यह गुरुवार कितना अशुभ रहा! तेलंगाना के बाद अब यू.पी. में दहशत
का साम्राज्य है । हैदराबाद की डॉ. प्रियंका रेड्डी की दर्दनाक हत्या के बाद जहाँ पूरा
देश यौनदुष्कर्मियों को फाँसी देने की माँग कर रहा है वहीं यौनदुष्कर्मियों में इस
बात को लेकर तनिक भी भय नहीं है, वे बेख़ौफ़
जघन्य अपराध किये जा रहे हैं । क्या यह दुःखद नहीं है कि जनता को यह माँग करनी पड़ रही
है कि कानून का राज्य स्थापित करने के लिये यौनदुषकर्मियों को फाँसी की सजा दी जानी
चाहिये ! यानी हमें न्याय के लिये भी राजा के सामने गिड़गिड़ाना ही होगा ।
१.
यू.पी. में
मैनपुरी जिले के घिरोर कस्बे में कुछ शोहदों ने दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक किशोरी
से छेड़छाड़ की, भाई ने समझाइश दी तो नाराज़ शोहदों
ने पहले चौबीस घण्टे के भीतर देख लेने की चेतावनी दी फिर आज सुबह मौका देखा,
सूने घर में घुस गये और किशोरी के गले में फंदा डालकर उसी के घर में
फाँसी दे दी ।
संविधान का कौन सम्मान करता है ? कानून से कौन डरता है ? ऐसी
ही निरंकुश और अराजक व्यवस्था के लिये हम उन्हें
अपने ऊपर हुक़ूमत का अधिकार देते हैं!
२.
मेरठ में
भी आज सुबह राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे यौनदुष्कर्म के बाद चलती ट्रक से फेंकी हुयी
एक युवती पायी गयी । अराजकता और निरंकुशता का यह आलम दहशत पैदा करता है । सड़क पर भागती
गाड़ियों के भीतर किसी लड़की को कुछ लोगों द्वारा नोचा जाता है फिर उसे सड़क के किनारी
कहीं भी फेंक दिया जाता है गोया चलती कार में गरम भुट्टा खाया फिर उसे चलती कार से
बाहर फेंक दिया । स्त्री का जीवन एक वस्तु हो गया है, यूज़ एण्ड थ्रो ।
३.
उन्नाव
जिले के पाटन खेड़ा गाँव की एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म हुआ था । आरोपी जमानत पर
थे और अदालत में के चल रहा था । सभी आरोपी ब्राह्मण हैं, उन्होंने ब्राह्मण समुदाय को कलंकित करते हुये आज
सुबह युवती को जीवित जला दिया । यानी ख़ौफ़ नाम की किसी चीज से अपराधी अब पूरी तरह अनजान
हैं ।
गाँव की युवती न्याय की तलाश में थी, अदालत की राह में थी, आरोपियों
ने न्याय की राह रोक दी, युवती को मारा-पीटा फिर उसे जीवित
जला दिया । नब्बे प्रतिशत तक जल चुकी युवती अब दर्द से लड़ रही है और प्रतीक्षा कर रही
है मौत की । न्याय की असफल प्रतीक्षा के बाद अब केवल मृत्यु की प्रतीक्षा ।
अब यह सवाल कौन पूछेगा माननीय न्यायालय जी से कि
सामूहिक यौनदुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोपियों को जमानत पर क्यों छोड़ गया था, क्या इसलिये कि वे न्याय प्रक्रिया को प्रभावित
कर सकें ?
चलो! हो गयी प्रभावित न्याय प्रक्रिया । जला
दिया लड़की को, मिट गये सबूत, मर गयी फ़रियादी ।
आइये! अब हम माननीय न्यायालय का सम्मान करें ।
दुःखद।
जवाब देंहटाएंन्यायालय अभी पत्थरों में संवेदना ढूंढकर दे रहा है।
स्त्री में वो सवेंदना नहीं पाई जाती ना।
सम्मान तो भाईसाब बनता है
सरकार का और न्याय का
लला को घर मिला है
सीता की अग्निपरीक्षा हुई है।
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