गुरुवार, 4 मई 2017

कुछ क्षणिकायें

भारत 

ढूँढता है रूप अपना 
देखा कभी दर्पण में था 
विद्रूप इतना हो गया
सपने में भी सोचा न था. 

इंडिया

जहाँ सूर्य की प्रथम किरण
देती थी पहला सन्देश 
ठहर गया अब वहाँ अन्धेरा 
यही "इंडिया " का संदश .

हिन्दुस्थान 

कौन आ कर बस गए ये 
आज हिन्दुस्थान में
खोजता हूँ हिन्दुओं को 
आज हिन्दुस्थान में.

मूल्य 

राज को तज चल दिए वन 
राम, "मूल्यों" के लिए 
अब "मूल्य" को ही तज रहे सब 
राज पाने का लिए.