मंगलवार, 26 जनवरी 2021

लालकिले पर विद्रोह का झण्डा...

आज पाकिस्तानी टीवी मीडिया को भारत के कुछ लोगों ने ख़ुश होने का मौका परोस दिया जिससे पाकिस्तानी मीडिया ने बड़े उत्साह से राहत की साँस लेते हुये प्रसारित किया“सिख आज रात भारत के लालकिले पर कब्ज़ा कर लेंगे । आज रात दिल्ली में बहुत कुछ होने वाला है”।

इतिहास में दर्ज़ हो गया है कि “बहत्तरवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर गुरु गोविंद सिंह जी के आदर्शों की धज्जियाँ उड़ाते हुये राजधानी दिल्ली की सड़कों पर कुछ विद्रोही हिंसा और तोड़-फोड़ करने में सफल हुये” ।

किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली में हुयी हिंसा और पुलिस पर हमले के दुस्साहस के बाद किसान संगठन के मासूम नेताओं ने इस अराजकता के लिये ज़िम्मेदार लोगों से अपना पल्ला झाड़ लिया । पुलिस के सिपाहियों पर लाठियों, डण्डों और लोहे की रॉड्स से हमला किया गया और उन्हें ट्रैक्टर से कुचलने का प्रयास किया गया । प्रदर्शनकारियों की भीड़ लाल किले में बलात घुसने में सफल हो गयी, इतने बड़े देश की पुलिस कुछ नहीं कर सकी, उन्हें डर था कि कहीं दंगा और न भड़क जाय । कुछ विद्रोहियों को तलवारें लहराते हुये भी देखा गया । कुछ निहंगों के हाथ में दोधार वाली तलवारें देखी गयीं । टीवी रिपोर्टर्स के साथ मारपीट की गयी । मीडिया को दंगाइयों से भयभीत होना पड़ा और गुरुगोविंद सिंह के आदर्शों और उद्देश्यों का अपमान किया गया ।

दिल्ली पुलिस को विद्रोह के डर से विद्रोहियों के सामने झुकना पड़ा । कल कोई चंगेज़ ख़ान अपने बीस सैनिकों के साथ आयेगा और दिल्ली पुलिस को डरते हुये उसके सामने भी झुकना पड़ेगा ।

किसान अंदोलन के बीच-बीच में जब प्रदर्शन के दौरान ख़ालिस्तान के झण्डे देखे गये और ख़ालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे सुने गये तो किसान नेता मासूम बन गये थे – “हमें तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है, सरकार हमें बदनाम कर रही है”। अवसरवादी राजनीतिज्ञों ने भी सरकार पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिये कि “सरकार जानबूझकर अपने विरोधियों को खालिस्तानी, चीनी और पाकिस्तानी कह कर बदनाम कर रही है । यह तो मोदी की पुरानी आदत है”।

अब गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सड़कों पर हिंसा होने और विद्रोहियों द्वारा कुछ समय के लिये लाल किले पर कब्ज़ा कर लेने के बाद अवसरवादी नेताओं के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय को भी भारत की आमजनता के सवालों का ज़वाब देना होगा । जनता जानना चाहती है कि गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर परेड में हस्तक्षेप करने से मना करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के जज साहब को किसानों पर भरोसा था या फिर जज साहब में दूरदर्शिता की कमी ?

किसान नेता अपने आंदोलन को हाईजैक होने से बचाने में असफल रहे हैं । किसान नेताओं को तुरंत ग़िरफ़्तार करने के लिये क्या अभी भी किसी पर्याप्त कारण की कमी है?

बुधवार, 20 जनवरी 2021

तांडव ओवर द टॉप...

एक्टर शहज़ाद ख़ान कहते हैं कि वे पैसे के लिये एक्ट करते और डायलॉग बोलते हैं इसलिये किसी ताण्डव से होने वाले विध्वंस से उनका कोई लेना देना नहीं है । अर्थात विध्वंस का सारा दोष पटकथा लेखक और निर्देशक का होता है । वे धमकी वाले अंदाज़ में बारम्बार यह कहना भी नहीं भूलते कि माँग तो ली माफ़ी अब क्या फाँसी चढ़ाओगे ।  

हम इसे एक बेहद ग़ुस्ताख़ी भरी मासूमियत मानते हैं ।

चलो माना कि पटकथा लेखक, निर्देशक, कलाकार, सिनेमेटोग़्राफ़र और स्पॉट ब्वाय ....सभी ने माफ़ी माँग ली । क्या किसी ने यह वादा भी किया कि भविष्य में अब कभी ऐसा दुस्साहस नहीं किया जायेगा ?

माना कि आपके घर की तरह हमारा घर भी पुराना और टूटा-फूटा है, किंतु जिस तरह आप हमारे घर का मज़ाक उड़ाते रहे हैं उसी तरह अपने भी घर का मज़ाक उड़ाने का साहस कर सकेंगे कभी ?

माना कि आप सुधारवादी हैं और सोशल एण्ड रिलीज़ियस रीफ़ॉर्मेशन के लिये हमें थप्पड़ पर थप्पड़ मारना अपना सोशल दायित्व मानते हैं किंतु क्या इसी तरह आप अपने आप को भी थप्पड़ मारने के बारे में कभी सोच पाते हैं ?

आख़िर हर बार सारे निशाने आप हमारे ऊपर ही क्यों साधते हैं ?

ये वे प्रश्न हैं जिन्हें सत्तर साल बाद नींद से उठकर आँखे मलते हुये एक वर्ग के लोग दूसरे वर्ग से पूछते हैं । यहाँ यह बता दें कि भारत की भीड़ ने हमें इतनी आज़ादी नहीं दी है कि हम वर्ग न लिखकर सीधे-सीधे वर्ग का नाम लिख सकें । हमें इतनी आज़ादी नहीं है कि हम हमारे ऊपर थप्पड़ बरसाने वाले का नाम साफ-साफ बता सकें ।

ख़ैर! सत्तर साल बाद अब जो सवाल हम उछालने लगे हैं उनका उत्तर बहुत आलस भरा है । पहले उत्तर सुन लीजिये – कनक कुम्भ रीतो धरो, ता पै इतनी ऐंठ । काग बसे विष्टा करे, बस कागा की ही पैठ ॥

वे ग़ुलाब के काँटे दिखाकर गुलाब को बदनाम करते रहे और गुलाब अपनी कोमल पंखुड़ियों के गर्व में चुपचाप बदनाम होते रहे ।

ऐसा गर्व किस काम का ?

वे रणभूमि में न जाने कबसे वार पर वार किये जा रहे हैं और हम सिर्फ़ रो-रोकर कोहराम मचाये जा रहे हैं । वे रौद्र ताण्डव ही कर रहे, हम लास्य ताण्डव भी नहीं कर रहे, फिर पराभव की इतनी पीड़ा क्यों ?

क्या हमारे घर में एक भी ऐसा पटकथा लेखक नहीं जो अमृतपूरित कनककुम्भ की पटकथा लिख सके ? क्या हमारे घर में एक भी ऐसा निर्देशक नहीं जो गुलाब की पंखुड़ियों का स्पर्श कर सके ? क्या हमारे घर में एक भी ऐसा कलाकार नहीं जो लास्य तांडव कर सके ?

अब समय नहीं कि हम दूसरों को दोष दें, हमें कर्मभूमि में उतरना होगा । रौद्रताण्डव के उत्तर में लास्यताण्डव करना होगा । यही हमारी आर्ष परम्परा है । यही हमारे अस्तित्व की रक्षा का उपाय है ।   

समुद्र जैसा ऊपर से दिखायी देता है वैसा ही अंदर भी नहीं हुआ करता, उसके अंदर जल-प्रवाह की एक और अंतरधारा होती है... एक सशक्त जलधारा जो किसी को दिखायी नहीं देती । हम जैसे ऊपर से दिखायी देते हैं वैसे ही अंदर भी नहीं हुआ करते, हमारे अंदर बहुत कुछ घटित हो रहा होता है जो ऊपर से किसी को दिखायी नहीं देता । हमें अपने अंदर देखना होगा । हमें स्वयं को देखना होगा ।