सोमवार, 30 मार्च 2015

अफ़ग़ानी दर्द



         दर्द को क्या कोई नाम दिया जा सकता है ? क्या दर्द की कोई जाति और धर्म भी है ? जो समाज अपनी आधी दुनिया के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता हो क्या वह समाज कभी सुखी और शांत रह सकता है ?
        
         अपने ही पिता और भाइयों से त्राण पाती हुयी लड़की के लिये न्याय की उम्मीद का कौन सा दरवाज़ा है ? जब 12 साल की बच्ची किसी सत्तर साल के बुज़ुर्ग से ब्याहने के लिये यातनायें भोगने को विवश हो तो कौन सा समाज उसके दर्द को छू सकेगा ? जहाँ काबुलीवाला तो हो किंतु छोटे-छोट बच्चे मेवों की तो छोड़िये एक-एक रोटी के लिये तरसते हों वहाँ के विकास की यात्रा अभी कितनी लम्बी होगी इसका हिसाब लगाने की फ़ुरसत भी किसी को नहीं है । 


अपने से तीन गुने बड़े आदमी से शादी से इंकार का नतीज़ा ! नाक और कान काट लेने जैसी पुरानी बर्बर सजायें अफगानिस्तान की आज भी पहचान हैं । इन बेगुनाह बेटियों के दुश्मन कई बार इनके पिता और भाई भी होते हैं । इस किशोरी के दर्द का धर्म कोई बता सकता है ? 

पुरुष के अत्याचार की सहज शिकार लड़की । दुनिया में आख़िर कब तक चलता रहेगा यह सब ? स्त्रियों को सम्मान क्यों नहीं ? उन्हें इंसान होने का दर्ज़ा क्यों नहीं ? 


सत्रह साल की एक किशोरी द्वारा ख़ुद को आग लगाकर जान देने की असफल कोशिश । कारण है ज़बरन किये जाने वाले निकाह से बचने का एक मात्र उपाय ।  


कटी हुयी नाक और कान वाली लड़कियाँ के लिये हिज़ाब उनकी मज़बूरी है । निकाह न करने की सज़ा के बाद प्लास्टिक सर्ज़री करवाने वाली लड़कियों की कमी नहीं है अफ़गानिस्तान में ।


किंतु ज़रूरी नहीं कि हर लड़की ख़ुशकिस्मत हो, अगर वो ग़रीब है तो उसके लिये हिज़ाब के सिवाय और क्या बचता है आख़िर ! 


रिश्ता ............नाक-कान के न होने का ........हिज़ाब के होने से ।
हम केवल दुआ कर सकते हैं कि हर लड़की अपने सम्पूर्ण अंगों के साथ सुरक्षित हो ......सुखी हो ....शांत हो !




अपनी बेटी को अपने हाथों हेरोइन के नशे में झोंकती हुयी 
एक अभागिन अफ़गानी माँ ! जब स्त्री ही स्त्री की दुश्मन बन जाय तो स्त्री के दुर्भाग्य को कौन रोक सकता है ! हे ईश्वर ! ऐसी माताओं को सद्बुद्धि दे ! 









2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.