कुछ पके
तेंदू लिये एक मोटियारिन सा ये बस्तर 
कुसुम थामे
व्यग्र सा कुछ खोजता चेलक ये बस्तर ।
शाल वन
के द्वीप में बन्दी बना भोला ये बस्तर 
नेहवश
जलता रहा काजल बना पागल ये बस्तर । 
चार की
नव कोपलों से झाँकता रहता ये बस्तर 
बास्ता
से बात कर महुवा से मिलता था ये बस्तर । 
खिलखिलाते
घोटुलों में गीत गाता था ये बस्तर 
लग गयी
किसकी नज़र अब जल रहा धू-धू ये बस्तर ।
कट रहे
वन झुलसते तन अब हो रहा बंजर ये बस्तर 
गीत
गाती अब न मैना, सहमा डरा रहता ये बस्तर । 
कौन
विकसित हो रहा, बस पूछता रहता ये बस्तर 
अब छोड़
दो हमको हमारे हाल पर कहता ये बस्तर ।  
तेंदू =
एक फल ; मोटियारिन = युवती ; 
कुसुम =
एक खट्टा-मीठा फल ; चेलक = युवक 
चार =
चिरौंजी ; बास्ता = बांस का नवांकुर ;
घोटुल =
किशोरशाला  
शानदार रचना है सर कृपया मेरे इस ब्लॉग Indihealth पर भी पधारे
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