रविवार, 2 जुलाई 2017

हाथी के दाँत



लालू के खेत में
धान तो हुआ
पर वह बीज नहीं हुआ ।
नार में लगी थीं 
ढेरों लौकियाँ
बीज भी निकले थे ढेरों
पर उगा नहीं एक भी ।
किसान के खेत में उपजे बीज
अब उगा नहीं करते
फ़ैक्ट्री में बनने वाले बीज
उगा करते हैं ।
सबने देखे हैं हाथी के दाँत
दिखाने के और
खाने के और,
अब देख रहे हैं बीज
उगाने के और
खाने के और ।
गेहूँ, मक्का, धान, माष, मूँग, अरहर,
लौकी, पालक, परवल, भिण्डी, टमाटर  
सारे बीज षंढ हो गये हैं
जिन्हें खा-खा कर
मनुष्य भी षंढ हो गये हैं ।
नर और नारी
अब केवल ऑफ़िस में काम करेंगे
झोपड़ी की झुनिया खेत बनेगी
अपनी कोख किराये से देगी ।  
अब बीज की तरह
स्पर्म और ओवम भी फ़ैक्ट्री में बनेंगे
किसान के बीज
हाथी के दाँत हो गये हैं
पति और पत्नी
बंजर खेत हो गये हैं ।


बस्तर के जंगल से...



1.  
बस्तर के जंगल

शाल
चिरौंजी
महुवा
बीजा
दफ़न हो गये
विकास की नींव में,
बच गये
पर्यावरण के नाम पर
थोड़े से घने जंगल
माओवादियों के छिपने के लिये ।    

2.
          नक्सली


बस्तर के सैकड़ों गाँवों में
अब नहीं पाये जाते नक्सली
माओवादियों ने हाइजेक कर लिया उन्हें ।
गाँवों में
अब नहीं पाये जाते स्कूल
माओआदियों ने ढहा दिया उन्हें ।
गाँवों की ओर
अब नहीं जाती सड़कें
माओवादियों ने तोड़ दिया उन्हें ।
गाँवों में ढपली बजाते हैं
बच्चे
जिनमें
अब नहीं पाया जाता बचपन
माओवादियों ने सिखा दिया उन्हें
क्रांतिगीत गाना । 
युवतियों में
अब नहीं मिलती बेलोसा
माओवादी उठा ले गये उन्हें
सर्वहारा क्रांति के लिये ।
युवकों में
अब नहीं मिलते चेलक
माओवादी पकड़ ले गये उन्हें ।
सुना है
गाँव के गाँव हो गये हैं
कामरेड   
अब वहाँ
कोई इंसान नहीं रहता । 

3. 

        सर्वहारा

उन्हें सत्ता चाहिये    
तुम्हें भी सत्ता चाहिये
उन्हें मिल गयी सत्ता
तुम्हें नहीं मिल पायी सत्ता ।
सत्ता पाने
और न पाने की खाई में से
सिर उठाकर आग उगलता है ड्रेगन 
मुस्कराता है माओ
और धुयें में घुटकर
दम तोड़ता है बस्तर का सर्वहारा ।
सर्वहारा की खेती
माओवादियों की पहली पसन्द है
मरता है सर्वहारा
तो उसकी लाश पर उगते हैं फूटू
हर किसी को बहुत पसन्द हैं फूटू ।
उन्हें फूटू चाहिये   
तुम्हें भी फूटू चाहिये
उन्हें मिल गया फूटू
तुम्हें नहीं मिल पाया फूटू
तो थाम लिये
हाथों में बम
तुम इसे क्रांति कहते हो

(फूटू = मृतोपजीवी, An edible mushroom)