाश्वत मानता हूँ ।
मैं प्रायः दो बातें कहा करता हूँ – एक तो यह कि जब कभी विकसित सभ्यताओं का पतन प्रारम्भ होगा तब नयी सभ्यता का उदय एक बार फिर पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली जनजातियों से ही होगा, और दूसरी बात यह कि प्राणियों के मामले में सनातनधर्म की शुरुआत मॉलीकुलर बायोलॉज़ी से होती है । इन बातों को गहरायी से समझने की आवश्यकता है । वास्तव में सनातन धर्म को जैसा मैं समझ सका हूँ... उसकी व्यापकता क्वाण्टम फ़िज़िक्स में भी है और ह्यूमन फ़िज़ियोलॉज़ी में भी ।

नो रिलीज़न वाले किसी लौकिक धर्म को लेकर प्रहार नहीं करते । अपने लौकिक धर्म को महान और दूसरों के लौकिक धर्म को मानवता का दुश्मन निरूपित करते हुये फ़साद के मामलों में लौकिक धर्मानुयायी ऐसे लोगों को हर स्तर पर धार्मिक कवरेज़ देने और अमानवीय कृत्य करने से भी पीछे नहीं हटते ।

इधर कुछ वर्षों से चीन यह मानता है कि धार्मिक कर्मकाण्ड मनुष्य के व्यापक चिंतन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं इसलिये उसने लोगों को गीत-संगीत-कला आदि से जोड़ने का प्रयास प्रारम्भ किया है । मुझे लगता है कि धार्मिक फ़सादों को ख़त्म करने के लिये यह एक बेहतर उपाय है ।