बुधवार, 21 मार्च 2018

जे.एन.यू. के नाम एक चिट्ठी


  
सुनो विद्वानो !  
बस्तर में आज फिर...
मार दिये गये कुछ जवान
जैसे कि मार दिये जाते हैं
आये दिन ।
बस्तर में आज  फिर...
हवा में उछल गये मांस के लोथड़े
जैसे कि उछलते रहते हैं
आये दिन
घात लगाकर किये गये विस्फोटों में ।
तुम कहते हो
कि सैनिक तो होते ही हैं मरने के लिये
लेकिन
जैसे ही मरता है कोई राष्ट्रघाती
व्यथित हो जाते हो तुम
उमड़ पड़ता है सैलाब
तुम्हारी संवेदनाओं का
हो जाते हो करुणा विगलित
और उमड़ पड़ते हो सड़कों पर
दुष्टों के
मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ।
इसलिये
अब तय कर लिया है मैंने
कि नहीं पढ़ाऊँगा-लिखाऊँगा अपने बच्चों को
कहीं वे भी हो गये
आप जैसे ही विवेकहीन तो !            


क्राउड इन द मैन


लालबत्ती चौराहे पर
रुकते ही वाहनों के
दौड़ पड़ते हैं बच्चे
उलझे गन्दे बालों वाले
पहने मैले-कुचैले कपड़े
लेकर फूलों की माला
‘ले लो न सर एक’। 
सेठ और साहब
नहीं सुनते गुहार
नहीं देखते उनकी ओर ।
शीशे चढ़ी कार के पास
होकर खड़े 
पत्थर के बुतों को निहारते बच्चे
गोया माँग रहे हों भीख ।
रंग बदलते ही बत्ती का
बच्चे हो जाते हैं निराश
सेठ और साहब के बुत
करने लगते हैं हरकत
और दौड़ पड़ता है काली सड़क पर
महँगी गाड़ियों का रेला ।

गन्दे बच्चों के पास हैं
उजले फूलों की मालायें
उजले लोगों के पास हैं
गन्दे दिल
बेहद उलझे हुये ।

चौराहों पर है
मैन इन द क्राउड
ठीक
उन्हीं चौराहों पर है
क्राउड इन द मैन भी ।

सोमवार, 19 मार्च 2018

कोयलिया


छनन-छनन छन-छन पायलिया
ओढ़ि चली सिंदूरी चुनरिया
मधुमास भये 
दिन चढ़ी गुजरिया ।

संदेह भरे मन
बूढ़े टेसू
ठाड़े कछु ताड़त
पकरि कमरिया ।

घुसत खेत लटपटात
लम्पट पवन मंद पी छेड़त
फुदकि-फुदकि के फुनगी-फुनगी
चुगली करत कोयलिया ।

रविवार, 18 मार्च 2018

वह उठा लाया


वह उठा लाया
रास्ते में पड़ा एक पत्थर
रात भर
छेनी-हथौड़ी की मार
सहता रहा पत्थर
भोर हुई
प्रसव हुआ
सबने देखा
वहाँ बहने लगी थी
कलकल करती एक कविता ।

समूल उखा‌ड़ दिए थे
न जाने कितने कुंवारे पेड़
अवसर की आँधियों ने ।
वह घर उठा लाया
धराशायी हुए कुछ पेड़
सहलाता रहा उनके ज़ख़्म
करता रहा मरहम-पट्टी
फिर कुछ दिनों बाद आयीं
कुछ चिड़ियाँ
गाने लगीं गीत
उन पेड़ों से लिपटकर ।
एक दिन लोगों ने देखा
कि नए पत्ते निकलने लगे हैं
पेड़ की सूखी शाखाओं से
और फुदकने लगी हैं वहाँ
न जाने कितनी कविताएं ।

बुधवार, 14 मार्च 2018

दुःख के स्वाङ्ग


बिहार की बहू नवेली
हरियाणा की बेटी अकेली
हिमांचल की वादियों में
बेटे की सलामती के लिए दिया जलाती बूढ़ी माँ
और झुर्रियों भरे चेहरे पर मुरझायी आँखों से 
प्रतीक्षा करते बूढ़े पिता... मुझे पता है
दुःख का यह पहाड़
एक संवेदनशून्य सूचना की तरह
आपके पास पहुँचने ही वाला है
कि बस्तर के जंगलों में
कुछ और जवानों के
चिथड़े-चिथड़े हो चुके शव
अपनी असामयिक
अंतिम यात्रा की प्रतीक्षा में हैं ।
सबको पता है
कि आपके आँगन में बस चुके अँधेरों को
मुआवज़े की रकम से तौल कर
एक रस्म अदा की जायेगी
सत्ताओं ने इन अँधेरों को
नाम दिया है – “बलिदान
देशभक्ति का
यह एक भावनात्मक मूल्य है
जो दिया जाता है
भावनाशून्य लोगों द्वारा
भोले-भाले लोगों को 
ताकि हुकूमत करते रह सकें
बूढ़े पिण्डारी
जवानों के रक्त के मूल्य पर ।

बस्तर की मैना
सत्ताओं का विरोध करती थी 
क्योंकि वह सदा से
युद्ध का विरोध करती थी ।
एक दिन मार दिया
मैना को भी,  
बस्तर में
अब नहीं पायी जाती
गीत गाने वाली पहाड़ी मैना ।  

माओवाद के ज्वालामुखी में धधकता बस्तर


भारत से हारता भारत...

दिनांक 13 मार्च 2018 सुकमा

माओवादियों के विश्वसनीय और सीसुब के लचर सूचना तंत्र ने माओवादियों को अवसर दिया और वे विध्वंसक कार्यवाही कर बैठे । माओवादियों के विस्फोट से युद्ध में प्रयुक्त होने वाले एंटी लैण्ड माइंस वाहन के परखच्चे उड़ गये जिसमें नौ जवानों की तुरंत मृत्यु हो गयी और दो गम्भीर रूप से घायल हो गये । जवानों की मृत्यु एक दिन के लिये पुनः स्थानीय अख़बारों की सुर्खी बनी । जवानों के घर में मातमी बादल छा गये और मुआवजे की रक़म से जवानों की ज़िन्दग़ी को तौले जाने की रस्म अदायगी की फाइलें बननी शुरू हो गयीं ।
बस्तर के लोग अब उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा, पञ्जाब, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश आदि प्रांतों से आने वाले जवानों की असामयिक मौत को देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं । भारत की जनता भारत के भीतर भारत को बुरी तरह परास्त होते देखते-देखते अब संवेदनशून्य हो गयी है । हृदय पाषाणी हो चुके हैं और व्यवस्थायें अपने पूर्ण अराजक होने की घोषणा कर चुकी हैं ।
बस्तर के माओवादी पिण्डारियों की तरह वेष बदल कर स्वांग करते हुए अपने लक्ष्य को पूरा करने में दक्ष हैं । अपने पुष्ट सूचना तंत्र और अत्याधुनिक आयुधों के सहारे सेना की वर्दी में सेना को चकमा देते हुये सीसुब के जवानों के बीच घुसकर संहारक युद्ध करने वाले माओवादियों के आगे हमारा इतना विशाल तंत्र अपंग हो चुका सा प्रतीत होता है । उनके सामने हमारे संसाधन बौने से लगते हैं ।


बुधवार, 7 मार्च 2018

मूर्तियुद्ध..



1-     
विचार है एक धरती
कहीं बंजर कहीं उपजाऊ ।  
कर्म है अनुवाद
विचारों का
कभी घातक कभी बिकाऊ ।
मूर्ति बनेगी तो टूटेगी
ईश्वर की मूर्ति नहीं होती
इसलिए वह कभी नहीं टूटता
अमूर्त को तोड़ सकने की शक्ति किसमें है भला !
2-     
मनुष्य की मूर्ति एक साधन है
विचारों के दोहन का ।
मनुष्य की मूर्ति एक षड्यंत्र है
शव के व्यापार का ।
मनुष्य की मूर्ति एक पाखण्ड है
लोगों को भ्रमित करते रहने का ।
मनुष्य की मूर्ति एक चिंगारी है
अघोषित युद्ध का ।
मनुष्य की मूर्ति एक बल है
विचारों को थोपने का ।

मूर्तियाँ बनाई जाती हैं
मूर्तियाँ तोड़ी जाती हैं
सरल है उनका बनाना और तोड़ना
विचारों का आचरण
कठिन है, बहुत कठिन है
कठिन विषय को उपयोगी
समझा ही कब तुमने ! 
3-     
विचारों की मूर्ति नहीं होती
हो ही नहीं सकती । 
विचारक ब्रह्म नहीं है
विचारक को महत्व देना
ब्रह्म को अस्वीकार करना है । 
विचारों को स्वीकार करना
ब्रह्म को स्वीकार करना है ।

विचार तोड़ना चाहते थे
और तोड़ दी मूर्ति
क्योंकि अभाव है तुम्हारे पास
उस सद् विचार का
जो हो सकता है प्रभावी
इस असद् विचार पर ।
हाँ ! सरल है मूर्ति युद्ध
लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ।     

4-     
लेनिन ख़त्म नहीं होता
सद्दाम हुसैन भी ख़त्म नहीं होता
पहले जर्मनी टूटता है
फिर उसकी दीवाल टूटती है
रूस खण्ड-खण्ड हो जाता है
थ्येन आन मन चौक पर ख़ून बहता है ।

और आज तुमने
यह कौन सी जंग जीत ली है
मूर्ति तोड़ कर !
तोड़ सकते हो क्या
जाधवपुर और जे.एन.यू. में पल रहे विखण्डन ?
तोड़ सकते हो क्या
वैचारिक आयात का सेतु ?
तोड़ सकते हो क्या
अँधेरे की उस दीवाल को
जिसने रोक दी है रोशनी ?
5-     

मूर्तियों को नहीं मालूम
कि वे दिलाती हैं वोट
मूर्तियों को नहीं मालूम
कि वे थोपती हैं ज़िद
मूर्तियों को नहीं मालूम
के वे लगा देती हैं आग
सड़ती हुई सियासत में ।
कुछ भी मालूम होता मूर्तियों को
तो वे कर देतीं इंकार
किसी चौक पर खड़ी होने से । 


मूर्तियों की आवश्यकता नहीं होती
विचारों को
विचारों की आवश्यकता नहीं होती
अनुयायियों को
अनुयायियों की आवश्यकता नहीं होती
जनता को
जनता माँगती है रोटी
जनता माँगती है
नींद दे सकने वाली रात
जनता माँगती है
उतनी रोशनी
जो कर सके दूर
रास्ते का अँधेरा
जो फैला दिया है
मूर्तियों के अनुयायियों ने । 
6-     
मार्क्स हो चुके तुम
लेनिन और स्टालिन हो चुके तुम
सद्दाम और हाफ़िज़ सईद भी हो चुके तुम
विक्रमादित्य कब बनोगे ?

पूर्वोत्तर में बोल्शेविक हो लिए तुम
दक्षिण में माओ हो लिए तुम
भारत में भारत कब होगे तुम ?

मुझे मालूम है
तुम कुछ नहीं होना चाहते
तुम कुछ नहीं बदलना चाहते
इसलिए अब भारत को
थोड़ा-थोड़ा चीन भी होना चाहिए
जहाँ चलती है मोनो रेल
जहाँ चलते हैं मोनो थॉट
और जिससे आँख मिलाने में
दहशत होती है अमेरिका को ।
7-     
तुमने उनका विदेशी बबूल उखाड़ा
उन्होंने तुम्हारा देशी आम उखाड़ दिया ।
भूल गए तुम
कि रावण को उखाड़ने के लिए
बनना होता है राम
बबूल को उखाड़ने के लिए
बोना होता है आम ।
आम तो बोया नहीं
बबूल उखाड़ दिया
काँटे तो चुभने ही थे ।