शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

कौन तय करते हैं हमारी प्राथमिकतायें ?


धरती पर कलिकाल का यह अत्याधुनिक चरण है ।
इस चरण में विज्ञान है, आध्यात्म नहीं है
समाज है, धर्म नहीं है  
संविधान है, सुनीति नहीं है
भीड़ है, नियंत्रण नहीं है ।   
भूख और कुपोषण है, रोटी नहीं है ।  
रोते हुये बच्चे हैं, दूध नहीं है ।
रोगी हैं, औषधियाँ और पथ्य नहीं हैं ।
जीवन है, उत्साह और प्रसन्नता नही है
समस्या है, समाधान नहीं है ।
 .....क्योंकि मुद्रा की व्यवस्था नहीं है ।

मौत नहीं है, मौत को आमंत्रित करते हथियार हैं ।
.....क्योंकि मुद्रा की व्यवस्था है ।

जीवन, जोकि वर्तमान में है, के लिये चिंता नहीं है ।
मृत्यु, जोकि वर्तमान में नहीं है, के लिये चिंता है । सारी चिंतायें अनागत मृत्यु की सम्भावनाओं में बंदी हो चुकी हैं ।

मृत्यु का भय, युद्ध की धमकियाँ, महाविनाश की योजनायें, महाविनाश से बचने के लिये सुरक्षा की योजनायें ..... पूरी दुनिया उलझ गयी है मौत के भय में ।
हमारी प्राथमिकता क्या है ? जीवन की योजना या मृत्यु की योजना, निर्णय कौन करेगा ?
अब ऋषियों-मुनियों ने जन्म लेना लगभग बंद कर दिया है । जो हैं, उन्हें पूछता कौन है ?
धन है, अन्न है, फिर भी भूख है, क्योंकि अन्न सड़ जाता है, वंचितों को मिल नहीं पाता ।  
धन है फिर भी पीड़ा है, क्योंकि छल है, प्रपंच है, अहंकार है, महाघातक अस्त्र और शस्त्र हैं

सुयोजना नहीं है, करुणा नहीं है, शांति कैसे होगी ?  
न्याय है किंतु मिलता नहीं ।
अधिकार है किंतु मिलता नहीं ।
विचार है किंतु संगठन नहीं है ।

यह संसार इतना विचित्र, विरोधाभासी और यातनाओं से भरा क्यों है ?

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