बुधवार, 24 जुलाई 2019

पेशी


“जीवन पापमय है और मृत्यु पापमुक्त” – यह जीवन दर्शन स्थापित किया है समाचार पत्रों में प्रकाशित वक्तव्यों, संपादकीय आलेखों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ।
प्रजावत्सल नेता जी अपनी जनता को बिलखता हुआ छोड़कर चले गये । प्रजा उनके अंतिम दर्शन कर सके इसलिये सहृदय नेता जी जाते-जाते बेनामी सम्पत्तियों के साथ-साथ अपना पार्थिव शरीर भी यहीं छोड़ गये । पार्टी कार्यकर्ताओं ने नेता जी की महानता के कसीदे पढ़े तो विरोधियों ने होड़ लगाते हुये उन्हें ईश्वरीय गुणों से महिमामण्डित करना शुरू कर दिया । समाचार प्रकाशित हुआ, लोगों ने विरोधी नेता का वक्तव्य पढ़ा – “राष्ट्रीय राजनीति में पिछले चालीस साल से सितारे की तरह चमकते रहने वाले फलाने राजनेता की मृत्यु से देश की अपूरणीय क्षति हुयी है । देश के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसी शून्यता व्याप्त हो गयी है जिसे अगली कई शताब्दियों तक भरा नहीं जा सकेगा । हमने एक ऐसे राजनेता को खो दिया है जो जीवन भर देश के लिए जिया और देश को दिशा देता रहा । फलाने जी अपने मधुर व्यवहार से देश की जनता के दिलों पर राज करने के लिये जाने जाते रहे” ।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रजा को दिखाया – “यह देखिये, फलाने जी के पार्थिव शरीर के दर्शनों के लिये किस तरह पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ रही है । भीड़ को नियंत्रित कर पाना पुलिस के लिये मुश्किल होता जा रहा है । ...और यह देखिये ... लाठी चार्ज । पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ रहा है  ...लोग इधर-उधर भाग रहे हैं ...लेकिन पलट कर अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शनों के लिये वापस भी आ रहे हैं ...इससे फलाने जी की लोकप्रियता का प्रमाण मिलता है”।
ये वे समाचार पत्र और टी.वी. चेनल्स हैं जो फलाने जी की मृत्यु के ठीक पहले तक उन्हें इस धरती का सबसे बड़ा पापी, भ्रष्ट, घूसखोर, घोटालेवाज और जनता की गाढ़ी कमाई को लूट-लूट कर स्विस बैंक में अपना ख़जाना बढ़ाने वाला जोंक सिद्ध करने में रात-दिन एक किये रहते थे । फलाने जी के मरने के ठीक पहले तक जो विरोधी नेता जितना कठोर, आक्रामक और पोल-खोल अभियान में दक्ष होता वही नेता फलाने जी के मरने के बाद आश्चर्यजनकरूप से उतने ही अधिक विनम्र भाव से फलाने जी की महानता और दिव्यता के बारे में ऐसे-ऐसे रहस्योद्घाटन करने लगता कि भक्तवत्सल प्रजा की आँखों से अश्रुधारायें बहने लगतीं और उन्हें लगने लगता कि उन्होंने वाकई एक ईश्वर को खो दिया है और अब वे सब अनाथ हो गये हैं । 
डॉक्टर दागी ने दशकों से चले आ रहे ऐसे निर्लज्ज तमाशों और रुदन प्रतिस्पर्धाओं को देखने के बाद जो तथ्यात्मक निष्कर्ष निकाला वह इस प्रकार है – “हमारा सच्चा राजनीतिक चरित्र देखना हो तो किसी राजनेता की मृत्यु के बाद तीन-चार दिनों तक चलती रहने वाली राजनीतिक गतिविधियों और वक्तव्यों को देख लीजिये”।
डॉक्टर दागी अपनी बात तथ्यात्मक और घोषणात्मक तरीके से कहने के अभ्यस्त हैं । नेताओं की मौत पर देश भर में उमड़ पड़ने वाले पेशेवर रुदालों की निर्लज्ज नौटंकी अब उन्हें परेशान नहीं करती । वे बताते हैं – “विरोधी खेमे के नेता की मौत पर नेतारुदन और इस रुदन को हाईप्रोफ़ाइल बना देने में निपुण टी.आर.पी. लोभी मीडिया के लिये ऐसी नौटंकी करना उनके पेशे का एक हिस्सा है । इसे भावनाओं या पीड़ा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये यह तो राजनीतिज्ञों की आपसी लोकनीति है । यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो कल उनकी मौत पर कौन रोयेगा, कौन उन्हें ईश्वरीय गुणों से भरपूर एकमेव नेता के रूप में महिमामण्डित करेगा! मंच पर प्रशंसकों से घिरे रहने वाले नेता अपनी प्रशंसा के इतने एडिक्ट हो चुके होते हैं कि अपनी मौत के बाद भी वे यह नशा एक बार और करके ही रुख़सत होने का मोह छोड़ नहीं पाते”।
चित्रगुप्त के दरबार में रुदालों की पेशी का एक किस्सा सुनाते हुये डॉक्टर दागी ने रहस्योद्घाटन किया – “मृत्योत्तर प्रशंसा” की होड़ के लोकाचार में दक्ष विपक्षी नेताओं में से एक नेता की आज भोरे-भोरे मृत्यु हो गयी । सदा गरजते रहने वाले बादल रुदाले बनकर घिर आये और धरती पर ‘मृत्योत्तर नेताई परम्परा’ निभाई जाने लगी । उधर नेता जी की आत्मा की चित्रगुप्त के दरबार में पेशी हुयी । चित्रगुप्त ने पूछा – “आप अपने विरोधी नेताओं को पापी और पाखण्डी सिद्ध करने में जीवन भर लगे रहे, फिर उनकी मृत्यु होते ही अचानक उन्हें देवतुल्य सिद्ध करने के अभियान में लग जाते रहे । किया जा चुका कर्म तो परिवर्तनशील नहीं हुआ करता । हम जानता चाहते हैं कि जीवितावस्था का पाप मृत्यु होते ही पुण्य में कैसे बदल दिया करते हैं आप ? इन वक्तव्यों में सच कौन सा होता है, जीवितावस्था में लगाए गये आरोप या मृत्योत्तर पढ़े जाते रहे तारीफ़ के कसीदे ?” नेतात्मा ने उत्तर दिया – “नेता कभी झूठ नहीं बोला करते, नेता अपने वर्तमान में जीता है । तत्कालीन परिस्थितियों की माँग के अनुसार दिया गया कोई भी वक्तव्य सत्य ही होता है । जब हमने अपने विरोधी को पापी कहा तब वह उसकी जीवितावस्था का सत्य था, जब हमने उसे देवतुल्य कहा तब वह उसकी मृत्यु के पश्चात का सत्य था । मृत्यु के पश्चात नश्वर देह की तरह पाप भी मिट्टी हो जाते हैं, तब जो शेष बचता है वह सिर्फ पुण्य ही होता है । हे चित्रगुप्त जी ! हमने जब-जब जो भी कहा वह सब सत्य ही था उसमें असत्य कुछ भी नहीं था । अस्तु, मेरे स्पष्टीकरण से संतुष्ट होते हुये मुझे इस आरोप से मुंचित करने की कृपा करें”। 
डॉक्टर दागी मानते हैं कि जिन शक्तियों पर हमारा वश नहीं होता उन्हें नमन अवश्य करना चाहिये, फिर चाहे वे दिव्य शक्तियाँ हों या आसुरी । चलने से पहले डॉक्टर दागी हाथ जोड़कर, आँखें बन्द कर बुदबुदाये – “अहो पाप ! अहो नौटंकी ! आप अद्भुत हैं । इस भवसागर में मिथ्या प्रशंसारूपेण संस्थित पाप और नौटंकी शक्तियों को मेरा तीन बार नमन है 

रविवार, 14 जुलाई 2019

राखीगढ़ी के मूल निवासी


पता नहीं यह विषय विवादित है या बना दिया गया है ! हम इतना ही कह सकते हैं कि कोई भी वैज्ञानिक दृष्टि "किंतु-परंतु" से परे देखने का प्रयास करती है । सत्यान्वेषण कुछ बिंदुओं या तथ्यों के आधार पर नहीं हो सकता । समग्रता और विहंगम दृष्टि अपेक्षित है इसके लिये । पूर्वाग्रह, भावुकता और संकुचित दृष्टि को छोड़कर आगे बढ़ना होगा । सबसे पहले हमें आर्यावर्त के प्राचीन इतिहास, भारतीय उपमहाद्वीप और उसके आसपास फैले द्वीपीय देशों के पारस्परिक सम्बंधों...उनमें समानताओं, वैदिक साहित्य और पुराणेतिहास के अतिरिक्त भाषाओं और लिपियों के विकासक्रम को भी भारत के मूलनिवासियों के परिप्रेक्ष्य में देखना होगा ।
हमें यह भी याद रखना होगा कि बंगाल की खाड़ी से लेकर गुजरात तक के तटीय क्षेत्रों के आसपास मध्य एशिया, अफ़्रीका और योरोप से व्यापारियों का आना-जाना और बसना होता रहा है । गोवा और चंदननगर में आज भी पुर्तगालियों की कॉलौनी हैं । कोच्चि में अरबों और अफ़्रीकंस के वंशज रहते हैं । अब आप कल्पना कीजिये कि कुछ समय बाद यह सभ्यता किसी कारण से समाप्त हो जाती है । फिर दस हजार साल बाद संयोग से इन्हीं स्थानों की खुदाई की जाय ...जो कि भारत के विभिन्न प्रांतों में हैं तो इन सबकी डी.एन.ए. संरचना में ज़बरदस्त भिन्नता देखने को मिलेगी । अब आप इस रिपोर्ट के आधार पर भारत के मूलनिवासियों की गुत्थी तक कभी नहीं पहुँच सकेंगे । हमें ध्यान रखना होगा कि दुनिया भर में लोगों के आने-जाने और बसने की दीवानगी नृवंशों की विशेषता रही है । हुंजा घाटी के लोगों को ग्रीक सैनिकों का वंशज माना जाता है । किसी दिन यह किस्सा स्मृति से निकल जायेगा ...फिर हजारों साल बाद इनके उत्तराधिकारियों के डी.एन.ए. ग्रीक लोगों के डी.एन.ए. के अधिक क़रीब पाये जाने पर क्या हुंजा वैली ग्रीक सभ्यता का केंद्र मान ली जायेगी ? या यह माना जायेगा कि ग्रीकों ने हुंजा के मूल निवासियों को मारकर वहाँ अपनी बसाहट कर ली ? इन तथ्यों के आधार पर आप अपने उद्देश्य के अनुरूप किसी भी तरह का निष्कर्ष निकाल सकते हैं ।
अब जरा अमेरिका-कनाडा और योरोप के उन शहरों की तरफ़ रुख किया जाय जहाँ आज भारतवंशी (भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान)जाकर स्थायी रूप से बस गये हैं । दस हजार साल बाद वहाँ मिले इस तरह के नगरों और खुदाई से प्राप्त नरकंकालों से आप किस तरह का निष्कर्ष निकालेंगे?

मुझे लगता है कि मूल निवासी का यह प्रश्न ही बेमानी है । मनुष्य घुमंतू रहा है ...आगे भी रहेगा । हमें दो बातों पर सोचने की आवश्यकता है ...हमारा घुमंतू स्वभाव और व्यापार ।
सभ्यता ने हमें तीन मुख्य चीजें दी हैं - शासन, व्यापार और वैश्विक बसाहट । एक समय वह भी था जब सिल्क, मसाले, चाय और इसी तरह की और भी बहुत सारी चीजों की दुनिया भर में माँग और मुनाफ़ा कमाने की ज़रूरत ने कारवाँ कल्चर को जन्म दिया । दुनिया भर के देश सिल्क और टी.हॉर्स जैसे कई रूट्स से होकर न जाने कितने पड़ावों पर ठहरते हुये महीनों की यात्रायें किया करते थे । भाषा, लिपि और संस्कृति के साथ-साथ इन कारवाँओं के लोगों ने अपने जींस भी स्थानीय लोगों को दिये । यह प्रक्रिया आज भी चल रही है । जेनेटिक प्योरिटी न कभी थी और न कभी आगे रहेगी । हम सब मनुष्य हैं और यह पूरी धरती हमारी है । हम सब इस धरती के मूल निवासी हैं ।
हाँ! आने वाले समय में जब चंद्रमा या मंंगल पर हमारी नयी बस्तियाँ बस जायेंगी ...मूल निवासी का मुद्दा वहाँ काम आयेगा ।   

रविवार, 7 जुलाई 2019

मृदाजल


सोये थे जलकण  
लिपटकर
मृदा के कणों से
ओढ़कर चादर  
हवा के नन्हें कणों की ।
धरती
हो गयी थी उर्वरा
पाकर इन कणों को ।
छू देता सूरज
जब-जब इन्हें
चहक उठते बीज
माटी में सोये पड़े जो,  
भर जाती कोख तब
माँ धरती की
कर देने बाँझ जिसे
अड़ गये हो तुम
लगा कर संयत्र
चुरा रहे जलकण
छीन रहे अधिकार
जंगल के जीवन का ।

मर जायेगा जंगल
तड़पकर प्यास से जिस दिन
बनाओगे जीवन तब
जिस कारखाने में
उसे तो लगाया ही नहीं
आज तक तुमने कहीं
और तुम कहते हो
कि कर लिया है बहुत
तुमने विकास ।
हाँ! सचमुच
कर लिया है बहुत
तुमने विकास
जीवन के मूल्य पर
किंतु
तुम्हें क्या
तुम तो चल दोगे
बनाकर धरती को बाँझ
किसी अन्य ग्रह पर
बनाने
उसे भी बाँझ
करते हुये ऐसा ही विकास ।