धरती पर
कलिकाल का यह अत्याधुनिक चरण है ।
इस चरण
में विज्ञान है, आध्यात्म
नहीं है ।
समाज है, धर्म
नहीं है ।
संविधान
है, सुनीति
नहीं है ।
भीड़ है, नियंत्रण
नहीं है ।
भूख और
कुपोषण है, रोटी
नहीं है ।
रोते
हुये बच्चे हैं, दूध
नहीं है ।
रोगी
हैं, औषधियाँ
और पथ्य नहीं हैं ।
जीवन है, उत्साह
और प्रसन्नता नही है ।
समस्या
है, समाधान
नहीं है ।
.....क्योंकि मुद्रा की व्यवस्था नहीं है ।
मौत
नहीं है, मौत को
आमंत्रित करते हथियार हैं ।
.....क्योंकि
मुद्रा की व्यवस्था है ।
जीवन, जोकि
वर्तमान में है, के
लिये चिंता
नहीं है ।
मृत्यु, जोकि वर्तमान
में नहीं है, के लिये
चिंता है । सारी चिंतायें अनागत मृत्यु की सम्भावनाओं में बंदी हो चुकी हैं ।
मृत्यु
का भय, युद्ध
की धमकियाँ, महाविनाश
की योजनायें, महाविनाश
से बचने के लिये सुरक्षा की योजनायें ..... पूरी दुनिया उलझ गयी है मौत के भय में
।
हमारी
प्राथमिकता क्या है ? जीवन की
योजना या मृत्यु की योजना, निर्णय
कौन करेगा ?
अब
ऋषियों-मुनियों ने जन्म लेना लगभग बंद कर दिया है । जो हैं, उन्हें
पूछता कौन है ?
धन है, अन्न है, फिर भी भूख
है, क्योंकि
अन्न सड़ जाता है,
वंचितों को मिल नहीं पाता ।
धन है फिर भी पीड़ा
है, क्योंकि
छल है, प्रपंच
है, अहंकार
है, महाघातक
अस्त्र और शस्त्र हैं ।
सुयोजना
नहीं है, करुणा
नहीं है, शांति
कैसे होगी ?
न्याय
है किंतु मिलता नहीं ।
अधिकार
है किंतु मिलता नहीं ।
विचार
है किंतु संगठन नहीं है ।
यह
संसार इतना विचित्र, विरोधाभासी
और यातनाओं से भरा क्यों है ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.