मण्डियाँ
– बम और प्याज की !
भूख – चीन, अमेरिका
और रूस की !
यहाँ कीमती
हथियारों की ऊँची मंडी है, यहाँ ग़रीबों
को भोजन के लिये सस्ता सा प्याज नहीं मिलता !
प्याज
इसलिये नहीं मिलता क्योंकि गरीब किसान के खेत उसका उत्पादन करने से अक्सर इन्कार
कर देते हैं । हथियार इसलिये मिलते हैं क्योंकि अमीरों के कारख़ाने उनका उत्पादन करने
से कभी इन्कार नहीं करते ।
वे
हथियार बेच रहे हैं, ये हथियार ख़रीद रहे हैं ।
तुम
अपने हथियार नष्ट कर दो, हम अपने
हथियार नष्ट नहीं करेंगे । हमें अभी और भी भीषण और जनसंहारक हथियारों की आवश्यकता
है । हमें पूरी दुनिया पर अपनी दहशत और वैज्ञानिक श्रेष्ठता के बल पर हुक़ूमत करनी
है । हमारे पास ढेरों सपने हैं, तुम्हें
सपने देखने का अधिकार नहीं है । हमारे पास धरती का एक बड़ा सा हिस्सा है लेकिन अपने
हथियारों के ज़ख़ीरों के लिये हमें कुछ और टापुओं की ज़रूरत है । हमें सारे महासागरों
की भी ज़रूरत है । हमें अपने मुल्क के अलावा कुछ और भी मुल्कों पर हुक़ूमत करने की ज़रूरत
है । हमें पूरी धरती पर अपनी एकछत्र बादशाहत क़ायम करने की अदम्य भूख है । अपनी भूख
के लिये हम कुछ भी कर सकते हैं ।
उन्होंने
भीषण जनसंहारक हथियार बना लिये हैं, इन्होंने हथियार को नष्ट करने वाला हथियार
विकसित कर लिया है । हर नये हथियार के अवतरण पर हथियार प्रेमियों में ख़ुशी की लहर
दौड़ जाती है । उस देश के नागरिक अपने देश की संहारक उपलब्धियों पर फूले नहीं समाते
। वे लोग भी फूले नहीं समाते जो भूख से और ठंड के दिनों में फ़्रॉस्ट से मरने के
लिये मज़बूर होते हैं ।
लोग
भूखे और बेरोज़गार हैं । उन्हें रोज़गार चाहिये, उन्हें
रोटी चाहिये । उन्हें बारूद के धमाकों में अधजली लाशें नहीं चाहिये । लेकिन क़माल
देखिये कि यही लोग मुल्क की सलामती के सम्मोहक तर्क पर हथियारों के उत्पादन या
ख़रीद-फ़रोख़्त की, अपने मुल्क की क़ाबिलियत के सम्मोहन की भयानक ग़िरफ़्त में भी हैं । उन्हें
घुट्टियों में पिलाया जाता रहा है कि गरीबी और अन्याय नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क उनका
दुश्मन है जिसे ख़त्म करना ज़रूरी है ।
लोगों की
भूख़ का इलाज़, एड्स का
इलाज़, नैतिक पतन
का इलाज़, आर्थिक घोटालों
का इलाज़, राजनैतिक
अस्थिरता का इलाज़, गरीबी और
अशिक्षा का इलाज़, समाज में
व्याप्त कुरीतियों का इलाज़ .... लोगों की तमाम बेशुमार समस्यायों का एकमात्र इलाज़ युद्ध
के द्वारा ही हल हो सकता है । तभी न अमेरिका, रूस और चीन
और जैसी महाशक्तियाँ महासंहारक हथियारों के पीछे इतनी दीवानी हुयी जा रही हैं ।
हम सब वैश्विकनगर
के वाशिंदे हो गये हैं । यह नगर भूख, निरंकुश
बलात्कारों, नस्लीय हमलों
और दिशाहीनता से पीड़ित है । इस नगर के एक हिस्से में हुयी कोई घटना पूरे विश्व में
मुद्रा का अवमूल्यन कर देने और शेयर बाज़ारों में भूकम्प ला सकने में समर्थ है । इस
नगर के लोग पापपूर्ण स्रोतों से संग्रहित धन के सह-उत्पाद से प्राप्त स्वाभाविक हिंसा,
यौन उन्मुक्तता, अनैतिकता और घोर पाप में ही समाज और सभ्यता का विकास देख पा रहे
हैं ।
विज्ञान
में चेतना का अभाव है । महर्षियों ने विज्ञान को आध्यात्म से संयुक्त कर प्राणिमात्र
के कल्याण के लिये उपादेय बनाने का प्रयास किया था । किंतु अब विज्ञान ने स्वयं को
मुक्त कर लिया है । स्वच्छंद हुआ यह विज्ञान अंधा है, चेतनाविहीन है ... और इसीलिये
शीघ्र ही यह मानव सभ्यता के क्रूर संहार का कारण बनने वाला है ।
धरती को
प्रतीक्षा है कि कोई तो इस सुंदर सृष्टि को बचा ले !
काश !
इंसानों की बस्तियों में कोई जाति न होती, कोई वर्ग न होते, कोई अहंकार
न होते, मोहब्बतों के बीच कोई दीवार न होती, मुल्कों
के बीच सरहदें न होतीं । केवल लहलहाती फसलें होतीं, फलों से लदे दरख़्त होते, खिलखिलाते
फूल होते, भरी-पूरी नदियाँ होतीं, चहचहाते परिंदे होते, बाँसुरी की धुन होती ...
और ख़ुशी से झूमते लोग होते ।
हाँ !
मैं बिना वीसा के पूरी धरती को खंगालना चाहता हूँ । गाँव-गाँव की रोटी खाते हुये
बच्चों के साथ खेलना चाहता हूँ । पूरी दुनिया के बच्चों के सपनों को सच होते हुये
देखना चाहता हूँ । काश ! मैं ऐसा कर पाता !
अक्सर सोचती हूँ कि पूरी दुनिया एक होती, किसी से कोई लड़ाई झगडा नहीं, कोई युद्ध नहीं, कोई हिंसा नहीं, कोई भेदभाव नहीं, गरीबी, अशिक्षा और असमानता नहीं. कितना सुन्दर समाज होता फिर, प्रेम और भाईचारा होता. ऐसे स्वर्ग की कल्पना भी अब मुश्किल होती जा रही है. अपना वर्चस्व दिखाने के लिए एक से बढ़कर एक खतरनाक हथियार निर्मित हो रहे है. पता नहीं इन सबका अंत कैसे होगा या दुनिया का ही अंत हो जाएगा. विचारणीय लेख. काश ऐसी दुनिया हो ! बहुत शुभकामनाएँ !
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