सोमवार, 29 जनवरी 2024

एक व्यक्ति चार आत्महत्यायें

“अस्सलाम, नमस्कार, वणक्कम, सतश्री अकाल और गुड-मॉर्निंग” के साथ अपनी बात प्रारम्भ करने वाली पाकिस्तानी टीवी एंकर आरजू काज़मी ने आत्महत्या कर ली । भारतीय दर्शकों के लिये उनका “भेजा फ़्राई” नाम से एक यू-ट्यूब चैनल भी है । गौरव आर्या जैसे भारत के कई राष्ट्रवादियों के साथ आरजू को कई वार्ताओं में देखा जा सकता है जिनमें वे भारत की प्रशंसा के साथ पाकिस्तान की आलोचना करती हुयी दिखायी देती हैं । उन्हें भारत के कई पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के साथ वार्ताओं में देखा आ सकता है, आज भेजा फ़्राई की आरजू काज़मी ने भी आत्महत्या कर ली । पाकिस्तान में एक और आरजू काज़मी है, उसने भी आत्महत्या कर ली ।  

सोशल मीडिया पर भारत के लोग पाकिस्तान के जिन बुद्धिजीवियों से प्रभावित होते रहे हैं, उनमें से एक आरजू काज़मी भारतीय दर्शकों में बहुत लोकप्रिय हुयी हैं । उनकी साफगोई के लिये आप सबकी तरह मैं भी उनका प्रशंसक रहा हूँ । विभाजन के समय उनके बाबा इलाहाबाद के किसी गाँव से पाकिस्तान चले गये थे । विशेष अवसरों पर उन्हें अपनी दादी या नानी की लाल रंग की एक साड़ी पहने हुये देखा जा सकता है । भारत से अपनी जड़ें जोड़ने वाली आरजू अब नहीं है ।  

राजस्थान के अरविंद सहारन न्यूजीलैण्ड में प्रवासी हैं और शांति एवं भारत-पाक सम्बंधों पर काम करते हैं । अरविंद के एक वीडियो को देखने के बाद निश्चित हो गया कि आरजू अब नहीं रहीं । मुझे आश्चर्य से अधिक दुःख हुआ, आरजू काज़मी दो हत्यायें और चार आत्महत्यायें करने की दोषी हैं । घटनाक्रम बताने से पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि डाकू खड्ग सिंह कैसा भी क्यों न रहा हो पर उसने बाबा भारती को निराश नहीं किया । आरजू ने बाबा भारती के विश्वास के साथ-साथ डाकू खड्ग सिंह की भी हत्या कर दी है ।   

पाकिस्तान की ही एक और एंकर हैं अमारा इफ़्तिखार । अरविंद सहारन की बात की पुष्टि के लिये मुझे अमारा इफ़्तिखार के चैनल पर जाना पड़ा, अरविंद की बात सच निकली ।

कुछ दिन पहले आरजू ने दाउद इब्राहिम को विष दिये जाने के कारण उसकी मृत्यु की आशंका प्रकट करते हुये बताया था कि वे अपने सूत्रों से इस समाचार की पुष्टि करने का प्रयास कर रही हैं । अरविंद ने आरजू के इस समाचार का खण्डन किया और बताया कि आरजू भारतीय दर्शकों को आकृष्ट करने के लिये इस तरह के झूठे वीडियोज़ बनाती हैं । अरविंद ने यह भी बताया कि आरजू पाकिस्तानी टीवी पर भारत के विरुद्ध जमकर आग ही नहीं उगलतीं बल्कि अमर्यादित भाषा का भी प्रयोग करती हैं । वहीं भारतीय दर्शकों के लिए उनके अपने यू-ट्यूब “भेजा फ्राई” पर उन्हें भारत का पक्ष लेते और पाकिस्तानी शासन की कटु आलोचना करते हुये देखा जाता है । आरजू ने अभिनंदन के लिए कहा कि “उनका पायलट तो यहाँ से खूब जूते खा के गया है” । एक अन्य कार्यक्रम में आरजू ने मोदी को “गुजरात का कसाई” सम्बोधित किया है ।

एक्सपोज़ होने के बाद आरजू ने अरविंद पर व्यक्तिगत और पारिवारिक आरोप लगाने प्रारम्भ कर दिये, वह भी अमर्यादित भाषा और अपमानजनक शब्दों के साथ । आरजू की भाषा सुनने के बाद मुझे आश्चर्य से अधिक दुःख हुआ । भेजा-फ़्राई वाली एक हँसमुख लड़की इतनी उग्र और अमर्यादित हो सकती है!

पाकिस्तानी दर्शकों के लिये भारत को गरियाने वाली आरजू ने वर्चुअल आत्महत्या कर ली । भारतीय दर्शकों के लिये पाकिस्तान का मज़ाक बनाने वाली आरजू ने भी आत्महत्या कर ली । बाबा भारती के विश्वास को तोड़ने वाली आरजू भी मर गयी । डाकू खड्ग सिंह के चरित्र की हत्या करने वाली आरजू भी मर गयी । आरजू ने मानवीय मूल्यों की भी हत्या कर डाली है ।

पाकिस्तान की अमारा इफ़्तिखार और भारत की अम्बर ज़ैदी ने भी आरजू के कई मुखौटों पर दुःख व्यक्त किया है । इससे भी बड़े दुःख की बात यह है कि आरजू ने अरविंद के एक भी आरोप का उत्तर देने के बजाय केवल व्यक्तिगत आरोपों की बौछार की है ।

आरजू काज़मी ! आज तुम भारत के लाखों दर्शकों की दृष्टि में मर चुकी हो । तुमने अपने सभी मुखौटों के साथ एक-एक कर कई बार आत्महत्यायें कर डाली हैं ।

बाबा भारती से अधिक दुःखी तो डाकू खड्ग सिंह है जिसके चरित्र की आरजू ने हत्या कर दी । दो हत्यायें और चार आत्महत्याओं की दोषी आरजू काज़मी को आज मैंने अनसब्स्क्राइब कर दिया है । इस प्रकार की आत्महत्यायें बहुत त्रासदीपूर्ण होती हैं ।

पाकिस्तान ! तुम अपने विश्वासघाती बुद्धिजीवियों के कारण ही दुनिया भर में कहीं मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे हो ।

रविवार, 28 जनवरी 2024

झूठों का महिमा मण्डन, सच्चों का सर तन से जुदा

सरकारों द्वारा दिये जाने वाले पुरस्कारों की सत्यता आपके अंदर वितृष्ण उत्पन्न कर सकती है । इस तरह के पुरस्कार पाने वालों के प्रति विश्लेषकमन में एक प्रतिकूल धारणा उत्पन्न हो सकती है और वह व्यक्ति आपकी दृष्टि में गिर सकता है ।

तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम सरकार के मंत्री एम.के.स्टालिन ने गणतंत्र दिवस पर *आल्ट न्यूज* की आई.टी. सेल में काम करने वाले मोहम्मद जुबैर को “फर्ज़ी समाचारों के कारण समाज में होने वाली हिंसा को रोकने में मदद” के लिये सम्मानित किया है जबकि सत्य यह है कि वह व्यक्ति फ़र्जी समाचार फैलाकर सामाजिक हिंसा को बढ़ाने का काम करने और सनातनविरोधी गतिविधियों में दक्ष है । इन कुकृत्यों के लिये वह *फ़ैक्ट चेक* का दावा करके सनातन और हिन्दुओं से सम्बंधित सही समाचारों को झूठ सिद्ध करने के लिए आईटी का सहारा लेता है जिनके लिये वह कभी-कभी तो अच्छी खासी फ़ीस भी वसूल करता है । एक विशेष ट्वीट के लिए बारह लाख और एक अन्य ट्वीट के लिए दो करोड़ रुपये फीस लेने का आरोप स्वीकार करने वाले जुबैर को मात्र बीस हजार रुपये के बॉण्ड पर न्यायालय द्वारा जमानत दे दी जाती है जिससे जुबैर जैसे लोगों का दुस्साहस बढ़त है और वे *सच को झूठ एवं झूठ को सच* सिद्ध करने के राष्ट्रविरोधी कुकृत्यों में लिप्त बने रहते हैं । हमारे न्यायालय इसीलिए अपने प्रति विश्वास और सम्मान की हत्या स्वयं ही करते जा रहे हैं । किसी भी देश के लिए यह सर्वाधिक घातक स्थिति है ।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने जुबैर को गणतंत्र दिवस के अवसर पर वर्ष 2024 के लिये कोट्टई अमीर सद्भावना पुरस्कार से यह उल्लेख करते हुये सम्मानित किया है कि “उनका काम फर्ज़ी समाचारों के कारण समाज में होने वाली हिंसा को रोकने में मदद करता है”। जबकि वास्तविकता यह है कि उसके ऊपर 30 से भी अधिक फर्ज़ी समाचार प्रसारित करने का आरोप लगाया जा चुका है । नूपुर शर्मा के बारे में जुबैर द्वारा फैलाये गये झूठ के बाद पूरे देश में *ग़ुस्ताख़-ए-रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा सर तन से जुदा* करने की धमकियों की बाढ़ सी आ गयी थी और राजस्थान में कई हिन्दुओं की ईशनिंदा के नाम पर हत्यायें कर दी गयीं । तमिलनाडु सरकार जुबैर को दिये गये प्रशस्तिपत्र में यह उल्लेख करके कि उनका काम फर्ज़ी समाचारों के कारण समाज में होने वाली हिंसा को रोकने में मदद करता हैजुबैर को सारे आरोपों से मुक्त कर देने की घोषणा करती है ।

क्या यह सच नहीं है कि हमारे देश में कई देश बन गये हैं जो भारत के विरुद्ध सांस्कृतिक आक्रमण करते रहते हैं । इन आक्रमणों से स्वयं की और देश की रक्षा करने का एक ही उपाय है – झूठ का सशक्त विरोध करते हुये सच को सच कहने का साहस

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

बार-बार राष्ट्रद्रोह

अयोध्या में श्रीरामलला मंदिर का इतिहास भारत का इतिहास है जो हमें त्रेतायुग के आदर्श मानवमूल्यों में ले जाता है । जो लोग इस इतिहास से घृणा करते हैं और इसे स्वीकार नहीं करना चाहते उन्हें हम भारत के प्रति निष्ठावान कैसे मान सकते हैं! ऐसे लोगों का भारत के विकास में क्या योगदान हो सकता है सिवाय विध्वंस के!

...और अब जबकि हमने सन् 1528 में हुये अपने पराभव के उस कलंक को 9 नवम्बर 2019 को मिटाकर अपने प्राचीन गौरवमयी इतिहास को पुनः स्थापित कर दिया है तो एक बार फिर शोएब जमई और ओवैसी जैसे विषाक्त विचारधारा वाले लोग फुफकारने लगे हैं । आश्चर्य है, इन विषाक्त लोगों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं होती, इन्हें निरंकुश क्यों रहने दिया गया है?

कल अयोध्या में प्राणप्रतिष्ठा हुयी, पूरे देश में दीपावली मनायी गयी, मुम्बई में उत्साही लोगों ने जय श्रीराम का उद्घोष करते हुये मीरारोड-भायंदर से होते हुये एक शोभायात्रा निकाली जिसपर राष्ट्रद्रोहियों की हिंसक प्रतिक्रिया देखने को मिली । भारत में हर बार ऐसा क्यों होता है ? बात-बात में संविधान की दुहाई देने वाले धूर्त कहाँ हैं?  

समाचार है कि कल भायंदर में शोभायात्रा पर पथराव किया गया, गाड़ियों को आग लगा दी गयी और विष्णु जायसवाल के गाल पर चाकू से आक्रमण किया गया । अभी तक तेरह लोगों को बंदी बना लिया गया है जिनमें चार किशोरवय भी हैं । किशोरों और लड़कियों को आगे करके विध्वंस करने की इस दुष्टनीति को रोकने के लिए हमारी केंद्रीय और राज्य सरकारें कब तक भीरु बनी रहेंगी?  

पाकिस्तान में वहाँ के अल्पसंख्यकों द्वारा इस तरह की घटना की कल्पना भी नहीं की जा सकती । प्रश्न उठता है कि इतनी जघन्यता और राष्ट्र को बारबार चुनौती देने वाली घटनायें भारत में ही क्यों होती हैं ? सन् 1946 से 1948 तक का इतिहास बताता है कि भारत के कम्यूनल दुर्भाग्य का बीजारोपण तत्कालीन दो महान लोगों द्वारा किया गया और बाद में मनमोहन सरकार द्वारा लिये गये कुछ निर्णयों ने इसे पल्लवित-पुष्पित करने का काम किया ।

दुष्टों के दुस्साहस और शोएब जमई एवं ओवेसी जैसे कुछ लोगों की विध्वंसक चेतावनी को देखते हुये अयोध्या जाने वाले दर्शनार्थियों को धैर्य से काम लेना होगा । ध्यान रखिए, फ़िदायीन आक्रमणकारी भीड़ का दुरुपयोग कर सकते हैं ।

 

*मंदिरों का बँटवारा*

मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में श्रीराम कारसेवकों पर गोली चलवाकर इतिहास रच दिया था । मुलायमपुत्र अखिलेश यादव ने राजनीतिक कारणों से रामलला की प्राणप्रतिष्ठा का बहिष्कार किया और इससे होने वाली राजनीतिक क्षतिपूर्ति को कम करने के लिए सैफई में श्रीकृष्ण का भव्यमंदिर निर्माण किये जाने के समाचार उनके समर्थकों द्वारा प्रसारित किये जाने लगे हैं । अयोध्या में निर्मित श्रीरामलला के मंदिर से भी अधिक बड़ा और भव्य मंदिर बनवाना चाहते हैं अखिलेश । अखिलेश यादव को बधाई! ...किंतु अयोध्या के साथ श्रीरामलला का जो सम्बंध है वैसा सम्बंध श्रीकृष्ण जी का सैफई से कैसे स्थापित कर सकेंगे आप? प्रतिस्पर्धा करते समय सम्बंधों, प्रतीकों और प्रभावों को भी ध्यान में रख जाना चाहिये महोदय जी!  

श्रीराम के विरोधी मुलायमपुत्र श्रीकृष्ण का मंदिर क्यों बनवाना चाहते हैं? क्या हमारे आदर्शों का भी राजनीतिक बँटवारा कर लिया गया है? सूर्यवंशी राम से शत्रुता और चंद्रवंशी श्रीकृष्ण से निकटता! धार्मिक प्रतीकों और सामाजिक एवं राजनीतिक मूल्यों को लेकर इस तरह का बँटवारा देश के लिये बहुत घातक है ...और समाज को तोड़ने वाला भी । हम इस तरह की दूषित मानसिकता का विरोध करते हैं । भारत की आम जनता श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवनमूल्यों को अपना आदर्श मानती रही है और उनमें किसी भी तरह का विभेद या विद्वेष स्वीकार नहीं कर सकती । मंदिर निर्माण का उद्देश्य यदि सात्विक और पवित्र न होकर स्वार्थपूर्ण हो तो ऐसे मंदिर कभी लोककल्याण नहीं कर सकते ।

आश्चर्यजनक बात तो यह है कि मंदिर का निर्माण राजसत्ताओं द्वारा किया जाता रहा है लेकिन मंदिरों को लेकर गालियाँ ब्राह्मणों को दी जाती रही हैं । राजनीति की इस प्रमेय को बूझना सरल नहीं है ।

रविवार, 21 जनवरी 2024

प्राणप्रतिष्ठा का विज्ञान

प्राणप्रतिष्ठा के मुहूर्त को लेकर शंकराचार्यों और नेताओं द्वारा की गयी टिप्पणियों से जनमानस में कुछ शंकायें उत्पन्न हो गयी हैं । जब विद्वानों द्वारा किसी विषय पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की जाने लगें तो आमजन का सशंकित होना स्वाभाविक है । हमने इस विषय पर मोतीहारी वाले मिसिर जी से चर्चा की जो मुहूर्त से होकर आगे बढ़ती हुयी प्राणप्रतिष्ठा के भौतिक शास्त्र तक पहुँच गयी । इस चर्चा में हुये प्रश्नोत्तरों के कुछ महत्वपूर्ण अंशों को हम यहाँ यथावत् प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं ।

प्रश्न एक संत ने चेतावनी दी है कि प्राणप्रतिष्ठा की प्रक्रिया में सही विधान का पालन नहीं किया जा रहा है, मुहूर्त भी शुभ नहीं है, यदि अमुहूर्त में प्राणप्रतिष्ठा की जायेगी तो मंदिर के चारों ओर नकारात्मक सूक्ष्मशक्तियाँ एकत्र होने लगेगीं जिसके दुष्परिणाम भोगने के लिए सभी को तैयार रहना होगा । क्या सचमुच अयोध्या का मंदिर भारत के लिए अभिषाप बनने जा रहा है?

उत्तर मंदिर कभी अभिषाप नहीं होते । नकारात्मक सूक्ष्म शक्तियों के एकत्र होने की बात भयादोहन है, ऐसा कुछ नहीं होता । दिव्यशक्तियों के आह्वान और आराधना के लिये हर क्षण मुहूर्त होता है । दिक् और काल की सृष्टि करने वाले ईश्वर ने अपने आह्वान और आराधना के लिए कोई भी क्षण ऐसा नहीं बनाया जो अ-मुहूर्त हो ।

प्रश्न – मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा आवश्यक क्यों है ?

उत्तर – यदि मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा नहीं की जायेगी तो मंदिर पर्यटन के केंद्र बनकर रह जायेंगे, शक्ति के केंद्र नहीं बन सकेंगे । प्राणप्रतिष्ठा की प्रक्रिया ध्वनिविज्ञान पर आधारित है । पूरी प्रक्रिया एक जटिल फ़ोर्टीफिकेशन की तरह होती है जिसे कई प्रकार की प्रोसेज़ से होकर गुजरना होता है । फ़ोर्टीफ़िकेशन के बाद कोई भी फ़ोर्टीफ़ाइड उत्पाद गुणकारी, शक्तिशाली और जनसामान्य के उपयोग के लिए उपयुक्त हो जाता है ।

सुपात्र साधकों द्वारा विधिवत किये गये वैदिक मंत्रोच्चारण से जो ध्वनि ऊर्जा उत्पन्न होती है उसे मूर्ति में पोटेंशियल एनर्जी के रूप में स्थापित किया जाता है । कोई भी साधारण मूर्ति केवल पांचभौतिक तत्वों का पुञ्ज भर होती है । किसी अनगढ़ पत्थर को मूर्ति का आकार देने वाला मूर्तिकार सामान्य लोगों की अपेक्षा महान होता है किंतु जब मंत्रजनित सात्विक पोटेंशियल एनर्जी से उसी मूर्ति को अनुप्राणित किया जाता है तो वह मूर्ति अपने निर्माता मूर्तिकार से शक्तिशाली हो जाती है । मूर्तिकार मनुष्य ही रह जाता है किंतु उसकी बनायी हुयी मूर्ति दिव्य हो जाती है । परमाणु बम बनाने वाला वैज्ञानिक मनुष्य ही रहता है पर उसका बनाया हुआ बम शक्ति का महापुञ्ज हो जाता है ।

प्रश्न – प्रसिद्ध मंदिरों में नित्य पूजन-अर्चन किया जाता है, वहीं कई मंदिर ऐसे भी हैं जहाँ महीनों कोई जाता ही नहीं । क्या इससे मूर्ति के दिव्यत्व पर कोई प्रभाव पड़ सकता है?

उत्तर – प्राणप्रतिष्ठित मूर्ति की नित्य पूजा-अर्चना आवश्यक है । धरती के भीतर दबा हुआ यूरेनियम किसी को हानि नहीं पहुँचाता, सोडियम जब तक खनिज के रूप में है तब तक शांत रहता है किंतु एक बार रासायनिक शोधन प्रक्रिया सम्पन्न हो जाने के बाद यूरेनियम हो या सोडियम उनका रखरखाव आसान नहीं होता । बम का रखरखाव साइंटिफिक श्रद्धा के साथ किया जाना अपरिहार्य है अन्यथा शक्ति का वह महापुञ्ज किसी दुर्घटना का कारण भी बन सकता है । यदि आप चाहते हैं कि न्यूक्लियर रिएक्टर का रचनात्मक उपयोग किया जाय, विध्वंसक नहीं तो उसका सम्मान करना होगा । विज्ञान की भाषा में सम्मान और श्रद्धा जैसे शब्द साइंटिफिक नॉर्म्स के विधिवत अनुपालन की अपेक्षा करते हैं । आप जानते हैं, न्यूक्लियर रिएक्टर को हैवी-वाटर अर्पित करना ही होगा अन्यथा वह कुपित जायेगा ।  

प्रश्न – दिव्य मूर्तियों को विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा खंडित और अपमानित किये जाते रहने के इतिहास से पूरा विश्व परिचित है । हिन्दुत्वविरोधियों और नास्तिकों द्वारा प्रायः यह पूछा जाता है कि शक्तिकेंद्र माने जाने वाले मंदिरों की मूर्तियाँ मूर्तिभंजकों के प्रहार से अपनी रक्षा क्यों नहीं कर सकीं?

उत्तर – मूर्तियों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रियाओं की एक सुनिश्चित् वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है, उनसे तलवार लेकर युद्ध करने की अपेक्षा अनुचित है । उनकी प्राभाविकता “देने” वाली होती है, “लेने” वाली नहीं, वे जीवन की शक्ति दे सकती हैं, किसी का जीवन ले नहीं सकतीं, इसीलिये वे दिव्य हैं अन्यथा किसी का जीवन लेने के लिए तो मनुष्य है ही । मूर्तियाँ प्रतिहिंसा नहीं करतीं । निश्चित ही प्राणप्रतिष्ठित दिव्यमूर्तियाँ शक्तिशाली होती हैं किंतु उनका शक्तिपात केवल रचनात्मक कार्यों के लिए ही होता है । आशीर्वाद देने वाली मूर्तियाँ हिंसक प्रतिक्रिया कैसे कर सकती हैं! यही कारण है कि सोमनाथ जैसे कई मंदिरों को विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बार-बार नष्ट किया जाता रहा । 

प्रश्न – लोग मंदिर जाते हैं, किसी कामना की पूर्ति के लिए देवी-देवता से आशीर्वाद लेते हैं परंतु आवश्यक नहीं कि याचक को सफलता मिल ही जाय । दिव्यमूर्ति का आशीर्वाद निष्फल कैसे हो जाता है ?

उत्तर – एक ही लैबोरेटरी में काम करने वाले सभी वैज्ञानिकों को सफलता नहीं मिल पाती । आवश्यक नहीं कि हर वैज्ञानिक का आविष्कार सफल, उपादेय और सर्वकल्याणकारी हो । एक वैज्ञानिक बुहान की लैब में काम करता है तो जेनेटिकली मोडीफ़ाइड कोरोना वायरस तैयार करता है, एक अन्य वैज्ञानिक भारत-बायोटेक की लैब में काम करता है तो कोरोना को-वैक्सीन का आविष्कार करता है । याचक की क्षमता और शुचिता पर निर्भर है कि किसी मंदिर में जाकर वह वहाँ से क्या और कितना प्राप्त कर पाता है ।     

प्रश्न – प्रधानमंत्री मोदी कल सुबह रामलला की प्राणप्रतिष्ठा में भाग लेने वाले हैं, कुछ साधु-संतों ने इसे विधिविरुद्ध बताया है । क्या मोदी का यजमान होना विधिविरुद्ध है?

उत्तर – ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सुपात्रता की आवश्यकता तो होती ही है । मोदी इसके लिए सुपात्र हैं या नहीं इसका निर्धारण कौन करेगा और इसकी इलेजिबिलिटी परीक्षा कैसे की जाय! मोदी जी साधारण व्यक्ति होकर भी पिछले कई दिनों से सुपात्रता की साधना कर रहे हैं, वहीं कई साधुसंत क्रोधित हैं और मोदी को कोस रहे हैं । मुझे लगता है कि ऐसे साधु-संतों की अपेक्षा मोदी जी प्राणप्रतिष्ठा के लिये कहीं अधिक सुपात्र व्यक्ति हैं ।