जम्मू
कश्मीर का एक पाकिस्तान परस्त आदमी भारत का गृहमंत्री बनता है । गृहमंत्री अपनी
अपहृत बेटी को मुक्त कराने के लिये देश के दुश्मनों से समझौता करता है और भारत के ख़ूँख्वार
दुश्मनों को जेलों से निकालकर उनके घर तक सुरक्षित पहुँचाने की व्यवस्था करता है ।
भारत फिर भी गर्व करता है कि वह एक
सम्प्रभुता सम्पन्न देश है । इसी सम्प्रभुता सम्पन्न देश का वही पूर्वगृहमंत्री
2015 में जम्मू कश्मीर का प्रधानमंत्री बनता है । प्रधानमंत्री बनते ही अपनी (चुनावी)
सफलता का श्रेय पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों को देता है और ख़ुश होकर एक
अलगाववादी आदमी को अपने मंत्रिमण्डल में भी शामिल करता है ।
नये
हालातों में जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री के ज़िम्मेदार लोग पाकिस्तान को तरज़ीह
देने के लिये बेताब हो रहे हैं, वे उनसे ग़ुफ़्तगूँ करना चाहते हैं, वे भारत की संसद
पर आक्रमण के एक षड्यंत्रकारी की निशानियों के ख़ैरख़्वाह होना चाहते हैं, शायद वे उसे
कोई पीर या शहीद का दर्जा देने के लिये बेसब्र हुये जा रहे हैं । राष्ट्रद्रोही
षड्यंत्रों के आगे भारत की सम्प्रभुता निश्चेष्ट होती जा रही है और राजनीति को ऑटो
इम्यून डिसऑर्डर्स हो चुके हैं । इस धरती पर ऐसे उदाहरण पूरे विश्व में और कहीं भी
नहीं मिलेंगे - यह दावे के साथ कहा जा सकता है । और यह सब हो रहा है ( होता रहा
है) एक राष्ट्रवादी भारतीय राजनैतिक दल की साझेदारी में । यह सब यूँ ही होता रहेगा
......... सन 2021 तक यानी अगले पूरे छह साल तक ।
भारत का आमआदमी जानना चाहता है कि यह कैसी राष्ट्रवादिता है जो
राष्ट्रद्रोहियों के आगे झुकने के लिये विवश है ? यह कैसा लोकतंत्र है जो बात-बात
में गिरवीं रख दिया जाता है ? यह कैसा विकास है जिसमें आमआदमी बिना उत्कोच दिये
किसी काम के होने की कल्पना भी नहीं कर सकता ? यह कैसा साथ है जो कभी राष्ट्रवाद
के साथ नहीं हुआ करता ?
हम यह नहीं कहेंगे कि भारत के लोग बेवकूफ़ और बुज़दिल
हैं किंतु आत्मग्लानि के साथ यह स्वीकार करने में कोई उज्र नहीं करते कि भारत में
आज भी पराधीन होने के समस्त गुण मौजूद हैं ।
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