लालू के खेत में
धान तो हुआ
पर वह बीज नहीं हुआ ।
नार में लगी थीं
ढेरों लौकियाँ
बीज भी निकले थे ढेरों
पर उगा नहीं एक भी ।
किसान के खेत में उपजे बीज
अब उगा नहीं करते
फ़ैक्ट्री में बनने वाले बीज
उगा करते हैं ।
सबने देखे हैं हाथी के दाँत
दिखाने के और
खाने के और,
अब देख रहे हैं बीज
उगाने के और
खाने के और ।
गेहूँ, मक्का, धान, माष, मूँग, अरहर,
लौकी, पालक, परवल, भिण्डी, टमाटर
सारे बीज षंढ हो गये हैं
जिन्हें खा-खा कर
मनुष्य भी षंढ हो गये हैं ।
नर और नारी
अब केवल ऑफ़िस में काम करेंगे
झोपड़ी की झुनिया खेत बनेगी
अपनी कोख किराये से देगी ।
अब बीज की तरह
स्पर्म और ओवम भी फ़ैक्ट्री में बनेंगे
किसान के बीज
हाथी के दाँत हो गये हैं
पति और पत्नी
बंजर खेत हो गये हैं ।