सोमवार, 30 मार्च 2015

लड़की

लड़की - गान्धारी के मायके की 



लड़की ! 
तुम न होतीं 
तो हम भी न होते ।
किंतु तुम हो
और हम भी हैं ।

लड़की !
तुम धरती हो
तुम दुर्गा हो
तुम लक्ष्मी हो
तुम सरस्वती हो ।
तुम जीवन भर देती हो
सारे दुःख हरती हो
किंतु हम
कभी कृतज्ञ न हो सके
भरते रहे
तुम्हारे आँचल में
पीड़ा के पर्वत
और मानते रहे तुम्हें
एक वस्तु
जैसे कि कोई पका हुआ आम
या महुआ की शराब
या अपनी कमज़ोरियों को छिपाने का एक ठिकाना
या विनिमय का एक मूल्य .......
फिर भी
तुम मौन क्यों हो ?
क्यों नहीं देतीं
हमें श्राप
कि न रहें हम इस लायक
कि भोग सकें तुम्हें
                                               एक वस्तु मानकर ।


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