गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

बस्तर

कुछ पके तेंदू लिये एक मोटियारिन सा ये बस्तर
कुसुम थामे व्यग्र सा कुछ खोजता चेलक ये बस्तर ।
शाल वन के द्वीप में बन्दी बना भोला ये बस्तर
नेहवश जलता रहा काजल बना पागल ये बस्तर ।

चार की नव कोपलों से झाँकता रहता ये बस्तर
बास्ता से बात कर महुवा से मिलता था ये बस्तर ।
खिलखिलाते घोटुलों में गीत गाता था ये बस्तर
लग गयी किसकी नज़र अब जल रहा धू-धू ये बस्तर ।

कट रहे वन झुलसते तन अब हो रहा बंजर ये बस्तर
गीत गाती अब न मैना, सहमा डरा रहता ये बस्तर ।
कौन विकसित हो रहा, बस पूछता रहता ये बस्तर
अब छोड़ दो हमको हमारे हाल पर कहता ये बस्तर ।  

तेंदू = एक फल ; मोटियारिन = युवती ;
कुसुम = एक खट्टा-मीठा फल ; चेलक = युवक
चार = चिरौंजी ; बास्ता = बांस का नवांकुर ;

घोटुल = किशोरशाला  

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.